किरलियान फोटोग्राफी में जब कोई व्यक्ति संकल्प करता है उर्जा का तो वर्तुल बड़ा हो जाता है। फोटोग्राफी में वर्तुल बड़ा आ जाता है। जब आप घृणा से भरे होते है, जब आप क्रोध से भरे होते है तब आपके शरीर से उसी तरह की ऊर्जा के गुच्छे निकलते है, जैसे मृत्यु में निकलते है। जब आप प्रेम से भरे होते है तब उल्टी घटना घटती है। जब आप करूणा से भरे होते है तब उल्टी घटती है। इस विराट ब्रह्मा से आपकी तरफ उर्जा के गुच्छे प्रवेश करने लगते है। आप हैरान होंगे यह बात जानकर कि प्रेम में आप कुछ पाते है, क्रोध में कुछ देते है। आमतौर से प्रेम में हमें लगता है कि कुछ हम देते है और क्रोध में लगता है हम कछ छीनते है। प्रेम में हमें लगता है कुछ हम देते है, लेकिन ध्यान रहे,प्रेम में आप पाते है। करूणा में आप पाते है, दया में आप पाते है। जीवन ऊर्जा आपकी बढ़ जाती है। इसलिए क्रोध के बाद आप थक जाते है और करूणा के बाद आप और सशक्त, स्वच्छ, ताजे हो जाते है। इसलिए करूण वान कभी भी थकता नहीं। क्रोधी थका ही जीता है।
किरलियान फोटोग्राफी के हिसाब से मृत्यु में जो घटना घटती है। वह छोटे अंश में क्रोध में घटती है। बड़े अंश में मृत्यु में घटती है, बहुत ऊर्जा बाहर निकलने लगती है। किरलियान ने एक फूल का चित्र लिया है जो अभी डाली से लगा है। उसके चारों तरफ ऊर्जा का जीवंत वर्तुल है। और विराट से, चारों और से ऊर्जा की किरणें फूल में प्रवेश कर रही है। ये फोटोग्राफ अब उपलब्ध है। देखे जा सकते है। और अब तो किरलियान का कैमरा भी तैयार हो गया है, वह जल्दी उपलब्ध हो जाएगा। उसके फूल को डाली से तोड़ लिया फिर फोटो लिया। तब स्थिति बदल गई। वे जो किरणें प्रवेश कर रही थीं। वे वापस लौट रही है। एक सेकेंड का फासला, डाली से टूटा फूल। घंटे भर से ऊर्जा बिखरती चली जाती है। जब आपकी पंखुडियां सुस्त होकर ढल जाती है। वह वही क्षण है जब ऊर्जा निकलने के करीब पहुंचकर पूरी शून्य होने लगती है।
इस फूल के साथ किरलियान ने और भी प्रयोग किये। जिससे बहुत कुछ दृष्टि मिलती है—तप के लिए, किरलियान ने आधे फूल को काटकर अलग कर दिया। छह पंखुडियां है तीन तोड़कर फेंक दीं। चित्र लिया है तीन पंखुड़ियों का, लेकिन चकित हुआ—पंखुडियां तो तीन रहीं,लेकिन फूल के आसपास जो वर्तुल था वह अब भी पूरा रहा। जैसा कि छह पंखुड़ियों के आस पास था। छह पंखुड़ियों के आसपास जो वर्तुल, आभा मंडल था, ऑरा था, ती पंखुड़ियों तोड़ दी, वह आभा मंडल अब भी पूरा रहा। दो पंखुडियां उसने ओर तोड़ दीं। एक ही रह गई, लेकिन आभा मंडल पूरा रहा। यद्यपि तीव्रता से विसर्जित होने लगा। लेकिन पूरा रहा।
इसलिए आप जब बेहोश कर दिए जाते है अनस्थीसिया से या हिप्रोसिस से—आपका हाथ काट डाला जाए, आपको पता नहीं चलता। उसका कुल कारण इतना है कि आपका वास्तविक अनुभव अपने शरीर का ऊर्जा शरीर से है। वह हाथ कट जाने पर भी पूरा ही रहता है। वह तो जब आप जगेंगे ओर कटा हुआ देखेंगे तब तकलीफ शुरू होगी। अगर आपको गहरी निद्रा में मार भी डाला जाए तो भी आपको तकलीफ नहीं होगी। क्योंकि गहरी निद्रा में सम्मोहन में या अनस्थीसिया मे आपका तादात्म्य इस शरीर से छूट जाता है और आपके ऊर्जा शरीर से ही रह जाता है। आपका अनुभव पूरा ही बना रहता है। और इसलिए अगर आप लंगड़े भी हो गए है पैर से, तब भी आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके भीतर वस्तुत: कोई चीज कम हो गई है। बाहर तो तकलीफ हो जाती है। अड़चन हो जाती है लेकिन भीतर नहीं लगता है कि कोई चीज कम हो गई है। आप बूढ़े भी हो जाते है तो भी भीतर नहीं लगता कि आपके भीतर कोई चींजे बूढ़ी हो गई है। क्योंकि वह ऊर्जा शरीर है, वह वैसा का वैसा ही काम करता रहता है।
अमरीका मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक डा. ग्रीन ने आदमी के मस्तिष्क के बहुत से हिस्से काटकर देखे और वह चकित हुआ। मस्तिष्क के हिस्से कट जाने पर भी मन के काम में कोई बाधा नहीं पड़ती। मन अपना काम वैसा ही जारी रखता है। इससे ग्रीन ने कहा कि यह परिपूर्ण रूप से सिद्ध हो जाता है कि मस्तिष्क केवल उपकरण है, वास्तविक मालिक कहीं कोई पीछे है वह पूरा का पूरा काम करता रहता है। आपके शरीर के आसपास जो आभा मंडल निर्मित होता है वह इस शरीर का रेडिएशन नहीं इस शरीर से विकीर्णन नहीं है,वरन किरलियान ने वक्तव्य दिया है कि आन दि कांट्रेरी दिस बाड़ी अनली मिरर्स दि इनर बाड़ी, वह जो भीतर का शरीर है, उसके लिए यह सिर्फ दर्पण की तरह बाहर प्रगट कर देती है। इस शरी के द्वारा वे किरणें नहीं निकल रही है। वे किरणें किसी और शरी के द्वारा निकल रही है। इस शरी से केवल प्रगट होती है।
जैसे हमने एक दीया जलाया हो चारों तरफ एक ट्रांसपैरेंट कांच का घेरा लगा दिया हो, उस कांच के घेरे के बाहर हमें किरणों का वर्तुल दिखाई पड़ेगा। हम शायद सोचें कि यह कांच से निकल रहा है तो गलती है। वह कांच से निकल रहा है, लेकिन कांच से आ नहीं रहा। वह आ रहा है भीतर के दीये से। हमारे शरी से जो ऊर्जा निकलती है वह इस भौतिक शरीर की ऊर्जा नहीं है, कयोंकि मरे हुए आदमी के शरीर से समस्त भौतिक तत्व यही का यही होता है, लेकिन ऊर्जा का वर्तुल खो जाता है। उस ऊर्जा के वर्तुल को योग सूक्ष्म शरीर कहता है। और तप के लिए उस सूक्ष्म शरीर पर ही काम करने पड़ते है। सारा काम उस सूक्ष्म शरीर पर है।
लेकिन आमतौर पर से जिन्हें हम तपस्वी समझते है, वे वह लोग है जो इस भौतिक शरीर को ही सतानें में लगे रहते है। इससे कुछ लेना देना नहीं है। असली काम इस शरीर के भीतर जो दूसरा छिपा हुआ शरीर है—ऊर्जा शरीर,एनर्जी बाड़ी—उस पर काम का है। और योग ने जिन चक्रों की बात की है, वे इस शरीर में कहीं नहीं है, वे उस ऊर्जा शरीर में है।
इस लिए वैज्ञानिक जब इस शरीर को काटते है, फिजियोलाजिस्ट तो वे कहते है—तुम्हारे चक्र कहीं मिलते नहीं। कहां है अनाहत चक्र, कहां है स्वाधिष्ठान, कहां है मणिपूर… कहीं कुछ नहीं मिलता। पूरे शरीर को काटकर देख डालते है, वह चक्र कहीं मिलते नहीं। वे मिलेंगे भी नहीं। वे उस ऊर्जा शरीर के बिंदु है। यद्यपि उन ऊर्जा शरीर के बिन्दुओं को करस्पांड करने वाले उनके ठीक समतुल इस शरीर में स्थान है—लेकिन वे चक्र नहीं है।
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