01 March 2017

"व्यंग्य : अफरीदी तुम संन्यास कैसे ले सकते हो?"

आपने सुना! च्साहिबजादाज् ने फिर संन्यास ले लिया है। नहीं पहचान रहे... अरे! अफरीदी... अपना शाहिद अफरीदी... उसकी बात कर रहा हूं... ये उसका ही ऑफिशियल नाम है। कैसा फील आ रहा है... मिजाज से मेल खाता है ना?  खैर, अपने बब्बा ने फिर बल्ला टांग दिया है। अरे! आप तो हंसने लगे... प्लीज हंसिए मत.... शुरू में मैं भी हंसा था। लेकिन जब देखा कि ब्रेकिंग न्यूज चल रही है- च्इस बार का संन्यास पूरा सच्चा वाला है... हंड्रेड परसेंट डेफिनिट...ज् तब मेरी हंसी गुम हो गई थी। मुझे यकीन नहीं हो पा रहा था,  ऐसा कैसे हो गया? ऐसा कैसे हो सकता है? हमारा च्स्वीट सिक्सटीनज्, च्डटीज़् सिक्स्टीज् कैसे बन सकता है? वह पक्का वादा कैसे कर सकता है? वह इतना बूढ़ा, यानी मैच्योर तो कभी न था... बल्कि उसके लटके-झटके, उसके कारनामों से तो यही लगता था कि उसका बचपना गया ही नहीं है... और कभी जाएगा भी नहीं। 
लेकिन जब बार-बार दोहराया जाने लगा कि च्वह मैच्योर हो गया है, मैच्योर हो गया है...ज् तो थोड़ा यकींन आने लगा। वो कहते हैं ना झूठ को बार-बार कहने से वो सच हो जाता है। तो इसलिए अब मुझे भी लग रहा है हमारा सदाबहार सिकंदर... चिरयुवा

कलंदर सचमुच बूढ़ा (मैच्योर) हो गया है। और इसके बाद मुझे अब मैच्योरिटी पर गुस्सा आ रहा है। ये भी साली बड़ी ऊटपटांग चीज है, कभी-भी किसी को आ जाती है... इसके चक्कर में ही व्यक्ति अनाप-शनाप फैसले ले लेता है। और इसका उम्र से तो कोई कनेक्शन ही नहीं होना चाहिए। अब देखिए ना... लोग-बाग यही कह रहे हैं, अपना साहिबा इसी उम्र के प्रेशर में आ गया है। वह 36 का हो गया है, इसीलिए उसने सच्चा वाला संन्यास लिया है। 
अब मेरे लिए यह दूसरा झटका है... पहला तो उसकी मैच्योरिटी और दूसरा उसकी उमर। मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है कि अपना छोटा चेतन सीधे 36 का कैसे हो गया है? अब तक तो न उसे युवा होते सुना था न अधेड़। मुझे तो यही लगता था कि वे हमेशा 16-17 साल के लौंडे-लपाटे ही रहेंगे, ता-उम्र मैदान में लोलो-लपाटा करते नजर आएंगे। 
अब आप ऐसा मत सोचिए कि मैं कोई उनका अंतरंग साथी हूं और उनके अंदरूनी शारीरिक बदलावों को करीब से देखता रहता हूं, इसलिए मुझे ऐसा लग रहा है। अपनी कल्पनाशक्ति को जरा नैतिकता के दायरे में ही उड़ान भरने दें। बात असल में यूं है कि  96-97 में जब उन्होंने डेब्यू किया था, तब भी उनकी उम्र 16 साल ही थी और बाद के सालों में जब भी उमर का मसला खड़ा होता तो वे अंडर-16 ही कहे जाते थे। इसीलिए मेरी बुद्धि ने (पूरी तरह साजिशन) मान लिया था कि वे कभी च्बड़ेज् ही नहीं होंगे...  वे सुकुमार हैं, नौनिहाल हैं, कभी बूढ़े ही नहीं होंगे। वास्तव में अपन तो यही माने बैठे थे वे जनाना हैं... मेरा मतलब जनानियों की तरह हैं... यानी उनकी उम्र ठहरी ही रहेगी। 
अब महिलाओं को तो आप जानते ही हैं...उनकी भी उम्र कभी बढ़ती ही नहीं है। वे भी अपने को चिर युवा, सदा जवान मानती हैं। 50 के पेटे पर भले ही पहुंच जाएं, लेकिन होड़ लेने की बात हो तो मुकाबला किसी षोडशी से ही करती हैं। इसीलिए तो कोमलांगियों से उम्र पूछने का रिवाज नहीं है... बल्कि ऐसा करना तो गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। लेकिन विडंबना देखिए, हमारे वंडर बाय की तो कोई वैल्यू ही नहीं समझी जाती थी। कुछ लोग उनकी उम्र पर भी लाल स्याही लगाते थे। और यह  गुनाह-ए-लज्जत करने वाले कौन... अपने ही पाले वाले...बिरादरी भाई... वही आदमी जात... वही पुरुष पत्रकार...। अरे कमबख्तों.... तुम्हें तो गर्व  करना था कि पुरुष समाज के पास भी महिलाओं को टक्कर देने वाला एक नगीना है... ऐसा नगीना जो पूरी महिला बिरादरी से अकेले लोहा लेता है। पर नाशुक्रे ऐसे नायाब हीरे की कदर ही नहीं करते थे।
खैर, पाकिस्तान के पास यदि अफरीदी जैसा अजूबा है तो हिंदुस्तान के पास भी अपना कोहिनूर है। हिंदुस्तानियों को गिल्टी फील करने की, अंडर स्टीमेट होने की बिलकुल जरूरत नहीं है। अगर उधर कोई चिरयुवा है तो इधर हमारे पास भी युवराज है। 42 साल का युवराज... अपना राहुल बाबा। दस-बारह साल पहले भी वे युवराज थे... आज भी युवराज ही कहे जाते हैं, और 52 के भी हो जाएंगे, तब भी शायद प्रिंस ही माने जाएंगे। इस ऐंगल से तो अपने राहुल भी अफरीदी की तरह चिरयुवा ही हैं।  और हो सकता है वे भी युवा रहते हुए सीधे बूढ़े हो जाएं,  यानी रिटायर हो जाएं, यानी कोई काम न करें। 
पर लगता है, ऐसा शायद  कभी नहीं होगा।  दरअसल, वे जिस पेशे से आते हैं, उसमें कोई रिटायर ही नहीं होता है। कब्र में पांव लटकने वालों की महत्वाकांक्षा भी सातवें आसमान तक उड़ान भरती है। यकीन मानिए, राजनीति सदा सुहागन रहती है... इसमें जब चाहे चौका मार सकते हैं। हमारे आडवाणी जी और तिवारी जी को ही लीजिए.... उन्हें देखकर क्या आपको नहीं लगता कि अब भी वे कुछ कर गुजरने में ही लगे हैं। और जब ऐसे धाकड़ जमे हुए हैं तो अपने बाबा तो अभी यंग हैं और कुछ लोग तो उन्हें युवा भी नहीं मानते... बच्चा समझते हैं और प्यार से पप्पू बुलाते हैं। उनकी पार्टी की ही शीलाजी समझती हैं कि उनकी उमर कम है... उनमें मैच्योरिटी (फिर वही मैच्योरिटी) आना बाकी है। ...तो इसलिए राहुल के रिटायरमेंट का सवाल ही पैदा नहीं होता, बल्कि ऐसा सोचना भी पाप होगा... उसी तरह जैसे किसी महिला से उसकी उमर पूछना। तो यह तय रहा, राहुल ना तो जवानी से रिटायर होंगे और न ही राजनीति से। वे कुछ-न-कुछ तो करेंगे ही... और कुछ नहीं तो मार्गदर्शक मंडल से मार्ग बताने का ही काम करेंगे। 
वैसे, बात अगर रिटायरमेंट की ही है तो डाउट तो अपने साहिबजादे के मामले में भी है... उसके पक्के वाले वादे के बाद भी। नहीं, मैं ऐसा बिलकुल नहीं कह रहा हूं कि राजनीति की तरह क्रिकेट में भी आखिर तक च्चौके-छक्केज् मारे जा सकते हैं। यकीनन, क्रिकेट राजनीति जैसी नहीं है, यहां सब टाइम-टू-टाइम होता है... रिटायरमेंट भी। पर यह मामला थोड़ा अलग है। यह मामला सरहद पार का है और आप तो जानते ही हैं, वहां कुछ भी हो जाता है...  किसी का कोई माई-बाप नहीं है। वहां तो खेल में भी सियासत घुसी है और सियासत में बड़े-बड़े खेल हो जाते हैं। राजनीति को खेल समझ लिया जाता है और खेल में राजनीति हो जाती है। एक्च्युअल में वहां सियासत वाले खिलाडिय़ों से प्रेरणा लेते हैं और खिलाड़ी राजनीतिज्ञों को रोल मॉडल मानते हैं। इसीलिए वहां के सियासतदार कभी-भी, किसी का भी खेल कर देते हैं। खेल-खेल में जेल भिजवा देते हैं, खेल-खेल में तख्ता पलट देते हैं। पूरी खिलाड़ी भावना से एक-दूसरे का गेम बजाने में लगे रहते हैं।  
और जहां तक खेल में सियासत की बात... वहां भी पड़ोसियों को वाकओवर मिला हुआ है।  वहां कोई भी खिलाड़ी खुद को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से कम नहीं समझता। हर खिलाड़ी खुद में खुदा है, जिससे खुजाए (पंगा लिए) उसी से निबटे। इसीलिए तो कभी वसीम-वकार जैसे सीनियर आपस में भिड़ते रहते हैं,  तो कभी रमीज-युसुफ में ठनती रहती है। पाकिस्तानी क्रिकेट में पॉलिटिक्स का आलम यह है कि सारे कप्तान हटने के लिए ही बनते हैं। इधर बने नहीं, उधर हटे। अब क्या करें... अनऑफिशियली तो पूरे 11 के 11 खुद ही कप्तान हैं, फिर ऑफिशियली किसी को कैसे हजम कर लें? अच्छा, इस मामले में  पीसीबी का भी कंसेप्ट क्लीयर है, वह भी केवल खिलाडिय़ों की प्रोफाइल मजबूत करने ही कप्तान बनाता है। उसे टीम के भले से कोई लेना-देना नहीं है.. टीम की ऐसी की तैसी... टीम जाए चूल्हे में। 
पड़ोसियों की खेल और राजनीति की इस जुगलबंदी को देखकर ही लगता है कि वहां राजनीतिज्ञ परमानेंट रिटायर हो सकता है और खिलाड़ी आजीवन खेलता दिख सकता है। यहां तक कि रिटायरमेंट भी खेल का हिस्सा हो सकता है। आप इमरान सहित कई खिलाडियों को तो जानते ही हैं, जो जब मूड आया रिटायर हुए और जब मूड बना फिर खेलने भिड़ गए। खुद अफरीदी को ही देखिए, अपना वस्ताद 2006 से अब तक आधा दर्जन बार रिटायर हो चुका है। 
जब खिलाड़ी से लेकर टीम का ऐसा ट्रैक रिकॉर्ड है, तो इस सच्चे वाले संन्यास पर भी डाउट आता है। यह भरोसा जगता है कि अपना बब्बा फिर बल्ला थामेगा... रिटायरमेंट केंसिल करेगा। और वो जो उमर का प्रेशर वाली बात है ना... इस पर तो आप जाइए ही मत। ये 36 वाला... मैच्योरिटी वाला मामला तो मेरे को शुरू से ही नहीं जम रहा है। मुझे तो लगता है अफरीदी का या तो बीवी से झगड़ा हुआ है या घरवालों से किसी बात पर ठनी है। उसी के चलते उसने उधर फायर करने की बजाय, इधर फायर कर दिया है।  उसने झूठ-मूठ ही अपनी उमर 36 बताकर परमानेंट संन्यास का एलान कर दिया है। मुझे तो पूरा भरोसा है... जिस दिन भी मांडवली होगी... अपना चिरयुवा सिकंदर फिर से मैदान में बचपना दिखाने.. बचकानी हरकत करने पहुंच जाएगा। वो सच का खुलासा करेगा कि वो 36 का नहीं बल्कि 16-17 का स्वीट सिक्सटीन ही है.. भावनाओं में बहकर उसने उम्र गलत बताई थी।
 यकीं मानिये ऐसा ही कुछ होगा...  अफरीदी का संन्यास स्थायी है लेकिन घोषणा अस्थायी...
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