21 September 2011

मालिक बनो...

हाल ही में एक बात बंटी को बहुत शिद्दत से महसूस हो रही थी...
दरअसल, बंटी एक कंपनी में काम करता है, वहां पर उसे सब तरह की दिक्कतों का, शोषण का सामना करते हुए नौकरी करना पड़ता था। हालांकि दिक्कतें या शोषण उसी के साथ हो ऐसा नहीं था, साथ काम करने वाले सभी लोग उसी हालात में जी रहे थे। जैसे- जब छुट्टी चाहो, छुट्टी नहीं मिलती थी, छुट्टी को लेकर हमेशा मारामारी। घर-परिवार को समय देना सभी के लिए मुश्किल। दूसरी अहम बात थी सेलरी की समस्या। मेहनत के अनुसार या अन्य दूसरे सेक्टर के मुकाबले पर्याप्त पगार नहीं थी। हां जिन लोगों का गॉडफादर था या जिनको अपनी मर्केटिंग करनी आती थी, वे लोग खूब चांदी काट रहे थे। ऐसा नहीं था कि छुट्टी या पगार की कंपनी के सामने कोई बड़ी दुविधा थी। दरअसल, सीनियर लोगों का रवैया तानाशाहीपूर्ण था, उनकी कृपा के अनुसार सबकुछ होता था।
ऐसे ही एक बार सीनियर लेवल पर एक मीटिंग के दौरान सीनियर अधिकारी ने मंझौले कद के तमाम कर्मचारियों को खड़े रखककर मुलाकात की। वे खुद बैठे रहे और एक-एक कर सभी कर्मचारियों से आधा-पौन घंटा तक मिलते रहे। इस दौरान उन्होंने किसी को भी बैठने के लिए नहीं कहा।
यह बात बंटी सहित कई साथियों को नागवर गुजरी। एक अन्य वरिष्ठ कर्मचारी से जब उन्होंने उस घटना की चर्चा की, तो उसने एक मार्के  की बात कही... 'एक बात मत भूलो कि 10 हजार तन्ख्वाह वाला भी नौकर है  और जिसकी दो-तीन लाख रुपए पगार है वह भी नौकर है।Ó
बंटी को यह बात गहरे तक प्रभावित कर गई। वह उस वरिष्ठ कर्मचारी की बातों की गहराई को समझ गया था कि  मोटी तन्ख्वाह में काम करने वाला सीनियर अधिकारी भी आखिरकार है तो नौकर ही। यानी वह भी मालिक के रहमो-करम पर ही है और कभी भी उसका पत्ता भी कट सकता है। लेकिन वह इस बात को भूल गया है और खुद को मालिक समझकर कर्मचारियों के साथ बेरुखा व्यवहार कर रहा है।
बंटी को लगा कि 20-30 साल नौकरी कर के टॉप पर पहुंचे शख्स में भी अगर इनसिक्योरिटी है, तो नौकरी का क्या औचित्य। बड़ी कंपनी में बड़ी पगार पर नौकर बनने की बजाय क्यों न मालिक  बना जाए, खुद कुछ बिजनेस किया जाए। (आखिर व्यक्ति नौकरी छोडऩा क्यों नहीं चाहता? या बिजनेस करने से कतराता क्यों है? दरअसल, वह जोखिम लेने से डरता है। खुद का बिजनेस करना एक तरह की लीडरशिप है, उसमें तमाम चीजों को, हर परिस्थितियों को फेस करना पड़ता है, हर चीज पर ध्यान रखना पड़ता है। जबकि नौकरी में केवल अपने काम से ही सरोकार रहता है। बस अपना काम करो और छुट्टी पाओ। इसी वजह से अधिकांश नौकरी करने वाले बिजनेस करने जैसा जोखिम लेने से बचते हैं, क्योंकि उनमें अपेक्षित दबाव झेलने की मानसिक ताकत और रिस्क  लेने के हौसला का अभाव होता है। बिजनेस में, हर परिस्थिति में खुद को ढालने की क्षमता, अपने पूर्वग्रह छोड़कर सोच को लचीला बनाकर वक्ते-जरूरत कदम उठाने का, यानी भगवान कृष्ण के समान कूटनीतिज्ञ भी होना पड़ता है, जो कि हर किसी के बस की बात नहीं है।)
बंटी को यही बात 'मालिक बनोÓ बहुत गहरे से आकर्षित कर रही थी। मालिक बना जाए, मालिक बनो, अपना भी मालिक बनो, खुद अपने आप पर अपनी मालकियत हो। बंटी को महसूस हो रहा था कि यह मालिक बनने वाली बात केवल पेशे भर से जुड़ी नहीं है। मालिक  बनना मतलब केवल पेशे भर में मालिक  बनना नहीं है, बल्कि इसका मतलब जीवन के सभी आयामों में, यह कई अलग-अलग तलों में मालकियत से अपनी अपनी कमियों, कमजोरी, असुरक्षा से परे निर्भय होना, खुद अपना भी मालिक बनना है, अपनी इच्छाओं का मालिक बनना।
इसीलिए बंटी अपनी केंचुली उतारने को... असुरक्षा, कुंठा, डर आदि के मकडज़ाल को तोडऩे को... खुले आसमान के राजा के समान विचरण करने को.... बेताब है। कम-से-कम उसकी सोच तो ऐसा ही बन रही है। मालिक बनने की... अपना मालिक... ऐसा व्यक्ति जो हर चीज से निर्भय हो... जिसे किसी चीज का भय न हो....

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