18 October 2011

वरदान


प्रभु! विपत्तियों से मेरी रक्षा करो,  यह प्रार्थना लेकर में तेरे द्वार नहीं आया,
विपत्तियों से भयभीत न होऊं, बस यही वरदान दे.

अपने दु:ख से व्यथित चित्त कोसांत्वना देने की भिक्षा नहीं मांगता,
दुखों पर विजय पााऊं यही आशीर्वाद दे, यही प्रार्थना है.

मुझे बचा ले... यह प्रार्थना लेकर मैं  तेरे दर पर नहीं आया हूं
केवल संकट सागर में तैरते रहने की शक्ति माँगता हूँ.

मेरा भार हल्का कर दे... यह याचना पूर्ण होने की सांत्वना नहीं चाहता हूं
यह भार वाहन कर चलता रह सकूं... बस यही प्रार्थना है।

सुख भरे क्षणों में मैं नतमस्तक हो तेरे दर्शन कर सकूं
किन्तु दु:ख भरी रातों मैं जब सारी दुनिया मेरा उपहास करे,
तब शंकित न होऊं, बस यही वरदान मांगता हूं।।।

(गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कालजयी कृति गीतांजली से साभार)

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