13 September 2015

भिक्षुणी अम्बपाली (आम्रपाली) के अद्भुत उद्गार

भगवान बुद्ध के प्रभाव में आकर वैशाली की पिंगला-गणिका अम्बपाली (आम्रपाली) एक दिन भिक्षुणी हो गई. उसने समाधि की उच्चतम अवस्था का स्पर्श किया और पूर्णता प्राप्त भिक्षुणियों में वह एक हुई. अपने निरंतर जर्जरित होते हुए शरीर में बुद्ध-वचनों की सत्यता को प्रतिफलित होते देख अम्बपाली हमारे लिए कुछ उद्गार छोड़ गयी है जो अनित्यता की भावना से भरे हुए हैं. वह कहती है:-
काले, भौंरे के रंग के सामान, जिनके अग्र भाग घुंघराले हैं, ऐसे एक समय मेरे बाल थे.
वही आज जरावस्था में जीर्ण सन के समान हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
पुष्पाभरणों से गुंथा हुआ मेरा केशपाश कभी हजारा चमेली के पुष्प की सी गंध वहन करता था.
उसी में से आज जरावस्था में खरहे के रोओं की सी दुर्गन्ध आती है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
कंघी और चिमटियों से सजा हुआ मेरा सुविन्यस्त केशपाश कभी सुन्दर रोपे हुए सघन उपवन के सदृश शोभा पाता था.
वही आज जराग्रस्त होकर जहाँ-तहाँ से बाल टूटने के कारण विरल हो गया है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सोने के गहनों से सुसज्जित, महकती हुई सुगंधियों से सुशोभित, चोटियों से गुंथा हुआ कभी मेरा सिर रहा करता था.
वही आज जरावस्था में भग्न और नीचे लटका हुआ है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
चित्रकार के हांथों से कुशलतापूर्वक अंकित की हुई जैसे मेरी दो भौंहें थीं.
वही आज जरा के कारण झुर्रियां पड़ कर नीचे लटकी हुई हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
गहरे नीले रंग की दो उज्जवल, सुन्दर, मणियों के समान मेरे दो विस्तृत नेत्र थे.
वही आज बुढ़ापे से अभिहत हुए भद्दे और आभाहीन हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
उठते हुए यौवन की सुन्दर शिखर के समान वह मेरी कोमल, सुदीर्घ नासिका थी.
वही आज जरावस्था में दबकर पिचकी हुई है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
पूरी कारीगरी के साथ बनाये हुए, सुन्दर, सुगठित कंकण के समान, कभी मेरे कानों के सिरे थे.
वही आज जरावस्था में झुर्री पड़कर नीचे लटके हुए हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
कदली-पुष्प की कली के समान रंगवाले कभी मेरे सुन्दर दांत थे.
वही आज जरावस्था में खंडित होकर जौ के समान पीले रंगवाले हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
वनचारिणी कोकिला की मधुर कूक के समान एक समय मेरी प्यारी मीठी बोली थी.
वही आज जरा के कारण स्खलित और भर्राई हुई है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
अच्छी तरह खराद पर रखे हुए, चिकने शंख के समान, एक समय मेरी सुन्दर ग्रीवा थी.
वही आज जरावस्था में टूटकर नीचे लटकी हुई है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सुगोल गदा के समान एक समय मेरी दोनों सुन्दर बांहें थीं.
वही आज जरावस्था में पाडर वृक्ष की दुर्बल शाखाओं के समान हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सुन्दर मुंदरी और स्वर्णालंकारों से विभूषित कभी मेरे हाथ रहते थे.
वही आज जरा के कारण गाँठ-गठीले हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
स्थूल, सुगोल, उन्नत, कभी मेरे स्तन सुशोभित होते थे.
वही आज जरावस्था में पानी से रीती लटकी हुई चमड़े की थैली के सदृश हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सुन्दर, विशुद्ध, स्वर्ण-फलक के समान कभी मेरा शरीर चमकता था.
वही आज जरावस्था में झुर्रियों से भरा हुआ है.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
हाथी की सूंड के समान कभी मेरे सुन्दर उरु-प्रदेश थे.
वही आज पोले बांस की नली के समान हो गए हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्
या नहीं होते.
सुन्दर नूपुर और स्वर्णालंकारों से सजी हुई कभी मेरी जंघाएँ रहती थीं.
वही आज जरावस्था में तिल के सूखे डंठल के समान हो गईं हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
सुन्दर, सुकोमल, रुई के फाहे के समान कभी मेरे दोनों पैर थे.
वही आज जरावस्था में झुर्रियां पड़कर सूखे काठ से हो गए हैं.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
एक समय यह शरीर ऐसा था. इस समय वह जर्जर और बहुत दुखों का घर है.
जीर्ण घर जैसे बिना लिपाई-पुताई के गिर जाता है, उसी प्रकार यह जरा का घर, यह शरीर बिना थोड़ी सी रखवाली किये गिर जायेगा.
सत्यवादी (तथागत) के वचन कभी मिथ्या नहीं होते.
(श्री भरतसिंह उपाध्याय की पुस्तक ‘बुद्ध और बौद्ध साधक’ से लिया गया अंश, आभार सहित)

1 comment:

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