बुरे
दिनों के दौरान एक बेटी ने अपने पिता से कहा, “ये समय कितना कठिन है! मैं
अब बहुत थक गई हूं, भीतर-ही-भीतर टूट गई हूं. जब तक हम एक मुसीबत से दो-चार
होते हैं तब तक नई मुसीबतें मुंह बाए खड़ी हो जाती हैं. ऐसा कब तक चलेगा?”
पिता
किसी जगह खाना बनाने का काम करता था. वह बिना कुछ बोले उठा और उसने सामने
रखे चूल्हे पर तीन बर्तनों में पानी भरकर तेज आंच पर चढ़ा दिया.
जब
पानी उबलने लगा, उसने एक बर्तन में आलू, दूसरे में अंडे, और तीसरे बर्तन
में कॉफ़ी के बीज डाल दिए. फिर वह चुपचाप अपनी कुर्सी तक आकर बेटी की बातें
सुनने लगा. वह वाकई बहुत दुखी थी और यह समझ नहीं पा रही थी कि पिता क्या
कर रहे हैं.
कुछ
देर बाद पिता ने बर्नर बंद कर दिए और आलू और अंडे को निकालकर एक प्लेट में
रख दिया और एक कप में कॉफ़ी ढाल दी. फिर उसने अपनी बेटी से कहाः
“अब तुम बताओ कि ये सब क्या है?”
बेटी ने कहा, “आलू, अंडे और कॉफ़ी ही तो है. और क्या है?”
“नहीं, इन्हें करीब से देखो, छूकर देखो”, पिता ने कहा.
बेटी
ने आलू को उठाकर देखा, वे नरम हो गए थे. अंडा पानी में उबलने पर सख्त हो
गया था और कॉफ़ी से तरोताज़ा कर देने वाली महक उठ रही थी.
“लेकिन मैं समझी नहीं कि आप क्या बताना चाह रहे हैं”, उसने कहा.
पिता
ने उसे समझाया, “मैंने आलू, अंडे और कॉफ़ी को एक जैसी यंत्रणा याने खौलते
पानी से गुज़ारा, लेकिन इनमें से हर एक ने उसका सामना अपनी तरह से किया.
आलू पहले तो कठोर और मजबूत थे, लेकिन खौलते पानी का सामना करने पर वे
नर्म-मुलायम हो गए. वहीं दूसरी ओर, अंडे नाज़ुक और कमज़ोर थे और इनका पतला
छिलका भीतर की चीज़ को बचाए रखता था. खौलते पानी ने उसको ही कठोर बना दिया.
अब कॉफ़ी, इसका मामला सबसे जुदा है. उबलते पानी का साथ पाकर इन्होंने उसे
ही बदल डाला. इन्होंने पानी को एक ऐसी चीज़ में रूपांतरित दिया जो तुम्हें
खुशनुमा अहसास से सराबोर कर देती है.”
“अब
तुम मुझे बताओ”, पिता ने पूछा, “जब मुसीबतें तुम्हारा द्वार खटखटाती हैं
तो तुम क्या जवाब देती हो? तुम इन तीनों में से क्या हो?”
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