11 December 2012

बृजमोहन अग्रवाल : सेवा ही साधना




 -छत्तीसगढ़ में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कल 10 दिसंबर को विजन न्यूज एजेंसी (वीएनएस) के दफ्तर का फीता काटा। इसी अवसर पर उन्होंने तकरीबन 10 मिनट की एक डाक्युमेंट्री भी देखी, जो उन्ही पर आधारित थी।  इस डॉक्युमेंट्री की स्क्रिप्ट मैंने लिखी थी, जिसे आप नीचे पढ़ेंगे। दैनिक भास्कर, भोपाल से विदाई लेकर दीवाली के बाद मैंने रायपुर, छत्तीसगढ़ में वीएनएस ज्वाइन किया है। ---



यह छत्तीसगढ़ है, भारत जैसे महान देश का एक छोटा-सा प्रदेश। धान का कटोरा...। देश भर में अपनी अलहदा पहचान रखने वाले इस सूबे में प्रकृति की असीम अनुकंपा रही है। प्राकृतिक धरोहर समेटे इस राज्य में एक ओर जहां आदिवासी अंचल की सौंधी महक है, तो दूसरी ओर शहरों में विकास की धमक भी है। विशाल अट्टालिकाएं, फ्लाई-ओवर, सिटीमॉल....  मानो आधुनिकता का, सुविधाओं का मंगल-गान गूंज रहा हो।
- इस प्रदेश की राजधानी रायपुर है। यहां की हलचल... हर पल सांस लेती सड़कें मुंबई जैसे महानगरीय कलेवर का एहसास कराती हैं। रायपुर भीड़ में बसता है। यहां चेहरों की भीड़ नजर आती है। या यह कहा जाए कि भीड़ ही इसका चेहरा है।
 इसी भीड़ में अक्सर एक चेहरा भी दिखाई पड़ता है। शर्ट-पैंट पहना हुआ... 50-55 की उम्र वाला एक शख्स... आम लोगों की तरह किसी पनवाड़ी की दुकान से पान खातेे... या किसी रिक्शेवाले से बातचीत करते... या सड़कों पर टहलते, लोगों से गलबहियां करते...।
अपनी चाल-ढाल, पहनावे से भले ही यह चेहरा आम-सा दिख रहा है, लेकिन है यह बहुत खास। ये छत्तीसगढ़ के कद्दावर मंत्री हैं... बृजमोहन अग्रवाल... रायपुर दक्षिण के विधायक...। आम आदमी के बीच घुले-मिले। खास होकर भी आम... आम होकर भी खास।
कहा जाता है, कुछ लोग जन्म से महान होते हैं जबकि कुछ महानता अर्जित करते हैं।  जिन्हें विरासत में महानता मिलती है, उनके इर्द-गिर्द शुरू से ऐश्वर्य बिखरा होता है। लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, जो अपने हाथों से अपनी तकदीर लिखते हैं। उनके आसपास फैला आभामंडल उनकी अपनी मेहनत का नतीजा होता है।

बृजमोहन अग्रवाल इसी दूसरे वर्ग से आते हैं। वे आज जिस मुकाम पर हैं, अपनी व्यक्तिगत मेहनत और इच्छाशक्ति के बूते हैं। 1990 से... अविभाजित मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ बनने तक... वे लगातार विधायक चुने जा रहे हैं। यह उनका पांचवां कार्यकाल है। अब तक म.प्र. व छत्तीसगढ़ की सरकारों में वे तकरीबन 20 विभागों का जिम्मा संभाल चुके हैं... और  ऐसा करने वाले वे एकमात्र मंत्री हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में उन्हें सर्वश्रेठ विधायक का खिताब भी मिल चुका है।
उपलब्धियों का यह पायदान किसी राजनीति-विरासत की देन नहीं है। कदम-दर-कदम मुश्किलों-चुनौतियों की प्रसवपीड़ा सहकर उन्होंने सफलता को जन्म दिया है... उसे अर्जित किया है।
1 मई 1959 को जन्मे बृजमोहनजीे गैर-सियासी पृष्ठभूमि से रहे हैं। उनके माता-पिता व्यवसाय करते थे, जिनका राजनीति से कोई नाता नहीं था। खुद बृजमोहन का रुझान भी शुरुआत में राजनीति की तरफ नहीं था। वे पढ़-लिखकर वकील बनना चाहते थे। लेकिन 1977-78 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुडऩे के बाद उनकी सोच बदल गई। उनके भीतर कहीं राजनीति का कमल खिलना शुरू हो गया।
लीडरशिप का नैसर्गिक गुण उनमें था ही, जो अंकुरित होने के लिए अपने समय का इंतजार कर रहा था। एबीवीपी से जुडऩे के बाद उसे पल्लवित होने का मौका मिल गया। 1981 में दुर्गा कॉलेज, रायपुर व 1982 में वे कल्याण कॉलेज, भिलाई के अध्यक्ष चुने गए।
छात्रों की समस्याओं से दो-चार होते, उन्हें सुलझाते-सुलझाते... युवा बृजमोहन के मन के जाले भी पूरी तरह साफ हो गए। उसे समझ आ गया कि वह राजनीति के लिए ही बना है। और उसने राजनीति को अपनी जीवन-साधना बनाने का फैसला ले लिया।
बृजमोहनजी का सेवाभावी मन जिस सशक्त माध्यम की तलाश कर रहा था, वह उन्हें मिल चुका था।

इसके बाद उन्होंने देर नहीं लगाई और 1984 में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली। 84 से 90 तक पार्टी के छोटे-बड़े पदों में रहकर वे अपनी काबिलियत साबित करते रहे। इन सालों में वे आम लोगों के बीच खासे लोकप्रिय हो गए थे। इसी लोकप्रियता ने 1990 में उन्हें रायपुर (शहर) विधानसभा का उम्मीदवार बनाया और कांग्रेस को इस परंपरागत सीट से बेदखल कर बृजमोहन ने इतिहास रच दिया। इसके बाद से उनका इस सीट पर कब्जा बना हुआ है। उम्मीदवार बदलते हैं, लेकिन नतीजा वही रहता है।
बृजमोहन अग्रवाल जैसे एक गैर-सियासी पृष्ठभूमि के व्यक्ति का, कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले क्षेत्र में अपनी जमीन तैयार करना, उनके विराट आत्मबल-नैतिक शक्ति का ही परिचायक है। वे सचमुच मिट्टी-पकड़ पहलवान हैं।
इसका सुबूत अनेक मौकों पर भी मिलता रहा है। राजिम महाकुंभ का आयोजन, परसदा का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम... उनके वज्र जैसे मजबूत इरादे, इच्छाशक्ति और मेहनत की सार्वजनिक अभिव्यक्ति है।

बृजमोहन के बारे में प्रसिद्ध है, वे जिस विभाग को संभालते हैं, वह चर्चा में आ जाता है। खेल, संस्कृति, शिक्षा, पर्यटन जैसे विभाग इसकी जीवंत मिसाल भी हैं। 2003 से छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने अनेक काबिले-गौर काम किया है। पुरखौती मुक्तांगन, पर्यटन स्थलों में टूरिस्ट मोटेल का निर्माण, खेल अकादमी की स्थापना जैसे अनेक मोरपंख.... उनके मुकुट में सजे हुए हैं। 
बृजमोहनजी की उपलब्धियों के पीछे उनकी अथाह ऊर्जा का बहुत बड़ा हाथ है। हर दिन वे 14 से 16 घंटे काम करते हैं। कहते हैं, इंसान शरीर से नहीं मन से बूढ़ा होता है। इस कसौटी में कसने पर... 53 साल के बृजमोहन चिरयुवा ही कहे जाएंगे। वे जिस फुर्ती से लोगों से मिलते हैं, सारे काम निबटाते हैं, वह सुखद आश्चर्य पैदा करता है। ऐसा महसूस होता है... मानो किसी दैवीय प्रेरणा के वशीभूत होकर वे काम कर रहे हैं, या कोई दैवीय-शक्ति ही उन्हें संचालित कर रही है।

वैसे धर्म-अध्यात्म में बृजमोहन की गहरी रुचि भी है।  वे हर मंगलवार-शनिवार बिना नागा मंदिर जाते हैं, चाहे अपने गृहनगर रायपुर में हों या और कहीं।

और शायद यह धार्मिक संस्कार ही है, जो उनके भीतर निस्वार्थ सेवा-भावना की जोत जलाए हुए है। धर्म-जाति, राजनीतिक दुर्भावना से परे वे सबकी मदद करते रहते हैं। इसी वजह से उनके बंगले में देर रात तक मिलने वालों का तांता लगा रहता है। उनके चाहने वाले उन्हें मोहन भैया के नाम से बुलाते हैं।

20 साल से जनता का विश्वास कायम रहना, लगातार जीतते चले आना बृजमोहन अग्रवाल की अनवरत सेवा का प्रतिफल है। उनके सादगी भरे व्यक्तित्व का जादू है।
राजनीतिज्ञों की पारंपरिक वेशभूषा कुर्ता-पायजामा के विपरीत वे अमूमन शर्ट-पैंट में दिखाई देते हैं... मुंह में पान का बीड़ा दबाए...।
एक आम आदमी के जैसी- सादगीपूर्ण, आडंबरहीन जीवनशैली... यही उनकी पहचान है।


गीता में निष्काम कर्म की अवधारणा है।
ऐसा मालूम पड़ता  है,
उसी कर्मभाव को आत्मसात कर  बृजमोहन चल रहे हैं।



इसी सद्भावना के साथ...
जिंदगी में कभी उदास मत होना
कभी किसी बात पर निराश मत होना
जिंदगी संघर्ष है चलती रहेगी
कभी अपने जीने का अंदाज मत खोना
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08 December 2012

हिंदी व्याकरण की बारीकियां

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कार्टून की ताकत

व्यंग्य क्या होता है? या सरलता से अपनी बात कैसे कही जाती है? या कार्टून की ताकत क्या है, इसे जानने के लिए इसे जरूर देखें...?

02 December 2012

गौरव

आगमन   पर    आपके
मन कंवल-सा खिल गया
कष्ट तो    हुआ आपको
गौरव  हमारा  बढ़  गया