22 April 2015

सोशल-मीडिया : कहां तक अ•िाव्यक्ति की लक्ष्मण रेखा?


‘हाल में एक मोबाइल ऐप से जुड़े कार्यक्रम के दौरान गायक सोनू निगम ने कहा -‘आज फेसबुक और ट्विटर पर हम सेलिब्रिटीज के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है. हम जैसे कलाकार को छोड़िए, बड़े-बड़े सुपरस्टार को •ाी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर गाली खाते देखा जा सकता है. इस तरह की हरकतों पर रोक लगना चाहिए.’
सोनू की यह मांग अ•िाव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिमायतियों को बुरी लग सकती है, लेकिन आजकल जिस तरह  से सोशल मीडिया में मनमानी हो रही है, सचमुच इस पर विचार करने की जरूरत है कि  इस प्लेटफार्म पर अ•िाव्यक्ति की आजादी कहां तक दी जानी चाहिए?
वास्तव में, इन दिनों फेसबुक-ट्विटर जैसे सोशल प्लेटफार्म  का जमकर दुरुपयोग हो रहा है.  लोगों की इज्जत उछाली जा रही है, निजी एजेंडे के तहत निशाना बनाया जा रहा है. अनेक सेलेब्रिटी इस प्लेटफार्म पर होने वाली बदतमीजी से परेशान हैं.
 अ•ाी कुछ रोज पहले का ही वाकया है, क्रिकेट वर्ल्डकप के सेमीफाइनल में •ाारत की हार होने पर सोशल मीडिया में हीरोइन अनुष्का शर्मा का जमकर मजाक बनाया गया. उनके खिलाफ जोक्स का सिलसिला ही चल पड़ा. अनुष्का का कसूर ये था कि वे क्रिकेटर विराट कोहली की गर्लफ्रेंड थीं और कोहली उस महत्वपूर्ण मैच में एक रन बनाकर आउट हो गए थे. कोहली के खराब खेलने के लिए क्या अनुष्का जिम्मेदार थी, जो उनका इतना तमाशा बनाया गया, उन्हें पनौती माना गया?
अ•िाव्यक्ति का मतलब  यह नहीं होता कि जो जी में आए लिखा जाए, अपने अंदर •ारे वैचारिक कूढ़Þा  को सार्वजनिक किया जाए. अ•िाव्यक्ति का मतलब ‘मानसिक वमन’ हरगिज नहीं है, और  न ही यह कि तर्क की तलवार से किसी की •ाावनाओं को ठेस पहुंचाया जाए, या जानबूझकर बेइज्जत किया जाए.  क्या हमने क•ाी सोचा है कि जिस व्यक्ति का हम यूं मजाक बनाते हैं, उसके दिल पर क्या गुजरती होगी, उसका आत्मविश्वास कितना लहुलुहान होता होगा? बेशक, वैचारिक स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन  इसके साथ नैतिकता, एक जवाबदेही •ाी चाहिए.
यहां बात केवल मान-अपमान •ार की •ाी नहीं है. सोशल मीडिया पर नियंत्रण इसलिए •ाी जरूरी है क्योंकि  आजकल फेसबुक, ट्विटर, न्यूज साइट में जिस तरह के कमेंट लिखे जा रहे हैं, जो कुछ अपलोड किया जा रहा है, उससे सांस्कृतिक वातावरण •ाी दूषित हो रहा है.  हाल में,  बीबीसी की हिंदी साइट में ‘गौ-मांस’ पर अलग-अलग एंगल से स्टोरी प्रकाशित हुई थी. इस पर कमेंट करते हुए  ‘गौ मांस’ के समर्थक व विपक्षी पक्षों ने नैतिकता की सारी सीमाएं लांघ दी. दो वि•िान्न जाति-समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे के लिए  खुलकर अपशब्दों का प्रयोग किया. फेसबुक, ट्विटर पर •ाी इस तरह की अराजकता अक्सर दिखाई पड़ती है, जो सार्वजनिक जीवन में क•ाी •ाी विस्फोटक रूप ले सकती है. 
मजे की बात, सोशल मीडिया में आग उगलने वाले अनेक युवा •ाावनाओं में बहकर ऐसा करते हैं. नादानी, अपरिपक्वता के चलते अगर, किसी के पीछे  पड़ गए, तो उसके खिलाफ अनाप-शनाप लिखते चले जाते हैं. आज के युवाओं के पास सोचने-समझने की बिलकुल फुरसत नहीं है. इसीलिए उन्हें किसी बात की गं•ाीरता का •ाी अंदाजा नहीं रहता है. मौजूदा उथलेपन के दौर में ये लोग •ाी उतने ही अधीर हैं इसीलिए किसी •ाी विषय में गहरे उतरे बिना तुरंत प्रतिक्रिया दे देते हैं.
वैसे सोशल मीडिया पर लगाम लगाना  एक और वजह से •ाी जरूरी है. इस प्लेटफार्म पर ऐसा माफिया सक्रिय है, जो जानबूझकर , पूर्वग्रह के तहत, अपने निजी एजेंडे के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर रहा है. कुछ समय पहले इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में फिल्मी गीतकार-लेखक जावेद अख्तर ने ‘छद्म धार्मिकता’ पर •ााषण दिया था. उस •ााषण से  प्र•ाावित होकर एक सज्जन ने उसे अपने ब्लॉग में पोस्ट किया. लेकिन कुछ लोगों ने जानबूझकर अख्तर को निशाने में लिया. बजाय समग्रता में अर्थ निकालने के उनके •ााषण के एक-एक वाक्य का पोस्टमार्टम किया. उन्हें गलत ठहराने की कोशिश की. इस तरह के लोग ही मीडिया में जहर घोलने का काम कर रहे हैं, इनकी हरकतों पर रोक लगना जरूरी है.
हमें यह बात समझनी होगी कि हर चीज का अच्छा-बुरा दोनों तरह का इस्तेमाल सं•ाव है. एक ही चाकू से सब्जी •ाी काटी जा सकती है और  हत्या •ाी की जा सकती है.  वैसा ही फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल प्लेटफार्म के साथ •ाी है. यह हमारे हाथ में है कि हम इसका कैसा उपयोग करते हैं? वास्तव में हम लोग खुशकिस्मत हैं, जो हमें फेसबुक, ट्विटर जैसा अ•िाव्यक्ति का सहज उपलब्ध सोशल नेटवर्क मिला है.  इसका उपयोग तो, क्रिएट्वििटी के लिए होना चाहिए. एक-दूसरे से सीखना-सीखाना चाहिए.  वाद-विवाद का लक्ष्य •ाी समझ का विकास करना हो, अपने-अपने पूर्वग्रह त्यागकर  स्वस्थ चिंतन हो, जैसा कि दार्शनिक सुकरात कहा करते थे.
लेकिन कुछ लोग नासमझी में या समझते-बूझते हुए, अ•िाव्यक्ति के इतने बेहतर माध्यम का दुरुपयोग कर रहे हैं. दिवंगत लेखक खुशवंत सिंह ने लिखा था- ‘कलम के लिए कोई कंडोम नहीं बना है.’ आजकल सोशल मीडिया में जो कुछ चल रहा है, उसे देखकर यह बात सही मालूम पड़ती है.
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