सीरिया में पैदा हुए चिंतक-दार्शनिक खलील जिब्रान रहस्यमयी व्यक्ति थे। उनकी बातों से किसी और लोक की, किसी अनूठे एहसास का स्वाद लेकर लौटे व्यक्ति की महक आती है। उन्होंने मैडमैन नामक एक किताब लिखी है, जिसमें 34 प्रतीक कथाएं हैं। इसमें उन्होंने एक पागल आदमी के ज़रिये कथा कहलवायी है। यह पागल वस्तुत: एक रहस्यदर्शी फकीर है और वह दुनियां की नजरों में पागल है। दूसरी तरफ से देखा जाये तो वह वास्तव में समझदार है क्योंकि उसकी आँख खुल गई है...
किताब की शुरूआत पागल की जबानी से होती है। वह कहता है, ‘’तुम मुझे पूछते हो मैं कैसे पागल हुआ। वह ऐसे हुआ, एक दिन बहुत से देवताओं के जन्मनें के पहले मैं गहरी नींद से जागा और मैंने पाया कि मेरे मुखौटे चोरी हो गये है। वे सात मुखौटे जिन्हें मैंने सात जन्मों से गढ़ा और पहना था। मैं भीड़ भरे रास्तों पर यह चिल्लाता दौड़ा, चौर-चौर। बदमाश चौर। स्त्री-पुरूषों ने मेरी हंसी उड़ाई। उनमें से कुछ डर कर अपने घर में छुप गये। और जब मैं बाजार मैं पहुंचा तो छत पर खड़ा एक युवक चिल्लाया, ‘’यह आदमी पागल है।‘’ उसे देखने के लिए मैंने अपना चेहरा ऊपर किया ओर सूरज ने मेरे नग्न चेहरे को पहली बार चूमा। और मेरी रूह सूरज के प्यार से प्रज्वलित हो उठी। अब मेरी मुखौटों की चाह गिर गई।
मदहोश सा मैं चिल्लाया, ‘’धन्य है वे चोर जिन्होंने मेरे मुखौटे चुराये।‘’
इस प्रकार मैं पागल हुआ।
और अपने पागलपन में मुझे सुरक्षा और आजादी, दोनों मिलीं। अकेलेपन की आजादी, और कोई मुझे समझे इससे सुरक्षा। क्योंकि जो हमें समझते है वह हमारे भीतर किसी तत्व को कैद कर लेते है।
लेकिन में अपनी सुरक्षा पर बहुत नाज़ नहीं करना चाहता। कैद खाने में एक चोर भी तो दूसरे से सुरक्षित होता है।
लीजिए, पढि़ए आप भी इस किताब की चंद कहानियां और उनकी परतों को खोलने की, उनकी गहराई नापने की कोशिश कीजिए...
घास की पात ने कहा:
पतझड़ में एक पत्ते से घास की पात ने कहा, ‘’तुम नीचे गिरते हुए कितना शोर मचाते हो। मेरे शिशिर स्वप्नों को बिखेर देते हो।‘’
पत्ता क्रोधित हो बोला, ‘’बदज़ात, माटी मिली, बेसुरी, क्षुद्र कहीं की। तू ऊंची हवाओं में नहीं रहती, तू संगीत की ध्वनि को क्या जाने।‘’
फिर वह पतझड़ का पत्ता जमीन पर गिरा और सो गया। जब बसंत आया वह जागा, और तब वह घास की पात था। फिर पतझड़ आया, और शिशिर की नींद से उसकी पलकें भरी हुई उपर से हवा में से पत्तों की बौछार हो रही थी।
वह बुदबुदायी, उफ़, ये पतझड़ के पत्ते कितना शोर करते है। मेरे शिशिर-स्वप्नों को बिखेर देते है।
बिजूका
मैंने एक बार बिजूके से कहा, ‘’इस एकाकी खेत में खड़े होने से तुम ऊब गये होओगे।‘’
उसने कहा, दूसरों को डराने का मजा गहरा है और लंबा टिकता है। में कभी उससे थकता नहीं।‘’
एक मिनट सोचकर मैंने कहा, सच है, मैने भी यह मजा लिया है।
उसने कहा, ‘’जिनके अंदर घास भरी होती है वह ही इसे जान सकते है।
फिर मैं वहां से चला आया। पता नहीं उसने मेरी प्रशंसा की थी या मेरा अपमान किया था।
एक साल बीत गया। इस बीच वह बिजूका दार्शनिक हो गया था। और जब में दुबारा वहां से गुजरा तो दो कौवे उसके हैट के अंदर घोंसला बना रहे थे।‘’
दूसरी भाषा
पैदा होने के तीन दिन बाद, जैसे मैं अपने रेशमी झूले में लेटा हुआ था। अपने आसपास के नए जगत को आश्चर्य चकित नजरों से देखता हुआ—मेरी मां ने मेरी दाई से पूछा, ‘’मेरा बेटा कैसा है?’’
दाई ने कहा, ‘’बहुत बढ़िया मादाम। मैंने उसे तीन बार दूध पिलाया। इससे पहले मैंने कभी इतने छोटे बच्चे को इतना प्रसन्न नहीं देखा था।
मुझे गुस्सा आया। मैं चीखा, ‘’यह सच नहीं है मां, मेरा बिस्तर सख्त है। और जो दूध मैने पिया वह कड़वा था। और उस स्तन की बदबू मेरी नाक में आ रही थी। और मैं बहुत दुःखी हूं।
लेकिन मेरी मां नहीं समझी, और न ही मेरी दाई। क्योंकि यह भाषा जो मैं बोल रहा था वह उस जगत की थी जिस जगत से मैं आया था।
मेरे जीवन के इक्कीसवें दिन, जब मेरा बाप्तिस्मा हो रहा था, पादरी ने मेरी मां से कहा, ‘’आपको प्रसन्न होना चाहिए मादाम, आपका बेटा ईसाई ही पैदा हुआ।‘’
मुझे आश्चर्य हुआ और मैने फादर से कहा, ‘’फिर स्वर्ग में तुम्हारी मां को दुखी होना चाहिए, क्योंकि तुम ईसाई नहीं पैदा हुए थे।
लेकिन मेरी भाषा पादरी की भी समझ में नहीं आई।
सात चाँद गुजर जाने के बाद एक दिन एक ज्योतिषी ने मुझे देखकर मेरी मां से कहा, ‘’आपका बेटा राजनैतिक होगा। और मनुष्य जाति का बड़ा नेता बनेगा।‘’
मैं चीखा, ‘’यह भविष्यवाणी गलत है। मैं संगीतज्ञ बनुगां। और संगीतज्ञ के अलावा कुछ भी नहीं बनुगां।‘’
लेकिन उस उम्र में मेरी भाषा किसी की भी समझ में नहीं आई। इस बात का मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ।
तैंतीस साल के बाद—इसके दौरान मेरी मां, दाई और पादरी मर चुके थे (ईश्वर उनकी आत्मा को शांति) लेकिन ज्योतिषी अभी तक भी जीवित था। मैं उससे एक मंदिर के पास मिला। बात करते-करते उसने कहा, ‘’मैं हमेशा जानता था तुम एक दिन बड़े संगीतज्ञ बनोंगे। तुम छोटे थे तभी मैंने इसकी भविष्यवाणी कर दी थी।‘’
और मैंने उस का विश्वास किया क्योंकि अब मैं भी उस जगत की भाषा भूल गया हूं।
सूली चढ़ा–
मैंने लोगों से कहा, ‘’तुम मुझे सूली चाढ़ा दो।‘’
उन्होंने कहा: ‘’तुम्हारा खून हम अपने माथे पर क्यों ले।‘’
मैंने कहा: ‘’पागलों को सूली दिये बगैर तुम श्रेष्ठ कैसे होओगे?’’
उन्होंने कबूल किया और मुझे सूली दी। सूली ने मुझे शांत कर दिया। और जब मैं धरती और आसमान के बीच लटका हुआ था, मुझे देखने के लिए उन्होंने अपने सिर ऊपर उठाये। और वे उन्मत्त हुए क्योंकि उनके सिर इससे पहले कभी ऊपर नहीं उठे थे।
जब वे मेरी और देख रहे थे तो एक ने पूछा, ‘’तुम क्या पाने की चेष्टा कर रहे हो?’’
दूसरे ने कहां, ‘’किस कारण तुम अपनी बलि दे रहे हो?’’
किसी तीसरे ने पूछा, ‘’क्या तुम यह कीमत देकर विश्व ख्याति पाना चाहते हो?’’
चौथा बोला, ‘’देखो, देखो, वह कैसे मुस्कुरा रहा है, क्या इस पीड़ा को माफ किया जा सकता है?’’
उन सब को एक साथ जवाब देते हुए मैंने कहा, ‘’इतना याद रखो कि मैं मुस्कुराया। न मैं कुछ पाने की चेष्टा कर रहा हूं। न अपनी बलि दे रहा हूं, न ख्याति की अभिलाष कर रहा हूं। और मुझे कुछ भी माफ नहीं करना। मुझे प्यास लगी है। और मैंने विनति की थी कि तुम मुझे मेरा खून पिलाओ। पागल की प्यास किस से बूझेगी सिवाय उसके खून से। मैं बुद्धू था और मैंने तुमसे जख्म मांगे। मैं तुम्हारे दिन और रातों में बंद था और मैंने उनसे भी लंबे दिन और रातों में प्रवेश करने का द्वार मांगा।‘’
और अब मैं जाता हूं, ‘’जिस तरह बाकी सब सूली-चढ़े हुए गये। यह मत सोचो कि हम सूली से थक गए। क्योंकि हमें बड़ी से बड़ी भीड़ के हाथों सूली मिलनी चाहिए—इससे भी बड़ी धरती और आसमान के बीच।‘’
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( य कहानियां मैंने http://oshosatsang.org/ ब्लॉग से ली हैं, जिसका मैंने पहले भी जिक्र किया है। स्वामी मनसा प्रसाद का यह ओशो को उनके विभिन्न लेखों का समर्पित यह ब्लॉग है। ओशो-प्रेमियों के लिए ओशो-साहित्य मुहैया कराने का उनका यह अवदान अमूल्य है। इसके लिए वे साधुवाद के पात्र है। )