29 August 2012

युवक सम्राट और काम

एक गांव में एक युवक रहता था। उसका कुल काम इतना था—डट कर दूध पीना और दंड बैठक मारना। वह एक हनुमान का भगत था सो उसकी पूजा भी करता था। कुश्ती जीतने के कारण गांव का नाम था इसलिए गांव के आदमी उसको प्‍यार भी करते थे। जहां भी वह जाता गांव के बारे में लोग दूर-दूर तक जानने लगे थे। लेकिन ताकत के कारण वह एक काम बहुत खराब करता था। जब वहां से राज गुजरता तब अपनी ताकत और गांव के सहयोग के कारण वह हाथ की पूछ पकड़ कर खड़ा हो जाता था। और हाथी हे के अटक जाता महावत लाख मारता। पर उस युवक की ताकत के सामने हाथी लाचार हो जाता। सो उपर बैठे राजा को भी अपमान का घुटी कर रह जाना पड़ता था।
अब जरा कलपना करना की राजा बैठा हो हाथी पर और महावत उसे लाख धक्‍के दे रहा हो। और युवक पीछे से पूछ पकड़ कर खड़ा हो, और हाथी है कि एक इंच भी सरक नहीं पा रहा हो। लोग आस पास तालियां बजा रहे हो। शाबाश जोर से और ताकत लगा। कितनी भद पिटती होगी उस समय राजा की। तो सम्राट बार-बार अपनी ऐसी हालत होती देख कर डरने लगा था। पर करे क्‍या सकता था। क्‍योंकि कहीं भी जाना हो मंदिर तो रास्‍ते में पड़ता था। गुजरना उसको वहीं से पड़ता। कोई और उपाय न देख कर वह एक दिन फिकर को अपने पास बुलवाया।
आखिर सम्राट ने उस फकीर से कहा कि कुछ करो उपाय कुछ तो रास्‍ता बनाओ। क्‍योंकि मैं जब भी बहार निकलता हूं वह युवक सामने आ जाता है। और हाथी की पूछ पकड़ कर खड़ा हो जाता है। वह मेरे साथ हाथी की भी बहुत दुर्गति करता है। वह सरे आम तमाशा बना देता है। मेरे चलते ही लोग मेरे साथ हो लेते है। कि मंदिर के पास होगा तमाशा। वह युवक भी कमाल का है, ताकत उसकी देखते ही बनती है। मैंने कितनी ही बार उसे पता भिजवाया कि तुम दरबार में नौकरी कर लो। शाही पहलवान हो जाओ। पर वह मलंग है। किसी की सुनता ही नहीं। वह कहता है हम कोई काम नहीं कर सकते। बस एक काम है दंड पेलना और हनुमान जी की पूजा करना। अब तो मुझे तभी बहार निकलना पड़ता है जब वह किसी दूसरे गांव में गया हो। पर वह तो कम ही जाता है। जब कभी कहीं दुर कुश्‍ती का आयोजन हो नहीं तो वह सारा दिन मंदिर में ही रहता है। दूध पीता है, हनुमान का सत्‍संग करता है। बतलाओ अब में क्‍या करू।
उस फकीर ने कहा, फिक्र मत करो। ये भी कोई मुश्‍किल काम है, आप इतनी सी बात के लिए नाहक परेशान हो रहे थे इतने दिनों से मुझे पहले ही बतला दिया होता। आप एक काम करो उस युवक को अभी बूलाओ। यहां पर मेरे सामने।
युवक को बुलवाया गया। वह ठाठ से अपनी ताकत की अकड़ में दरबार पहुंचा। फकीर ने उसे अपने पास बुलाया और कहा देख तू कब तक लोगों पर निर्भर रहेगा। किसी दिन अगर लोगों ने खिलाना छोड़ दिया तो तू क्‍या करेगा। और जब तक तेरे शरीर में ताकत है, तू कुश्‍ती करता है और जीतता है। तभी तक ये लोग तुझे प्‍यार आदर और सम्‍मान देते रहेगें। और ये ताकत कब तक तेरे पास रहेगी। एक दिन तो तुझे बूढ़ा होना है। फिर तेरा क्‍या होगा। भलाई इसी में है तू कुछ काम करने लग जा।
युवक ने इस विषय में कभी सोचा ही नहीं था—की कल क्‍या होगा। फिर कभी सवाल ही नहीं उठा था। फुरसत ही कहां थी उसे ये सब सोचने की। मैंने इस विषय में कभी सोचा नहीं।
तो उस फकीर ने कहा, सोच नहीं तो तू बरबाद हो जायेगा। आने वाले दिन तेरी मुसीबत के बनने वाले है। अभी से सम्‍हल, नहीं तो कल जब सब खत्‍म हो जायेगा। तब कुछ किया नहीं जा सकेगा। जवानी हमेशा थोड़े ही रहने वाली है। आज नहीं कल खत्‍म हो जायेगी। और जब तू कमजोर हो जायेगा। या तुझे कोई बिमारी हो जायेगी। तो ये लोग जो आज तुझे सर आंखों पर बिठा कर रखे है। तुझे देखने भी नहीं आयेंगे। युवक थोड़ा डरा। विचार का कीड़ा उसके मन पर रेंगना शुरू हुआ। उसके चेहरे की प्रसन्‍नता में कुछ तनाव आया। उसकी आंखों में कुछ भविष्‍य का भय नजर आया। तब फकीर समझ गया की अब समय है। अब लोहा गर्म है, चोट की जा सकती है।
तब फकीर ने उस युवक को कहा की तू कुछ काम कर ले। तुझ एक रूपया रोज मिल जायेगा। उन दिनों एक रूपये की काफी कीमत थी, महीना भर आप बड़े मजे से एक परिवार को पाल सकते थे। पर युवक ने कहा काम तो मुझे कुछ आता नहीं। न ही में पढ़ा लिख हूं। तब भला मैं क्‍या काम कर सकता हूं। मैं तो दंड बैठक मारता हूं दूध पीता हूं…ओर हनुमान की पूजा करता हूं। तो काम मैं क्‍या करूं?
फकीर ने कहां घबरा मत तुझे काम भी ऐसा देंगे की तुझे अपने दैनिक कार्य में कोई बाधा नहीं होगी। वो जो हनुमान जी का मंदिर है। जिस में तू दंड पेलता है। उस में श्‍याम छह बजे उसमें दिया जला दे और सुबह छह बजे उसे बुझा दे। भगवान के घर रात अंधकार रहता है। ये उनका अपमान है। तुझे कहीं जाना भी नहीं है। बस पाँच मिनट का समय ही तो आने दैनिक कार्य में से निकलना है। युवक की समझ में आया। कि मैं सारा दिन पड़ा ही तो रहता हूं, एक रूपया रोज मिल जायेगा। ये भी कोई काम है। मंदिर की सेवा भी हो जायेगी। और मेरा भी काम बन जायेगा। मुझे एक रूपये की आमदनी रोज….तो युवक राज़ी हो गया।
युवक तो चला गया। सम्राट ने अपना सर धुन लिया। कि आपने ये क्‍या किया। एक तो सांड और उपर से उसे खेत में छोड़ दिया। अब उस एक रूपये से वह घी बादाम और दूध खुब पियेगा खायेगा। और मेरे हाथी की पूछ पकड़ कर खड़ा हो जायेगा। देखना अब तो वह एक ही हाथ से पकड़ कर हाथी को रोक देगा।
फकीर ने कहा तुम थोड़ा सब्र तो करो। इतनी जल्‍दी अच्‍छी नहीं है, तुम एक महीने का इंतजार करो। और सुनो एक महीने तक तुम वहां मत जाना। जो भी काम हो मंत्र वगैरह को भेज कर करवा लेगा। बस एक महीने की बात है। राज को यकीन नहीं आ रहा था। कि फकीर ने नाहक एक रूपया रोज गंवाया।
महीने बाद फकीर ने कहा कि अब तुम अपने हाथी पर बैठ कर जाओ।
सम्राट निकला अपने हाथी पर। महीने भर से युवक रहा भी तक रहा था। उसे भी सम्राट को छकाने में बड़ा मजा आता था। देखता था उसकी लाचारी। हाथी की पूछ पकड़ कर खड़ा हो जाता था। हाथी को चला रहा है महावत, और रोक रहा है युवक बेचार सम्राट केवल तड़प जाता था। उस दिन उस युवक न हाथी की पूछ पकड़ी और रोकने लगा। पर आज क्‍या वह हाथी के पीछे घिसटता चला गया। आज ताक महावत ने भी हाथी को नहीं डाटा न मारा। सब लोग अचरज कर गये। ये चमत्‍कार क्‍या हो गया। आज तो खेल का मजा दूसरी और हो गया। वही हाथी वहीं युवक पर आज हाथी युवक को घसीटते लिए जा रहा है।
सम्राट का चेहरा विजय के गर्व से लाल हो गया। और वह जोर से चिल्‍लाया खड़ा हो बेटा कोई बात नहीं एक बार और कोशिश कर। पर युवक अब डर गया था। उसने दुबारा भी कोशिश की इस बार भी घसीटता चला गया। बहुत भद्द पीट उस दिन युवक की। लोगो ने कहा की ये सांड अब नकारा हो गया। फ्री का माल मलाई खाता हे। और सोता है….
सम्राट ने जाकर फकीर को कहा की तुमने किया क्‍या? मैं तो सोचता था हालत उलटी हो जायेगी।
उस फकीर ने कहा: इसको फिक्र में डाल दिया। अब इसको एक चिंता बनी रहती थी। कि छह बजे की। वह बार-बार लोगों से समय पूछता। कि छह तो नहीं बज गये है। रात चैन से सो भी नहीं पाता था। की कही छह बज गये है। रात कई बार उसकी नींद खुलती। सुबह दीया बुझाना श्‍याम को जलाना। इसकी पुरानी मस्‍ती गायब हो गई। चिंता का कीड़ा अंदर प्रवेश कर गया था। वो खा गया इसकी हिम्‍मत इसके बल को।

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