12 November 2011

बात इतनी सी...

बात इतनी सी कहानी हो गई
एक चुनर और धानी हो गई
गंध ले जाती बिना मांगे हवा
देह जबसे रातरानी हो गई 


एक दस्तूर किया तुमने
प्यार मशहूर किया तुमने
कांच के टुकड़े को तराशकर
एक कोहिनूर किया तुमने


सूखी नदी को सागर तो
सेहरा को पूर किया तुमने
पिलाकर प्राणों को मदिरा
नशे में चूर किया तुमने।
                                     
(नोट: इस कविता को किसने लिखा है मुझे नहीं पता, यदि किसी सज्जन को मालूम हो तो कृपया जरूर बताएं।)

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