सुशोभित सक्तावत... शरीर से युवा लेकिन मन से प्रौढ़, भास्कर ब्लॉग में समय-समय पर उन्होंने अनेक पठनीय आलेख लिखे हैं। दैनिक भास्कर के एडिट पेज के इंचार्ज सुशोभित के भीतर एक्युरेसी की चाह, सर्वश्रेष्ठ करने की, हीरा बीनने की, निर्दोष वर्क की चाह है। उनके लिखे आर्टिकलों से उभरने वाले सतह के भीतरी स्वर... जो मेरे भीतर कहीं स्पंदित हुए... उनके आधार पर यह कह रहा हूं।
उनका हर आर्टिकल एक कलाकार की कृति जैसा है। लेख को वे एक पेंटर जैसा ही पेंट करते हैं। हालांकि शब्दों के आभामंडल से वे भी नहीं बच पाते हैं और भाषाई चमत्कार अपने लेखन में दिखाते रहते हैं। लेकिन यह बहुत बड़ी बात नहीं है। शुरुआत ऐसे ही होती है... सरल से कठिन और कठिन से फिर सरल...। असल चीज है संवेदनाएं...। इसकी सच्ची झलक उनमें मिल रही है। हाल ही में उन्होंने एक आर्टिकल लिखा था, गली-मोहल्ले के नामों पर आधारित...। हालांकि यह तथ्यात्मक ज्यादा था, लेकिन फिर भी लेखन के नजरिए से इसे कीमती कहा जा सकता है। एक नन्ही-सी संवेदना को जिस तरह से परिधान-युक्त किया है, वह पठनीय है।
शुरुआत फिल्मी गीत के उदाहरण से... इसके बाद मोहल्ले के तथ्यों के बीच गालिब का जिक्र...। फिर एक-आध मोहल्ले की रोचक बात,, उनके विचित्र नामों पर खुद की टिप्पणी, उसके बाद भोपाल का जिक्र आने पर उससे संबंधित एक बुक का जिक्र। अंत में पूरे मैटर को मुकाम तक ले जाने की कोशिश यह कहकर कि... कोई भी शहर अपनी अंगुली के पोरों पर नहीं, बल्कि हथेली की गुदैली पर बसता है। वहीं होते हैं, मुहल्ले पाड़े, जो हर शहर का नमक होते हैं।
मैटर के अंत में उधारी के शब्द (संवेदनाएं) और साहित्यिक अंदाज की झलक जरूर मिलती है। ज्यादा बेहतर सार्थक अंत तक वह नहीं पहुंचाया जा सका, निजी संवेदनाओं के साथ, लेकिन ओवरआल पूरे मैटर का शरीर-सौष्ठव मुझे ठीक लगा। जैसा कि मैंने कहा एक छोटी-सी संवेदना को आकार देना और सार्थक अंजाम तक पहुंचाना अपेक्षाकृत कठिन पड़ता है, इसीलिए यह मैटर मुझे आकर्षित किया। सुशोभित के मेरे पढ़े और दीगर आलेख, जाने क्यों मुझे उनकी व्यक्तिगत संवेदनाएं नहीं लगीं।(हो सकता है, मैं यहां पूरी तरह गलत होऊं, पूर्वग्रह से बात नहीं कर रहा हूं, पर मुझे ऐसा लगा।) लेकिन वे बेहतर की कोशिश में हैं, यही बात बेहतरीन हैं।
उनके मोहल्ले वाले आर्टिकल को पढऩे यहां क्लिक करें... http://www.bhaskar.com/ gali-mohalle
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