01 September 2012

अब तुम बताओ कहां गई ज्योति?

एक सूफी फकीर हुआ हसन। जब वह मरने लगा तब उससे उसके कुछ शिष्‍यों ने पूछा कम से कम अब तो आप जा रहे हो इस दुनियां को छोड़ कर। और हम आपके संग सालों रहे है। और आपके जीवन में जो खीला हुआ, जो सुगंध उठ रही है। वो हमने पल-पल जानी है। पर एक बात मन में हमेशा उठती रही की आपका गुरु कोन है। आज तक कभी न वह आपसे मिलने के लिए आया और न ही आप उससे कभी मिलने के लिए गये। क्‍या आपने ये सब बिना गुरु के ही पा लिया।
तब हसन ने कहां की फहरिस्‍त बहुत लम्‍बी है। उसे बताना इतना आसन नहीं है। शायद बता भी न पाऊँ। और मेरे पास अब जीवन भी नहीं बचा की मैं वो सब आप को बता दूँ। क्‍योंकि साँसे मेरे पास कम हे। और अगर सारे गुरूओं की बात कुरू तो मुझे उतनी ही जिन्‍दगी चाहिए। जितनी में जी चुका हूं। क्‍योंकि क्षण-क्षण उनसे मुलाकात होती रही। प्रत्‍येक कदम, प्रत्‍येक डगर पर। जहां भी जाऊँ हर जगह।
फिर भी शिष्‍यों ने कहा कम से कम कुछ तो कहो ताकि हम भी पाता चले की हमारे गुरु को गुरु कोन था। एक गुरु को तो नाम बता ही दो जिससे की तुम्‍हें परमात्‍मा की पहली झलक मिली होगी। तब हसन ने कहां: हां याद है, वो एक श्‍याम थी, मैं एक गांव के पास से गुजर रहा था। सुर्य डूब रहा था। किसान खेतों से अपने घर जा रहे थे। पशु-पक्षी भी अपने-अपने रैन बरसों में जा विश्राम करना चाहते थे। मैं भी मीलों चल चुका था। तब कहीं वो गांव आया था। मैं उस समय बहुत अकड़ा हुआ था। क्‍योंकि मैंने फलसफा पढ़ा था, दर्शन शस्‍त्र पढ़ा थे। शस्‍त्र कंठ हस्त हो गये थे। तर्क सीख लिया था। अपने को बहुत ज्ञानी समझने लगा। जो भी कहीं पर मिलता उससे खूब तर्क करता और उसके सारे प्रश्न को खत्म कर हरा देता। तब अंदर एक अहं की तृप्‍ति मिलती। पर अकड़ खूब हो गई थी। अपने को दुनियां का सबसे ज्ञानी आदमी मानने लगा था। तभी मैं देखता हूं कोई 10-।2 साल एक छोटा सा लड़का हाथ में दीपक लिए जा रहा था। शायद संध्‍या के समय किसी शिवालय में जलाने जा रहा होगा।
मैने उसके पास जा कर उससे पूछा क्‍या ये दीया तूने ही जलाया है? उसने कहां हां-हां मैने ही जलाया है। तब मैने उससे पूछा मैं तुझसे एक प्रश्न पुछता हूं। पर तू तो अभी बच्‍चा है। तेरी तो समझ में शायद वो प्रश्‍न ही नहीं आये। उत्‍तर का तो सवाल ही नहीं उठता। पर शायद जीवन में कभी काम आ जायेगा। जीवन बहुत ही उलझा हुआ है। प्रश्न थोड़ा दार्शनिक है—कि जब तूने ये दीपक जलाया है तो तुझे जरूर पता होगा, कि इस की ज्‍योति जो पहले नहीं है। और तू उसे जला रहा है। तो यह तो जनता ही होगा की वो कहां से आई। इस दीपक की और देख। शायद तेरी समझ में आ जाये। और मैं अंदर ही अंदर बहुत प्रश्नन था कि अब मजा आयेगा। जब ये बच्‍चा निरूत्‍तर हो मेरे सामने खड़ा होगा।
तब उस बच्‍चें ने कहा एक मिनट ठहर जाओ। मैं आपको बताता हूं। और जरा मेरे करीब आओ,और बड़े ध्‍यान से देख इस दिये को फिर न कहना की मैंने देखा नहीं है। ये फिर दोबार मैं उत्‍तर न दे सकूंगा। उस बच्‍चें न जब ये कहा तो उसकी आंखों की चमक देखने जैसी थी। और उस बच्‍चे ने दीपक हसन के सामने कर के उसे जोर से फूंक मार दी। और जो दीपक में ज्‍योति थी वह क्षण में बुझ गई। एक धुएँ की लकीर पीछे रह गई। शायद जैसे उस ज्योति के पद चाप हो। और उसने पूछा हसन से अब बताओ ज्योति जो आपके सामने जल रही थी। मेंने उस को बुझा दिया। फूँक मार कर। अब बताओ कहां गई। आना तो अचानक हुआ किसी भी दशा से हो सकता है। में जान न पाया हूं। पर जो चीज तुम्हारे सामने से जा रही है। उसका तो तुम पता लगा ही सकते है। यह तो पहले से थोड़ा आसान है।
हसन ने कहां, मेरी अकड़ पल में टुट गई एक छोटे से बच्‍चें ने मुझे निरूत्तर कर दिया। मेरे सारे तर्क सारे शस्‍त्र मेरे कुछ काम न आये। उस बालक में मुझे आपने उस गुरु की पहली झलक मिली जिस ने पहली झलक परमात्‍मा की दी। और मैंने झुक कर उसके चरण स्‍पर्श किये। एक छोटे से बच्‍चे ने मेरे सारे दर्शन शस्‍त्र को कूड़े करकट में डाल दीया। और मेरी आंखे खोल दी। एक छोटा बच्‍चा समझ में उसे सिखाने की चेष्‍टा कर रहा था। और शायद जानता में कुछ भी नहीं था। और अपने को गुरु होने के मार्ग पर ले जा रहा था। वह मार्ग उसने पल में एक झटके से तोड़ दिया।
और ये देखना चमत्‍कार की मैं उसी पल, उसी समय गुरु हो गया।

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