उफ, यह आदमी और इसके साथ होने का सौभाग्य।
(ओस्पेंस्की ने लिखा है उस दिन मैंने गुरूजिएफ को पहली बार देखा की ये आदमी कैसा अदभुत है। क्योंकि इतना खाली हो गया था में कि आब मैं कि अब मैं देख सकता था। भरी हुई आँख क्या देखती। उस दिन गुरूजिएफ को मैंने पहली दफा देखा कि ओफ़ यह आदमी और इसके साथ होने का सौभाग्य।)
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जो मुझे तुझे देना था, मैंने दे दिया। और जो तू पा सकता था वह तूने पा लिया है। मिलारेपा चरणों में गिर पडा।
(कहानी कहती है, ऐसे सात दफे नारोपा ने वह मकान गिरवाया। गिरवा कर वह पत्थर वापस फेंको खाई में। फिर चढ़ाओं, फिर मकान बनाओ। ऐसा सात साल तक चला। सात बार वह मकान गिराया गया और बनवाया गया। और सांतवीं बार जब मकान गिर रहा था, तब भी मिलारेपा ने नहीं कहा कि क्यो?और कहते है कि नारोपा ने कहा कि तेरी शिक्षा पूरी हो गई। जो मुझे तुझे देना था, मैंने दे दिया। और जो तू पा सकता था वह तूने पा लिया है। मिलारेपा चरणों में गिर पडा।– ओशो, ताओ उपनिषाद भाग—3)
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बरदाश्त की भी एक सीमा होती है। और भरोसे का भी एक अंत है।
(एक दिन बायजीद आया है और गुरु शराब की सुराही रखे बैठा है। प्याली में शराब ढालता है ओर चुस्कियां लेता है। और बायजीद को समझाता जाता है। एक और शिष्य भी बैठा था। उसके बरदाश्त के बाहर हो गया कि हद हो गई। बरदाश्त की भी एक सीमा होती है। और भरोसे का भी एक अंत है। आखिर विश्वास कोई अंधविश्वासी तो नहीं हूं, मैं, उसने कहा यह क्या हो रहा है? यह अध्यात्म किस प्रकार का है? ओशो, ताओ उपनिषाद भाग—3)
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फिर इससे उल्टा भी सच है: भावों को बदलों, श्वास बदल जाती है। तुम कभी बैठे हो सुबह उगते सूरज को देखने नदी तट पर।
(श्वास भावों से जुड़ी है। भाव को बदलों, श्वास बदल जाती है। श्वास को बदल लो भाव बदल जाते है। जरा कोशिश करना। क्रोध आये, अगर श्वास को डोलने मत देना। श्वास को थिर रखना, शांत रखना। श्वास का संगीत अखंड रखना। श्वास का छंद न टूटे। फिर तुम क्रोध न कर पाओगे। तुम बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे। क्रोध उठेगा भी तो गिर-गिर जायेगा। क्रोध के होने के लिए श्वास को आंदोलित होना। श्वास आंदोलित हो तो भीतर को केंद्र डगमगाता है। नहीं तो क्रोध देह पर ही रहेगा। देह पर आये क्रोध का कुछ अर्थ नहीं, जब तक कि चेतना उससे आंदोलित हो। चेतना आंदोलित हो तो जुड़ गये। फिर इससे उल्टा भी सच है: भावों को बदलों, श्वास बदल जाती है। तुम कभी बैठे हो सुबह उगते सूरज को देखने नदी तट पर। भाव शांत है। कोई तरंग नहीं है चित पर। उगते सूरज के साथ तुम लवलीन हो। लौटकर देखना, श्वास का क्या हुआ। श्वास बड़ी शांत हो गई। श्वास में एक रस हो गया,एक स्वाद….एक छंद बंध गया। श्वास संगीत पूर्ण हो गयी। ओशो, मरौ हे जोगी मरौ )-
सारी जीवन ऊर्जा को आवश्यकताओं के तल तक ले आओ। तुम आनंदित हो जाओगे। (प्रसन्नता जीवन का स्वभाव है। प्रसन्न रहने के लिए किन्हीं कारणों की जरूरत नहीं होती। तुम्हारी आवश्यकताओं तक आ जाओ; इच्छाएं पागल होती है, आवश्यकताएं स्वाभाविक होती है। भोजन, घर, प्रेम; तुम्हारी सारी जीवन ऊर्जा को आवश्यकताओं के तल तक ले आओ। और तुम आनंदित हो जाओगे। ओशो, पतंजलि—योग-सूत्र, भाग—2)
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किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता है। मन की एक ऐसी अवस्था उपलब्ध करनी होती है जहां कोई प्रश्न नहीं उठते। मन की प्रश्न रहित अवस्था ही एक मात्र उत्तर है।
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(मेरी समझ ऐसी है कि मन की एक अवस्था है, जहां केवल प्रश्न होते है; और मन की एक अवस्था है, जहां केवल उत्तर होते है। और वे कभी साथ-साथ नहीं होती। यदि तुम अभी भी पूछ रहे हो, तो तुम उत्तर नहीं ग्रहण कर सकते। में उत्तर दे सकता हूं लेकिन तुम उसे ले नहीं सकते। यदि तुम्हारे भीतर प्रश्न उठने बंद हो गये है, तो कोई जरूरत नहीं है मुझे उत्तर देने की: तुम्हें उत्तर मिल जाता है। किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता है। मन की एक ऐसी अवस्था उपलब्ध करनी होती है जहां कोई प्रश्न नहीं उठते। मन की प्रश्न रहित अवस्था ही एक मात्र उत्तर है। ओशो, पतंजलि: योग-सूत्र, भाग: 3, प्रवचन-20 )
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ये लोग अपनी गहन प्रज्ञा को बांटते है लेकिन उन्हें शब्दों में रहस्य भर देते है जो उसी रहस्य को आकार देते है। प्रत्येक व्यक्ति रहस्यों को खुद ही उघाड़े—यही प्रकृति का नियम है। इसमें कोई किसी की मदद नहीं कर सकता ।
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(लेखिका कहती है- इस पुस्तक को पढ़ने वाले सभी पाठक यह स्मरण रखें कि उनमें से जो भी सोचेगा कि यह सामान्य अंग्रेजी में लिखी गई है उन्हें इसमें थोड़ा-बहुत दर्शन शास्त्र नजर आयेगा। लेकिन खास मतलब नहीं दिखाई देगा। जो इस तरह पढ़ेंगे उन्हें यह पुराना अचार नहीं बल्कि तीखा नमक मिला हुआ ऑलिव का फल प्रतीत होगा। सावधान इस तरह न पढ़ें। इसे पढ़ने का एक और तरीका है, जो कई लेखकों के बारे में सही बैठता है। दो पंक्तियों के बीच छिपा हुए गहन आशय को खोजें। वस्तुत: यह गहन, गुप्त भाषा का अर्थ खोलने की कला है। सभी रूपांतरण का रसायन प्रस्तुत करने वाली रचनाएं इसी गुप्त भाषा में लिखी जाती है। बड़े से बड़े दार्शनिकों और कवियों ने इसका उपयोग किया है। ये लोग अपनी गहन प्रज्ञा को बांटते है लेकिन उन्हें शब्दों में रहस्य भर देते है जो उसी रहस्य को आकार देते है। प्रत्येक व्यक्ति रहस्यों को खुद ही उघाड़़े—यही प्रकृति का नियम है। इसमें कोई किसी की मदद नहीं कर सकता ।- लाइट ऑन का पाथ)
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वह तुम्हें ले जाएगा जीवन के उस ढंग तक जो कि तुम्हारे अनुकूल पड़ सकता है। जो तुम्हें ले जाएगा सम्यक् अनुशासन की और।
(जब तुम अनुभव कर सकते हो और वह स्वप्न पा सकते हो जो अति चेतन से उतर रहा होता है। तो उसे देखना,उस पर ध्यान करना। वहीं तुम्हारा मार्गदर्शन बन जाएगा। वह तुम्हें सद्गुरू तक ले जाएगा। वह तुम्हें ले जाएगा जीवन के उस ढंग तक जो कि तुम्हारे अनुकूल पड़ सकता है। जो तुम्हें ले जाएगा सम्यक् अनुशासन की और। वह सपना भीतर एक गहन मार्ग दर्शन बन जाएगा। चेतन के साथ तुम ढूंढ सकते हो गुरु को। लेकिन गुरु और कुछ नहीं होगा सिवाय शिक्षक के। अचेतन के साथ तुम खोज सकते हो गुरु को। लेकिन गुरु एक प्रेमी से ज्यादा कुछ नहीं होगा–तुम एक निश्चित व्यक्तित्व के, एक निश्चित ढंग के प्रेम में पड़ जाओगे। केवल अति चेतन तुम्हें सम्यक गुरु तक ले जा सकता है। तब वह शिक्षक नहीं होता; जो वह कहता है उससे तुम सम्मोहित नहीं होते; जो वह है उसके साथ अंधे सम्मोहन में नहीं पड़ते हो तुम। बल्कि इसके विपरीत तुम निर्देशित होते हो तुम्हारे परम चेतन के द्वारा कि इस व्यक्ति से तुम्हारा तालमेल बैठेगा और विकसित होने के लिए इस व्यक्ति के साथ एक सही संभावना बनेगी तुम्हारे लिए, कि वह आदमी तुम्हारे लिए आधार है भूमि बन सकता है। ओशो, पतंजलि :योग-सूत्र, भाग—2, प्रवचन-1, श्री रजनीश आश्रम पूना, 1 मार्च, 1975 )-
किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता है। मन की एक ऐसी अवस्था उपलब्ध करनी होती है जहां कोई प्रश्न नहीं उठते। मन की प्रश्न रहित अवस्था ही एक मात्र उत्तर है।
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(मेरी समझ ऐसी है कि मन की एक अवस्था है, जहां केवल प्रश्न होते है; और मन की एक अवस्था है, जहां केवल उत्तर होते है। और वे कभी साथ-साथ नहीं होती। यदि तुम अभी भी पूछ रहे हो, तो तुम उत्तर नहीं ग्रहण कर सकते। में उत्तर दे सकता हूं लेकिन तुम उसे ले नहीं सकते। यदि तुम्हारे भीतर प्रश्न उठने बंद हो गये है, तो कोई जरूरत नहीं है मुझे उत्तर देने की: तुम्हें उत्तर मिल जाता है। किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता है। मन की एक ऐसी अवस्था उपलब्ध करनी होती है जहां कोई प्रश्न नहीं उठते। मन की प्रश्न रहित अवस्था ही एक मात्र उत्तर है। ओशो, पतंजलि: योग-सूत्र, भाग: 3, प्रवचन-20 )
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यथार्थ का एक प्रसंग लेकिन कवि उसमें मानवीय संवेदनाओं के रंग भरता है। और पढ़ने वाले को लगता है, हां, बिलकुल यही, ऐसा ही घटा होगा। फिर बुद्ध चरित्र धार्मिक नहीं, बहुत आत्मीय, बहुत मानवीय बन जाता है।
(लाइट ऑफ एशिया’’ अर्थात एशिया का प्रकाश। प्रश्न उठता है कि इस किताब में ऐसी क्या खास बात है जो पाश्चात्य पाठकों ने इसे सिर पर उठा लिया। एक तो बुद्ध का अद्भुत चरित्र और उसके बाद सर अर्नाल्ड की असाधारण काव्य प्रतिभा: इन दोनों के संगम के कारण यह काव्य निरंतर कल्पना और तथ्यों के बीच डोलता रहा। यथार्थ का एक प्रसंग लेकिन कवि उसमें मानवीय संवेदनाओं के रंग भरता है। और पढ़ने वाले को लगता है, हां, बिलकुल यही, ऐसा ही घटा होगा। फिर बुद्ध चरित्र धार्मिक नहीं, बहुत आत्मीय, बहुत मानवीय बन जाता है। ओशो, दि डिसिप्लिन ऑफ ट्रांसडेंस ) -
ये लोग अपनी गहन प्रज्ञा को बांटते है लेकिन उन्हें शब्दों में रहस्य भर देते है जो उसी रहस्य को आकार देते है। प्रत्येक व्यक्ति रहस्यों को खुद ही उघाड़े—यही प्रकृति का नियम है। इसमें कोई किसी की मदद नहीं कर सकता ।
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(लेखिका कहती है- इस पुस्तक को पढ़ने वाले सभी पाठक यह स्मरण रखें कि उनमें से जो भी सोचेगा कि यह सामान्य अंग्रेजी में लिखी गई है उन्हें इसमें थोड़ा-बहुत दर्शन शास्त्र नजर आयेगा। लेकिन खास मतलब नहीं दिखाई देगा। जो इस तरह पढ़ेंगे उन्हें यह पुराना अचार नहीं बल्कि तीखा नमक मिला हुआ ऑलिव का फल प्रतीत होगा। सावधान इस तरह न पढ़ें। इसे पढ़ने का एक और तरीका है, जो कई लेखकों के बारे में सही बैठता है। दो पंक्तियों के बीच छिपा हुए गहन आशय को खोजें। वस्तुत: यह गहन, गुप्त भाषा का अर्थ खोलने की कला है। सभी रूपांतरण का रसायन प्रस्तुत करने वाली रचनाएं इसी गुप्त भाषा में लिखी जाती है। बड़े से बड़े दार्शनिकों और कवियों ने इसका उपयोग किया है। ये लोग अपनी गहन प्रज्ञा को बांटते है लेकिन उन्हें शब्दों में रहस्य भर देते है जो उसी रहस्य को आकार देते है। प्रत्येक व्यक्ति रहस्यों को खुद ही उघाड़़े—यही प्रकृति का नियम है। इसमें कोई किसी की मदद नहीं कर सकता ।- लाइट ऑन का पाथ)
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