हादसों की ज़द पे है तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें,
तुमने मेरे घर न आने की कसम खाई तो है
आंसुओं से भी कहो आंखों में आना छोड़ दें.
बारिशें दीवार धो देने की आदी हैं तो क्या
हम इसी डर से तेरा चेहरा बनाना छोड़ दें!
इस दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है भीतर की शांति... सबकुछ देकर भी यदि वह मिले तो ले लेना...
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(नोट: इस कविता को किसने लिखा है मुझे नहीं पता, यदि किसी सज्जन को मालूम हो तो कृपया जरूर बताएं।) |
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