12 December 2011

क्रांतिनाद

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क, हर गली में, हर नगर, हर गांव में
हाथ लहराते हुए, हर लाश चलनी चाहिए

के सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
 मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

और मेरे सीने में नहीं, तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
- स्व. दुष्यंत कुमार त्यागी

No comments:

Post a Comment