30 November 2011

फादर फारगेट्स : हर पिता यह याद रखे

 इस आर्टिकल को सालों पहले डब्लू लिविंगस्टोन लारनेड ने लिखा है। गहन अनुभूति के क्षणों में लिखा जाने वाला यह लेख एक पिता की अपराधस्वीकारोत्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पिता-पुत्र रिश्तों की कसौटी और मानवीय संवेदनाओं की दरकार को भी रेखांकित  करता है। सच तो यह है कि यह लेख केवल एक पिता से नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव समाज से बालमनोविज्ञान को समझने का, प्रकृति के इन फूलों की कोमलता को बनाए रखते हुए, इनका विकास करने का आग्रह करता है... प्रस्तुत है यह पत्र...  
सुनो बेटे, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। तुम गहरी नींद में सो रहे हो। तुम्हारा नन्हा-सा हाथ तुम्हारे नाजुक गाल में दबा है। और तुम्हारे पसीना-पसीना ललाट पर घुंघराले बाल बिखरे हुए हैं। मैं तुम्हारे कमरे में चुपके से दाखिल हुआ हूं, अकेला। अभी कुछ मिनट पहले जब मैं लाइब्रेरी में अखबार पढ़ रहा था, तो मुझे बहुत पश्चाताप हुआ। इसीलिए तो आधी रात को मैं तुम्हारे पास खड़ा हूं, किसी अपराधी की तरह।
जिन बातों के बारे में मैं सोच रहा था, वह ये हैं, बेटे। मैं आज तुम पर बहुत नाराज हुआ। जब तुम स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तब मैंने तुम्हें खूब डांटा... तुमने टॉवेल के बजाय पर्दे से हाथ पोंछ लिए थे। तुम्हारे जूते गंदे थे, इस बात पर भी मैंने तुम्हे कोसा। तुमने फर्श पर इधर-उधर चीजें फेंक रखी थीं... इस पर भी मैंने तुम्हें भला-बुरा कहा।
नाश्ता करते वक्त भी मैं तुम्हारी एक-के-बाद एक गलतियां निकालता रहा। तुमने डाइनिंग टेबल पर खाना बिखरा दिया था। खाते समय तुम्हारे मुंह से चपड़-चपड़ की आवाज आ रही थी। मेज पर तुमने कोहनियां भी टिका रखी थीं। तुमने ब्रेड पर बहुत-सा मक्खन भी चुपड़ लिया था। यही नहीं जब मैं ऑफिस जा रहा था और तुम खेलने जा रहे थे... और तुमने मुड़कर हाथ हिलाकर 'बॉय-बॉय, डैडीÓ कहा था, तब भी मैंने भृकुटी तानकर टोका था- 'अपनी कॉलर ठीक करोÓ
शाम को भी मैंने यही सब किया। ऑफिस से लौटकर मैंने देखा कि तुम दोस्तों के साथ मिट्टी में खेल रहे थे। तुम्हारे कपड़े गंदे थे, तुम्हारे मोजों में छेद हो गए थे। मैं तुम्हें पकड़कर ले गया और तुम्हारे दोस्तों के सामने तुम्हें अपमानित किया... 'मोजे महंगे हैं- जब तुम्हें खरीदना पड़ेंगे, तब तुम्हें इनकी कीमत समझ में आएगी।Ó  जरा सोचो तो सही, एक पिता अपने बेटे का इससे ज्यादा दिल किस तरह दुखा सकता है?
क्या तुम्हें याद है जब मैं लाइब्रेरी में पढ़ रहा था, तब तुम रात को मेरे कमरे में आए थे, किसी सहमे हुए मृगछौने की तरह। तुम्हारी आंखे बता रही थीं कि तुम्हें कितनी चोट पहुंची हैं। और मैंने अखबार के ऊपर से देखते हुए पढऩे में बाधा डालने के लिए तुम्हें झिड़क दिया था... 'कभी तो चैन से रहने दिया करो। अब क्या बात है?Ó और तुम दरवाजे पर ही ठिठक गए  थे।
तुमने कुछ नहीं कहा। तुम बस भागकर आए, मेरे गले में बांहे डालकर मुझे चूमा और 'गुडनाइटÓ कहकर चले गए। तुम्हारी नन्ही बांहों की जकडऩ बता रही थी कि तुम्हारे दिल में ईश्वर ने प्रेम का ऐसा फूल खिलाया था, जो इतनी उपेक्षा के बाद भी नहीं मुरझाया। और फिर तुम सीढिय़ों पर खट-खट करके चढ़ गए।
तो बेटे, इस घटना के कुछ ही देर बाद मेरे हाथों से अखबार छूट गया और मुझे बहुत ग्लानि हुई। यह क्या होता जा रहा है मुझे? गलतियां ढूंढऩे की, डांटने-डपटने की आदत सी पड़ती जा रही है मुझे। अपने बच्चे के बचपने का मैं यह पुरस्कार दे रहा हूं। ऐसा नहीं है बेटे, कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता, पर मैं एक बच्चे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें लगा बैठा था। मैं तुम्हारे व्यवहार को अपनी उम्र के तराजू पर तौल रहा था।
तुम इतने प्यारे हो, इतने अच्छे और सच्चे। तुम्हारा नन्हा-सा दिल इतना बड़ा है जैसे चौड़ी पहाडिय़ों के पीछे से उगती सुबह। तुम्हारा बड़प्पन इसी बात से जाहिर होता है कि दिन भर डांटते रहने वाला पापा को भी तुम रात को'गुडनाइट किसÓ देने आए। आज की रात और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है, बेटे। मैं अंधेरे में तुम्हारे सिरहाने आया हूं और यहां घुटने टिकाए बैठा हूं, शर्मिंदा।
यह एक कमजोर पश्चाताप है। पर मैं जानता हूं कि अगर तुम्हें जगाकर यह सब कहूंगा, तो शायद तुम नहीं समझोगे। कल से मैं सचमुच तुम्हारा प्यारा पापा बनकर दिखाऊंगा। मैं तुम्हारे साथ खेलूंगा, तुम्हारी मजेदार बातें मन लगाकर सुनूंगा, तुम्हारे साथ खुलकर हंसूंगा और तुम्हारी तकलीफों को बांटूंगा। आगे से जब मैं तुम्हें डांटने के लिए मुंह खोलूंगा, तो इसके पहले अपनी जीभ को अपने दांतों में दबा लूंगा। मैं बार-बार किसी मंत्र की तरह कहना सीखूंगा...  'वह तो अभी बच्चा है, छोटा-सा बच्चा।Ó
मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हें बच्चा नहीं, बड़ा मान लिया था। परंतु आज जब मैं तुम्हें गुड़ी-मुड़ी और थका-थका पलंग पर सोया देख रहा हूं, बेटे, तो मुझे एहसास होता है कि तुम अभी बच्चे ही तो हो। कल तक तुम अपनी मां की बांहों में थे, उसके कांधे पर सिर रखे। मैंने तुमसे कितनी ज्यादा उम्मीदें की थीं, कितनी ज्यादा...।

24 November 2011

भिखारी

सोनू-मोनू लाल किला देखते हुए खड़े थे। वहां एक भिखारी मिला और 10 रुपए मांगा। सोनू- क्या करेगा इस 10 रुपए का? भिखारी- मैं और मेरी गर्लफ्रेंड चाय पीएंगे। सोनू- अबे, भिखारी होकर भी गर्लफ्रेंड रखता है और उसके खर्चे उठाता है? भिखारी- नहीं साहब, गर्लफ्रेंड के खर्चे उठा-उठाकर भिखारी हो गया।

23 November 2011

मिलन


तेरा मेरा मिलन बस समय की बात
एक दो महीने तो, थोड़े दिन की बात

गुजरते रहे दिन, गुजरती रही रात
बस याद रही तू, याद रही तेरी बात

यादों की किताब खोली, तो आंखे भीग गई
याद आ गई वो सब, खट्टी-मीठी बात

मत हो मन उदास, जल्दी होंगे हम साथ
गुजरेंगी मीठी रातें, फिर होंगी मीठी बात

21 November 2011

शेर की दहाड़

सोनू, मोनू जंगल में जा रहे थे। तभी शेर की दहाड़ सुनाई दी। सोनू तुरंत जूता-मोजा खोलकर भागने के लिए तैयार हो गया। यह देखकर मोनू बोला- तुम कितना ही तेज भागो शेर तो पकड़ ही लेगा। सोनू- मुझे शेर से नहीं, तुझसे तेज भागना है।

तेरी कमी पाता हूं मैं...

उल्फत ने खाएं हैं जख्म जब से
चैन से नहीं रह पाता हूं मैं,
 आज भी अपने में बहुत
तेरी कमी पाता हूं मैं।

लिंकन का पत्र बेटे के शिक्षक के नाम


अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपने बेटे के शिक्षक को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने शिक्षक से कुछ अपेक्षाएं रखी थीं। इस पत्र को आदर्श शिक्षक होने की कसौटी की नजीर के रूप में सालों से प्रस्तुत किया जाता रहा है। यह केवल एक छात्र व शिक्षक के सीखने-सिखाने तक सीमित नहीं हैं, इसका दायरा बहुत बड़ा है। पढि़ए, यह पत्र...
सम्माननीय सर...
मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं। यह बात मेरे बेटे को भी सीखना होगी। पर मैं चाहता हूँ कि आप उसे यह बताएँ कि हर बुरे आदमी के पास भी अच्छा हृदय होता है। हर स्वार्थी नेता के अंदर अच्छा लीडर बनने की क्षमता होती है। मैं चाहता हूँ कि आप उसे सिखाएँ कि हर दुश्मन के अंदर एक दोस्त बनने की संभावना भी होती है। ये बातें सीखने में उसे समय लगेगा, मैं जानता हूँ। पर आप उसे सिखाइए कि मेहनत से कमाया गया एक रुपया, सड़क पर मिलने वाले पाँच रुपए के नोट से ज्यादा कीमती होता है।
आप उसे बताइएगा कि दूसरों से जलन की भावना अपने मन में ना लाएं। साथ ही यह भी कि खुलकर हँसते हुए भी शालीनता बरतना कितना जरूरी है। मुझे उम्मीद है कि आप उसे बता पाएँगे कि दूसरों को धमकाना और डराना कोई अच्छी बात नहीं है। यह काम करने से उसे दूर रहना चाहिए।
आप उसे किताबें पढऩे के लिए तो कहिएगा ही, पर साथ ही उसे आकाश में उड़ते पक्षियों को धूप, धूप में हरे-भरे मैदानों में खिले-फूलों पर मँडराती तितलियों को निहारने की याद भी दिलाते रहिएगा। मैं समझता हूँ कि ये बातें उसके लिए ज्यादा काम की हैं।
मैं मानता हूँ कि स्कूल के दिनों में ही उसे यह बात भी सीखना होगी कि नकल करके पास होने से फेल होना अच्छा है। किसी बात पर चाहे दूसरे उसे गलत कहें, पर अपनी सच्ची बात पर कायम रहने का हुनर उसमें होना चाहिए। दयालु लोगों के साथ नम्रता से पेश आना और बुरे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। दूसरों की सारी बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीजों का चुनाव उसे इन्हीं दिनों में सीखना होगा।
आप उसे बताना मत भूलिएगा कि उदासी को किस तरह प्रसन्नता में बदला जा सकता है। और उसे यह भी बताइएगा कि जब कभी रोने का मन करे तो रोने में शर्म बिल्कुल ना करे। मेरा सोचना है कि उसे खुद पर विश्वास होना चाहिए और दूसरों पर भी। तभी तो वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।
ये बातें बड़ी हैं और लंबी भी। पर आप इनमें से जितना भी उसे बता पाएँ उतना उसके लिए अच्छा होगा। फिर अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है और बहुत प्यारा भी।
आपका
अब्राहम लिंकन
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किसी सज्जन ने लिंकन के शिक्षक के नाम पत्र को कविता में रूपांतरित किया है। वह भी पेश-ए-नजर है...
हे शिक्षक !
मैं जानता हूँ और मानता हूँ
कि न तो हर आदमी सही होता है
और न ही होता है सच्चा;
किंतु तुम्हें सिखाना होगा कि
कौन बुरा है और कौन अच्छा,
दुष्ट व्यक्तियों के साथ साथ आदर्श प्रणेता भी होते हैं,
स्वार्थी राजनीतिज्ञों के साथ समर्पित नेता भी होते हैं;
दुष्मनों के साथ - साथ मित्र भी होते हैं,
हर विरूपता के साथ सुन्दर चित्र भी होते हैं
समय भले ही लग जाए, पर
यदि सिखा सको तो उसे सिखाना
कि पाए हुए पाँच से अधिक मूल्यवान-
स्वयं एक कमाना...
पाई हुई हार को कैसे झेले, उसे यह भी सिखाना
और साथ ही सिखाना,जीत की खुशियाँ मनाना।
यदि हो सके तो ईष्र्या या द्वेष से परे हटाना
और जीवन में छिपी मौन मुस्कान का पाठ पठाना 7
जितनी जल्दी हो सके उसे जानने देना
कि दूसरों को आतंकित करने वाला स्वयं कमजोर होता है
वह भयभीत व चिंतित है
क्योंकि उसके मन में स्वयं चोर छिपा होता है
उसे दिखा सको तो दिखाना-
किताबों में छिपा खजाना
और उसे वक्त देना चिंता करने के लिए...
कि आकाश के परे उड़ते पंछियों का आल्हाद,
सूर्य के प्रकाश में मधुमक्खियों का निनाद,
हरी- भरी पहाडिय़ों से झाँकते फूलों का संवाद,
कितना विलक्षण होता है- अविस्मरणीय...अगाध...
उसे यह भी सिखाना-
धोखे से सफलता पाने से असफ़ल होना सम्माननीय है 7
और अपने विचारों पर भरोसा रखना अधिक विश्वसनीय है!
चाहें अन्य सभी उनको गलत ठहराएं
परंतु स्वयं पर अपनी आस्था बनी रहे यह भी विचारणीय है
उसे यह भी सिखाना कि वह सदय के साथ सदय हो,
किंतु कठोर के साथ हो कठोर...
और लकीर का फकीर बनकर,
उस भीड़ के पीछे न भागे जो करती हो-निरर्थक शोर...
उसे सिखाना
कि वह सबकी सुनते हुए अपने मन की भी सुन सके,
हर तथ्य को सत्य की कसौटी पर कसकर गुन सके...
यदि सिखा सको तो सिखाना कि वह दुख: में भी मुस्करा सके,
घनी वेदना से आहत हो, पर खुशी के गीत गा सके..
उसे ये भी सिखाना कि आँसू बहते हों तो बहने दें,
इसमें कोई शर्म नहीं...कोई कुछ भी कहता हो... कहने दो
उसे सिखाना-
वह सनकियों को कनखियों से हंसकर टाल सके
पर अत्यन्त मृदुभाषी से बचने का ख्याल रखे
वह अपने बाहुबल व बुद्धिबल क अधिकतम मोल पहचान पाए
परन्तु अपने ह्रदय व आत्मा की बोली न लगवाए
वह भीड़ के शोर में भी अपने कान बन्द कर सके
और स्व की. अंतरात्मा की यही आवाज सुन सके;
सच के लिए लड़ सके और सच के लिए अड़ सके
उसे सहानुभूति से समझाना
पर प्यार के अतिरेक से मत बहलाना
क्योंकि तप-तप कर ही लोहा खरा बनता है.
ताप पाकर ही सोना निखरता है
उसे साहस देना ताकि वह वक्त पडऩे पर अधीर बने
सहनशील बनाना ताकि वह वीर बने
उसे सिखाना कि वह स्वयं पर असीम विश्वास करे,
ताकि समस्त मानव जाति पर भरोसा व आस धरे
यह एक बड़ा-सा लम्बा-चौड़ा अनुरोध है
पर तुम कर सकते हो,क्या इसका तुम्हें बोध है?
मेरे और तुम्हारे... दोनों के साथ उसका रिश्ता है;
सच मानो, मेरा बेटा एक प्यारा- सा नन्हा सा फरिश्ता है...
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नेताजी का अंतिम भाषण- हिंदुस्तान जरूर आजाद होगा...

नेताजी अपने जोशीले भाषणों के द्वारा युवाओं में जोश भर देते थे, 22 अप्रैल, 1945 को नेताजी ने रंगून (बर्मा) में अपना आखिरी भाषण दिया था? उस समय आजाद हिंद फौज इंफाल व पोपा फ्रंट में हार चुकी थी और नेताजी बर्मा छोड़ रहे थे... 


नेताजी का अंतिम भाषण
 चाहे हम बर्मा की आजादी की लड़ाई के लिए किए गए पहले युद्ध में पराजय का मुंह देख चुके हों, लेकिन हमें अंग्रेजों से आजादी प्राप्त करने के लिए अभी और कहीं अधिक लड़ाइयों को लडऩा है।  मेरा ईमान है कि जो कुछ होगा, वह भलाई के लिए होगा, इसलिए मैं किसी हालत में हार नहीं मानता।
बर्मा, जहां तुमने कई दिनों तक कई जगहों पर जबरदस्त लड़ाइयां लड़ीं व लड़ रहे हो, लेकिन हम इंफाल व पोपा फ्रंट में बर्मा की आजादी का पहला दौर हार चुके हैं। हम देश की आजादी के लिए हार नहीं मानेंगे, साथियों इस नाजुक वक्त में मेरा एक हुक्म है और वह है कि यदि तुम वक्ती तौर पर हार भी गए, तो तिरंगे के नीचे लड़ते हुए बहादुरी की इस शान को दुनिया में जिंदा रखोगे।
अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारी आने वाली संतान गुलाम पैदा नहीं होगी। साथियों मैं तुम्हारे हाथों में प्यारे झंडे की शान और इज्जत को छोड़कर जा रहा हूं और मुझे यकीन है कि तुम हिंदुस्तान की फौज को आजाद कराने वाली फौज के पहले दस्ते हो. यहां तक हम अपनी जान भी हिंदुस्तान की इज्जत बचाने के लिए कुर्बान कर देंगे।  अगर मेरा अपना कोई जोर होता तो मैं तुम्हारे साथ रहता।
परंतु अफसोस, मैं तुम्हारी हार में शरीक नहीं हो सकता, लेकिन मैं आजादी की जद्दोजहद को जारी रखने के लिए और अफसरों की नसीहत से बर्मा छोड़ रहा हूं।  अगर मैं अंग्रेजों के कब्जे में आ गया तो वह मेरी क्या हालत करेंगे, इसलिए मैं दूसरी जगह पर जाकर देश को आजाद करवाने के लिए काम करूंगा। मैं देश की आजादी लिए लड़ाई जारी रखूंगा।
याद रखो अंधेरे के बाद ही उजाला होता है और हिंदुस्तान जरूर आजाद होगा. इंकलाब जिंदाबाद।
(नोट: जिस ब्लॉग से मैंने यह आर्टिकल लिया उसमें उल्लेखित था कि हिसार के लालचंद कस्बा ने अपनी डायरी में यह भाषण उर्दू में नोट किया था)

19 November 2011

समानता

 सोनू: मंदिर में रखी हुई नई चप्पल और मिस कॉल में क्या समानता है?
मोनू: दोनों को लेकर यह डर लगा रहता है कि कहीं कोई उठा न ले।

हार नहीं होती...

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढऩा न अखरता है।
आखऱि उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मु_ी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
(नोट: कवि का नाम पता नहीं है, जिस सज्जन को जानकारी हो कृपया बताएं)

आंसू


गर सलीका हो भीगी हुई आंखों को पढऩे का
तो बहते हुए आंसू भी अक्सर बात किया करते हैं...

16 November 2011

दिलचस्प जवाब

 
स्वामी विवेकानंद भारत की महान विभूति थे और उनके विराट व्यक्तित्व से हर कोई प्रभावित हो जाता था। ऐसे ही एक बार एक विदेशी महिला उनकी ज्ञान संपदा से प्रभावित होकर उन पर रीझ गई और उनसे शादी करने की जिद करने लगी। किसी संन्यासी के लिए दुविधा वाली स्थिति हो सकती थी, लेकिन स्वामीजी ने इसका दिलचस्प समाधान निकाला... 

एक बार जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए हुए थे। वहां एक महिला ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई। जब स्वामी विवेकानंद ने उस महिला से यह पूछा कि आप ने ऐसा प्रश्न क्यों किया? तो उस महिला का उत्तर था कि वह उनकी ज्ञान-बुद्धि से बहुत प्रभावित है और वह चाहती है कि उसका बेटा विवेकानंद के जैसा हो। उसे उनके जैसे ही बुद्धिमान बच्चे की कामना है। उसने फिर स्वामीजी से कहा कि क्या वो उससे शादी कर सकते हैं और उसे अपने जैसा एक बच्चा दे सकते हैं? इस पर स्वामीजी ने बिना विचलित हुए उस महिला से कहा- प्रिय महिला, मैं आपकी इच्छा को समझता हूं। शादी करना और इस दुनिया में एक बच्चा लाना और फिर जानना कि वो बुद्धिमान है कि नहीं, इसमें बहुत समय लगेगा। इसके अलावा ऐसा ही हो, यानी मेरे जैसा ही आपको बच्चा हो इसकी गारंटी भी नहीं है। मैं क्या कोई भी आपसे ऐसा दावा नहीं कर सकेगा कि होने वाला बच्चा मेरी तरह होगा। पर एक रास्ता है, जिससे बात बन सकती है। ऐसा कुछ हो सकता है, जिससे आपकी इच्छा पूरी हो सकती है और मजे की बात तो यह है कि इसके लिए आपको इंतजार भी नहीं करना पड़ेगा। महिला ने कौतुहल से स्वामीजी से पूछा- कौन सा रास्ता है वह बताइए मुझे, मैं उसे जानना चाहती हूं। विवेकानंद मुस्कराते हुए बोले-आप मुझे अपने बच्चे के रूप में स्वीकार कर लें। इस प्रकार आप मेरी मां बन जाएंगी और इस प्रकार मेरे जैसे बुद्धिमान बच्चा पाने की आपकी इच्छा भी पूरी हो जाएगी, महिला यह सुनकर अवाक रह गई। -

बुढ़ापा-जवानी



ये दुनिया अजब सरायफानी है
यहां की हर चीज आनी-जानी है
जो आ के न जाए, वो बुढ़ापा है
जो जा के ना आए, वो जवानी है

15 November 2011

अपनी जानकारियों के आधार पर हम धारणाएं बनाते हैं और उसी के अनुसार व्यक्ति से प्यार या नफरत करते हैं। लेकिन क्या हम कभी भी यह दावा करने की स्थिति में हैं कि जो हम जानते हैं उसमें ऐसा कुछ नया नहीं जुड़ेगा जो हमारी धारणाओं को बदल दे...
किसी से पूरा-पूरा नफरत या प्यार मत करो, एक गुंजाइश बनाकर चलो। हो सकता है  किसी रोज यह पता चले कि हम जिससे नफरत कर रहे थे वह नफरत के लायक ही नहीं था, बल्कि वह तो प्यार या सहानुभूति का पात्र था...
MAHATAMA BUDDHA AND ANGULIMAL
नफरत एक प्रबल मानवीय भावना है, जो हर इंसान में रहती है। साथ-ही-साथ एक दूसरी प्रतिक्रियात्मक भावना भी है, जिसे हम अपराधबोध कहते हैं। ये दोनों जस्बात समय-समय पर इंसान के भीतर उठते हैं। पर हर मौके पर हमारी नफरत जायज नहीं होती, इसीलिए हमें बाद में अपराधबोध होता है।
 दरअसल, प्यार या नफरत के पीछे हमारा पूर्वग्रह, कोई विशेष धारणा काम करती है। अपनी जानकारियों के आधार पर ही हम धारणाएं बनाते हैं, लेकिन हम कभी भी यह दावा करने की स्थिति में नहीं हैं कि जो हम जानते हैं उसमें कुछ ऐसा नया नहीं जुड़ेगा जो हमारी धारणाओं को बदल दे...
मिसाल के तौर पर डाकू अंगुलिमाल के नाम से हम सब वाकिफ हैं और बेहतर जानते हैं कि महात्मा बुद्ध से मिलने के बाद उसका हृदय परिवर्तन हुआ था। इस डाकू के लिए आमतौर पर सभी के अंदर एक क्रूर हत्यारे की छवि होगी। जीवहत्या करने वाले उस पापी के लिए हमारे भीतर नफरत की भावना होगी। लेकिन यदि यह पता चले कि उसके गुरू ने उसे गुरुदक्षिणा के रूप में हजार लोगों की हत्या करने कहा था, तब शायद उससे उतनी त्वरा के साथ नफरत नहीं हो पाएगी। और शायद उसके लिए मन में सहानुभूति भी पैदा होगी।
 एक और बदनाम चरित्र है... जुदास। इस व्यक्ति ने ही ईसा मसीह को उन लोगों के हाथ बेच दिया था, जिन्होंने जीजस को सूली  पर चढ़ाया था। साधारणत: यह किरदार भी नफरत के लायक ही है। लेकिन ओशो के एक आर्टिकल (ओशो के प्रवचनों को बुक का रूप दिया गया है) में पढ़ा कि जीजस अपने सिद्धांतों को अमर करने के लिए शहीद की मौत, असाधारण मौत चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि वे उन्हें उनके विरोधियों के हाथ बेच दें, लेकिन कोई राजी नहीं हुआ सिवाय जुदास के। तथ्यात्मक रूप से यह बात कितनी सही है, यह पता करने का कोई रास्ता नहीं है, लेकिन जुदास के प्रति यह नई जानकारी उसके प्रति एक नया नजरिया लेकर आती है, उसके लिए नफरत पोंछने के लिए प्रेरित करती है।
इसी तरह हॉलीवुड की एक्स मैन सीरिज की फिल्मों को लीजिए। इन्हें देखते हुए अनूठे एहसास होते हैं, कब पाला बदल जाता है, पता ही नहीं चलता। जो बुरा था, वह अच्छा लगने लगता है। जिससे नफरत थी, उसी से धीरे-धीरे सहानुभूति होने लगती है।  इस सीरिज के शुरुआती तीन पार्ट में जो विलेन है, वही बाद के दो भाग में हीरो का साथी (पाजीटिव कैरेक्टर) बन जाता है। असल में बाद के भागों में खलनायक का चरित्र पूरा विकसित होता है, उसका भूतकाल बताया जाता है, तो सैद्धांतिक रूप से उसका स्वार्थी होना, गलत नहीं लगता। उसकी क्रूरता भी सहानुभूति बटोर ले जाती है, क्योंकि बचपन पर हुए अत्याचार उसे निर्मम बनाने का काम करते हैं।
इसी प्रकार, गांधीजी की हत्या करने वाले नाथूराम गोड़से को लेकर भी सहसा जड़ बुद्धि वाले, क्रूर व्यक्ति की छवि ही मन में उभरती है। लेकिन जब उसकी तसवीर देखेंगे, तो ऐसा मालूम पड़ेगा, जैसे वह किसी विचारक का चेहरा है। और यह जानकर कि वह शिक्षित युवा था और पत्रकारिता भी करता था, तो सहज ही उसके व्यक्तित्व, उसकी विचार-प्रक्रिया के प्रति उत्सुकता पैदा होने लगती है। यहां न तो गोड़से के कृत्य को किसी विशेष कोण से तर्कसम्मत बनाने की कोशिश की जा रही है और न ही अचेतन को कुछ अलग समझाने का प्रयास किया जा रहा है। यकीनन गांधीजी की हत्या अक्षम्य है और गोड़से कभी सहानुभूति का पात्र नहीं हो सकता। यहां बात की जा रही है केवल विचार प्रक्रिया की... कि गोड़से से जुड़ी नई जानकारियां जिज्ञासा का कारण बनने लगती हैं।
बहरहाल, यह तो हुई नफरत की बात, अब इसका दूसरा पहलू भी है, जब हम किसी पर अंधविश्वास करते हैं। ऐसा भी अक्सर होता है कि जब हम किसी व्यक्ति को पूरी तरह से ईमानदार, काबिल, सच्चा, विश्वसनीय या प्यार के लायक मानते हैं। पर कई बार उसी शख्स के बारे में कुछ बातें हमारे विश्वास को ठेस पहुंचाती है। मिसाल के तौर पर तिहाड़ की रोटियां तोड़ते कई नामचीन चेहरे... कहीं-न-कहीं इन्होंने किसी-न-किसी के विश्वास को ही छला है। कुल मतलब यही है कि हमें यह बात समझना जरूरी है कि जीवन पानी की तरह तरल है और इसमें उतनी ही तरंगे हैं, जिसे लचीलेपन के साथ ही पकड़ा जा सकता है। लेकिन हम अपने मत, सिद्धांत में जकड़े रहते हैं, उसे सख्ती से पकड़े रहते हैं और  यह बात भूल जाते हैं कि जो हम जानते  हैं, जितना हम जानते हैं, जरूरी नहीं है कि बात वहीं तक हो। हो सकता है कुछ ऐसा भी हो जो हमसे छूट रहा हो, हमारे ख्याल में न आया हो। इसलिए एक गुंजाइश बनाकर चलना ही चाहिए। सोच में लचीलापन होना ही चाहिए...
 (यह आर्टिकल  राहे जिंदगी है. .. जरा गुंजाइश बनाकर चल दोस्त... शीर्षक के साथ थोड़ा बदले स्वरूप में दैनिक भास्कर के संपादकीय पेज में 18 फरवरी 2012 को प्रकाशित हुआ है, इसकी लिंक दी गई है--- 
http://www.bhaskar.com/article/ABH-rahes-life-2874896.html  


उड़ान



मंजिल उन्हें मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है
पंख से कुछ नहीं होता, हौसले से उड़ान होती है।

14 November 2011

जिंदगी

जिंदगी इतनी छोटी है कि इसे खूबसूरत ही होना चाहिए।

शब्द





किन शब्दों में दूं परिभाषा
हर शब्द तुमसे छोटा लगता है

सरस्वती सी ज्ञान की गंगा
लक्ष्मी का भंडार तुम ही हो

सुबह की बेला दिन की धूप
गोधूलि की शाम तुम ही हो

थके पथिक की अंकशायिनी
रात्रि का विश्राम तुम ही हो।।
(नोट: इस कविता को किसने लिखा है मुझे नहीं पता, यदि किसी सज्जन को मालूम हो तो कृपया जरूर बताएं।)
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नकल


सोनू, मोनू परीक्षा हाल में लड़ रहे थे। टीचर ने सोनू से इसकी वजह पूछी तो वह बोला- सरजी मोनू ने आंसरशीट पूरी खाली छोड़ दी है। टीचर ने कहा- इससे तुम्हें क्या परेशानी है? सोनू- सर आंसरशीट में मैंने भी कुछ नहीं लिखा है और सब ये सोचेंगे कि मैंने मोनू की नकल मार रहा हूं।

आरजू

मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे
बाकी न मैं रहूं, न मेरी आरजू रहे
जब तक तन में जान और लहू रहे
तेरा ही जिक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे
       - अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल

12 November 2011

बात इतनी सी...

बात इतनी सी कहानी हो गई
एक चुनर और धानी हो गई
गंध ले जाती बिना मांगे हवा
देह जबसे रातरानी हो गई 


एक दस्तूर किया तुमने
प्यार मशहूर किया तुमने
कांच के टुकड़े को तराशकर
एक कोहिनूर किया तुमने


सूखी नदी को सागर तो
सेहरा को पूर किया तुमने
पिलाकर प्राणों को मदिरा
नशे में चूर किया तुमने।
                                     
(नोट: इस कविता को किसने लिखा है मुझे नहीं पता, यदि किसी सज्जन को मालूम हो तो कृपया जरूर बताएं।)

04 November 2011

आ चल के तुझे...


सपनों के ऐसे जहां में, जहां प्यार ही प्यार खिला हो,
हम जा के वहां खो जाएं, शिकवा न कोई गिला हो।
कहीं बैर न हो, कोई गैर न हो, सब मिल के यूं चलते चलें
जहां गम भी न हो, आंसू भी न हो, बस प्यार ही प्यार पले

आ चल के तुझे मैं ले के चलूं एक ऐसे गगन के तले
जहां गम भी न हो आंसू भी न हो, बस प्यार ही प्यार पले।।
(किशोर दा का गाया, उन्ही का लिखा, उन्ही के द्वारा निर्मित-निर्देशित फिल्म दूर गगन की छांव में फिल्म का यह गीत है। उपरोक्त लाइनों के चलते यह मेरा सबसे ज्यादा पसंदीदा गीत है।)


03 November 2011

मिट्टी का दीया


दीवाली का दीया, रोशनी का दीया
खुशियां बिखेरता मिट्टी का दीया

रोशनी ही दीन, रोशनी ईमान
बस रोशनी लुटाता, मिट्टी का दीया

महल हो कुटिया हो, नगर हो गांव
हर ओर जगमगाता, मिट्टी का दीया

दूरियां मिट जाए, सब अपने हो जाएं
हर दिल में जले, प्यार का दीया

अंधेरे का अंत, उजाले का आगाज
देता है संदेश, दीवाली का दीया
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