23 September 2011

धर्म का सार

 आज जहां अनेक लोगों व संस्थाओं पर जबरिया धर्मांतरण कराने के आरोप लग रहे हंै, वहीं किसी समय हिंदू धर्म ग्रहण करने आए एक अमेरिकी प्रोफेसर को, स्वामी विवेकानंद ने दीक्षा देने से इंकार करते हुए अच्छा ईसाई बनने कहा था। पढि़ए, एक रोचक किस्सा..
 बात उन दिनों की है, जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में थे। लोग स्वामीजी को सुनने और उनसे धर्म के विषय में अधिक से अधिक जानने को उत्सुक थे। उनके धर्म संबंधी विचारों से प्रभावित होकर एक दिन एक अमेरिकी प्रोफेसर उनके पास पहुंचे। उन्होंने स्वामी जी को प्रणाम कर कहा- स्वामीजी,  आप मुझे अपने हिंदू धर्म में दीक्षित करने की कृपा करें।
उनकी बात सुनकर स्वामीजी बोले- मैं यहां धर्म-प्रचार के लिए आया हूं, न कि धर्म-परिवर्तन के लिए। मैं अमेरिकी धर्म-प्रचारकों को यह संदेश देने आया हूं कि वे धर्म-परिवर्तन के अभियान को बंद कर प्रत्येक धर्म के लोगों को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास करें। यही धर्म की सार्थकता है। सभी धर्मों का मकसद यही है। हिंदू संस्कृति विश्व-बंधुत्व का संदेश देती है, मानवता को सबसे बड़ा धर्म मानती है। इस पृथ्वी पर सबसे पहले मानव का आगमन हुआ था। उस समय कहीं कोई धर्म, जाति या भाषा न थी। मानव ने अपनी सुविधानुसार अपनी-अपनी भाषाओं, धर्म तथा जाति का निर्माण किया और अपने मुख्य उद्देश्य से भटक गया। यही कारण है कि समाज में तरह-तरह की विसंगतियां आ गई हैं। लोग आपस में विभाजित नजर आते हैं। इसलिए मैं तुम्हें यह कहना चाहता हूं कि तुम अपना धर्म पालन करते हुए अच्छे ईसाई बनो। हर धर्म का सार मानवता के गुणों को विकसित करने में है इसलिए तुम भारत के ऋषियों-मुनियों के शाश्वत संदेशों का लाभ उठाओ और उन्हें अपने जीवन में उतारो। वह प्रोफेसर उनकी बातों से अभिभूत हो गए।

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