19 September 2015

एकांत और रचनात्मकता

रचनात्मकता के लिए ‘एकांत’ अथवा ‘निजता’ का बड़ा महत्व है. विश्व इतिहास में अनेक महान रचनाशील चिन्तक, वैज्ञानिक, और कलाकार हुए हैं जिन्होंने एकांत के क्षणों में दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया. ऐसे ही कुछ महान व्यक्तियों जीवन और निजता पर उनके विचारों की बानगी आपके लिए प्रस्तुत है.वोल्फगैंग अमेडियस मोज़ार्ट 
 मोज़ार्ट उन्नीसवीं शताब्दी के महान शास्त्रीय संगीतकार थे. उन्होंने 600 से भी अधिक अमर धुनों की रचना की. पैंतीस वर्ष की अवस्था में ही उनका निधन हो गया.
“घोड़ागाड़ी के भीतर सफ़र करते समय, भोजन के बाद की सैर के वक़्त या नींद की तलाश में अपने बिस्तर पर मैं खुद के साथ, निपट अकेला और अपने में मगन रहता हूँ. यही वे क्षण हैं जब मेरे विचारों की श्रृंखला निर्बाध चलती है और रचनात्मकता फूट पड़ती है”.
अलबर्ट आइन्स्टीन – 
 सैद्धांतिक भौतिकविद, दार्शनिक, और लेखक के रूप में विभूषित होने वाले विद्वान और बीसवीं शती के सबसे चर्चित और प्रभावशाली वैज्ञानिक. इन्हें आधुनिक भौतिकी का जनक भी कहते हैं.
“हांलांकि मैं नियत समय के अनुसार काम करता हूँ पर मुझे अचानक ही समुद्रतट पर अकेले लम्बी सैर पर चल  पड़ना अच्छा लगता है. उस समय मैं अपने भीतर हो रही हलचल को सुन सकता हूँ. जब मेरा काम नहीं बन रहा हो तब मैं उसे बीच में ही छोड़कर लेट जाता हूँ और छत को निहारता रहता हूँ. तब मेरी कल्पनाशक्ति मेरे समक्ष साकार हो उठती है. मैं उसे देख और सुन भी सकता हूँ.”
फ्रेंज काफ्का 
 बीसवीं शताब्दी के सर्वथा मौलिक रचनाकार थे. उनके लघु उपन्यासों और छोटी-छोटी कहानियों को आधुनिक साहित्य में बेजोड़ माना जाता है.
“तुम्हें अपना कमरा छोड़कर कहीं जाने की ज़रुरत नहीं है. अपनी टेबल पर बैठकर ध्यान से सुनते रहो. तुम्हें सुनने की ज़रुरत भी नहीं है – बस इंतजार करो… शांत और अचल रहने का प्रयास करो. यह दुनिया खुद-बखुद तुम्हारे सामने स्वयं को उजागर करेगी. इसके सामने और कोई विकल्प नहीं है…यह भावातिरेक में तुम्हारे पैरों पर उमड़ पड़ेगी.”
निकोला टेस्ला 
 आविष्कारक और विद्युत के व्यापारिक उत्पादन के क्षेत्र में सर्वाधिक योगदान देनेवाले वैज्ञानिक. विद्युत चुम्बकत्व के क्षेत्र में उनकी खोज ने अनेक वैज्ञानिकों को प्रेरित किया.
“एकांत में हमारा मन केन्द्रित और स्पष्ट हो जाता है. निजता के क्षणों में मौलिकता उर्वर हो जाती है और इसपर बाहरी उद्दीपनों का प्रभाव नहीं पड़ता. कुछ पल अकेले रहकर देखिये – यही आविष्कारकों का रहस्य है. अकेले रहिये और अपने विचारों को जन्म लेते देखिये.”
जोज़फ़ हैडेन 
ऑस्ट्रिया के संगीतज्ञ हैडेन ने अपना लगभग पूरा जीवन एक धनिक के निजी संगीतज्ञ के रूप में उनकी दूरस्थ रियासत पर व्यतीत किया. इस तरह उनपर दूसरे संगीतज्ञों और रचनाकारों का प्रभाव नहीं पड़ा. उन्हीं के शब्दों में – “मौलिक होना तो जैसे मेरी मजबूरी ही थी”.

योहान वोल्फगैंग वोन गोथे 
– जर्मनी के बहुश्रुत लेखक. कविता, नाटक, धार्मिक साहित्य, दर्शन, और विज्ञान के विषयों पर उनका समान अधिकार था.
“सामाजिकता हमें सिखा सकती है पर निजता हमें प्रेरित करती है”.

पाब्लो पिकासो 
 बीसवीं शती के लम्बे कालखंड में अपनी विविध रचना शैलियों के कारण आधुनिक कला पर अपनी अभिनव छाप छोड़नेवाले कलाकार. उनकी क्रांतिकारी उपलब्धियों के कारण वे अत्यधिक सम्मानित और समृद्ध हुए. बीसवीं शती के संभवतः एकमात्र प्रतिनिधि कलाकार.
“गहन एकांत के बिना गंभीर कर्म कर पाना मुमकिन नहीं है”.
थॉमस मान 
महान जर्मन उपन्यासकार, कथाकार, आलोचक, मानवतावादी, निबंधकार और 1929 के नोबल पुरस्कार विजेता. वे अपने लेखन में गहन प्रतीकों और विसंगतियों के चित्रण और मानव स्वभाव की परख करनेवाले साहित्यकार के रूप में प्रसिद्द हैं.
“एकांत के क्षणों में हमारे भीतर कुछ मौलिक उपजता है – जैसे अनजानी खूबसूरत या ध्वंसात्मक कविता.”

18 September 2015

दलाई लामा

किसी ने दलाई लामा से पूछा, “मनुष्यों के संबंध में वह कौन सी चीज़ है जो आपको सबसे अधिक आश्चर्यचकित करती है?” दलाई लामा ने कहा. “स्वयं मनुष्य…
क्योंकि वह पैसे कमाने के लिए अपने स्वास्थ्य को गंवाता है.
फिर वह उसी पैसे से अपने स्वास्थय को संजोने का प्रयास करता है.
वह अपने भविष्य को लेकर इतना चिंतित रहता है कि वर्तमान को ठीक से नहीं जी पाता है.
इसके फलस्वरूप वह न तो वर्तमान में और न भविष्य में ही सुखपूर्वक जीता है,
वह ऐसे जीता है जैसे उसे कभी नहीं मरना है, और पूरी तरह जिए बिना ही मर जाता है”

15 September 2015

आलू, अंडे, और कॉफ़ी

बुरे दिनों के दौरान एक बेटी ने अपने पिता से कहा, “ये समय कितना कठिन है! मैं अब बहुत थक गई हूं, भीतर-ही-भीतर टूट गई हूं. जब तक हम एक मुसीबत से दो-चार होते हैं तब तक नई मुसीबतें मुंह बाए खड़ी हो जाती हैं. ऐसा कब तक चलेगा?”
पिता किसी जगह खाना बनाने का काम करता था. वह बिना कुछ बोले उठा और उसने सामने रखे चूल्हे पर तीन बर्तनों में पानी भरकर तेज आंच पर चढ़ा दिया.
जब पानी उबलने लगा, उसने एक बर्तन में आलू, दूसरे में अंडे, और तीसरे बर्तन में कॉफ़ी के बीज डाल दिए. फिर वह चुपचाप अपनी कुर्सी तक आकर बेटी की बातें सुनने लगा. वह वाकई बहुत दुखी थी और यह समझ नहीं पा रही थी कि पिता क्या कर रहे हैं.
कुछ देर बाद पिता ने बर्नर बंद कर दिए और आलू और अंडे को निकालकर एक प्लेट में रख दिया और एक कप में कॉफ़ी ढाल दी. फिर उसने अपनी बेटी से कहाः
“अब तुम बताओ कि ये सब क्या है?”
बेटी ने कहा, “आलू, अंडे और कॉफ़ी ही तो है. और क्या है?”
“नहीं, इन्हें करीब से देखो, छूकर देखो”, पिता ने कहा.
बेटी ने आलू को उठाकर देखा, वे नरम हो गए थे. अंडा पानी में उबलने पर सख्त हो गया था और कॉफ़ी से तरोताज़ा कर देने वाली महक उठ रही थी.
“लेकिन मैं समझी नहीं कि आप क्या बताना चाह रहे हैं”, उसने कहा.
पिता ने उसे समझाया, “मैंने आलू, अंडे और कॉफ़ी को एक जैसी यंत्रणा याने खौलते पानी से गुज़ारा, लेकिन इनमें से हर एक ने उसका सामना अपनी तरह से किया. आलू पहले तो कठोर और मजबूत थे, लेकिन खौलते पानी का सामना करने पर वे नर्म-मुलायम हो गए. वहीं दूसरी ओर, अंडे नाज़ुक और कमज़ोर थे और इनका पतला छिलका भीतर की चीज़ को बचाए रखता था. खौलते पानी ने उसको ही कठोर बना दिया. अब कॉफ़ी, इसका मामला सबसे जुदा है. उबलते पानी का साथ पाकर इन्होंने उसे ही बदल डाला. इन्होंने पानी को एक ऐसी चीज़ में रूपांतरित दिया जो तुम्हें खुशनुमा अहसास से सराबोर कर देती है.”
“अब तुम मुझे बताओ”, पिता ने पूछा, “जब मुसीबतें तुम्हारा द्वार खटखटाती हैं तो तुम क्या जवाब देती हो? तुम इन तीनों में से क्या हो?”

13 September 2015

भिक्षुणी अम्बपाली (आम्रपाली) के अद्भुत उद्गार

भगवान बुद्ध के प्रभाव में आकर वैशाली की पिंगला-गणिका अम्बपाली (आम्रपाली) एक दिन भिक्षुणी हो गई. उसने समाधि की उच्चतम अवस्था का स्पर्श किया और पूर्णता प्राप्त भिक्षुणियों में वह एक हुई. अपने निरंतर जर्जरित होते हुए शरीर में बुद्ध-वचनों की सत्यता को प्रतिफलित होते देख अम्बपाली हमारे लिए कुछ उद्गार छोड़ गयी है जो अनित्यता की भावना से भरे हुए हैं. वह कहती है:-
काले, भौंरे के रंग के सामान, जिनके अग्र भाग घुंघराले हैं, ऐसे एक समय मेरे बाल थे.
वही आज जरावस्था में जीर्ण सन के समान हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
पुष्पाभरणों से गुंथा हुआ मेरा केशपाश कभी हजारा चमेली के पुष्प की सी गंध वहन करता था.
उसी में से आज जरावस्था में खरहे के रोओं की सी दुर्गन्ध आती है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
कंघी और चिमटियों से सजा हुआ मेरा सुविन्यस्त केशपाश कभी सुन्दर रोपे हुए सघन उपवन के सदृश शोभा पाता था.
वही आज जराग्रस्त होकर जहाँ-तहाँ से बाल टूटने के कारण विरल हो गया है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सोने के गहनों से सुसज्जित, महकती हुई सुगंधियों से सुशोभित, चोटियों से गुंथा हुआ कभी मेरा सिर रहा करता था.
वही आज जरावस्था में भग्न और नीचे लटका हुआ है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
चित्रकार के हांथों से कुशलतापूर्वक अंकित की हुई जैसे मेरी दो भौंहें थीं.
वही आज जरा के कारण झुर्रियां पड़ कर नीचे लटकी हुई हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
गहरे नीले रंग की दो उज्जवल, सुन्दर, मणियों के समान मेरे दो विस्तृत नेत्र थे.
वही आज बुढ़ापे से अभिहत हुए भद्दे और आभाहीन हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
उठते हुए यौवन की सुन्दर शिखर के समान वह मेरी कोमल, सुदीर्घ नासिका थी.
वही आज जरावस्था में दबकर पिचकी हुई है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
पूरी कारीगरी के साथ बनाये हुए, सुन्दर, सुगठित कंकण के समान, कभी मेरे कानों के सिरे थे.
वही आज जरावस्था में झुर्री पड़कर नीचे लटके हुए हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
कदली-पुष्प की कली के समान रंगवाले कभी मेरे सुन्दर दांत थे.
वही आज जरावस्था में खंडित होकर जौ के समान पीले रंगवाले हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
वनचारिणी कोकिला की मधुर कूक के समान एक समय मेरी प्यारी मीठी बोली थी.
वही आज जरा के कारण स्खलित और भर्राई हुई है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
अच्छी तरह खराद पर रखे हुए, चिकने शंख के समान, एक समय मेरी सुन्दर ग्रीवा थी.
वही आज जरावस्था में टूटकर नीचे लटकी हुई है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सुगोल गदा के समान एक समय मेरी दोनों सुन्दर बांहें थीं.
वही आज जरावस्था में पाडर वृक्ष की दुर्बल शाखाओं के समान हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सुन्दर मुंदरी और स्वर्णालंकारों से विभूषित कभी मेरे हाथ रहते थे.
वही आज जरा के कारण गाँठ-गठीले हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
स्थूल, सुगोल, उन्नत, कभी मेरे स्तन सुशोभित होते थे.
वही आज जरावस्था में पानी से रीती लटकी हुई चमड़े की थैली के सदृश हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सुन्दर, विशुद्ध, स्वर्ण-फलक के समान कभी मेरा शरीर चमकता था.
वही आज जरावस्था में झुर्रियों से भरा हुआ है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
हाथी की सूंड के समान कभी मेरे सुन्दर उरु-प्रदेश थे.
वही आज पोले बांस की नली के समान हो गए हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्
या नहीं होते.
सुन्दर नूपुर और स्वर्णालंकारों से सजी हुई कभी मेरी जंघाएँ रहती थीं.
वही आज जरावस्था में तिल के सूखे डंठल के समान हो गईं हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सुन्दर, सुकोमल, रुई के फाहे के समान कभी मेरे दोनों पैर थे.
वही आज जरावस्था में झुर्रियां पड़कर सूखे काठ से हो गए हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
एक समय यह शरीर ऐसा था. इस समय वह जर्जर और बहुत दुखों का घर है.
जीर्ण घर जैसे बिना लिपाई-पुताई के गिर जाता है, उसी प्रकार यह जरा का घर, यह शरीर बिना थोड़ी सी रखवाली किये गिर जायेगा.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
(श्री भरतसिंह उपाध्याय की पुस्तक ‘बुद्ध और बौद्ध साधक’ से लिया गया अंश, आभार सहित)