18 January 2014

डॉ. साहब की ऐतिहासिक प्रेस-कॉन्फ्रेंस


अपने डॉ. साहब और शोले की बसंती में एक बात कॉमन है।  दोनों को ‘बेफिजूल’ बात करने की आदत नहीं है। दोनों किसी का टाइम ‘खराब’ करना पसंद नहीं करते। डॉ. साहब को ही लीजिए, सालों तक मीडिया से बचते रहे। बोलने के लिए कुछ खास नहीं था, लिहाजा टाइम खोटी •ाी नहीं किया। अरसे बाद ‘शेयर’ करने का दिल हुआ, तो मुखातिब हुए।
हां, यार लोग ने कुछ और उम्मीद बांध ली थी। उन्हें लगा था, कोई बड़ा धमाका होगा। कुछ ऐसा कहेंगे कि आसमान हिल जाएगा, धरती फट जाएगी। किसी की पतलून गीली हो जाएगी, किसी की पेंट फट जाएगी।  उम्मीद •ाी इसीलिए , क्योंकि अब तो विदाई की बेला है, और लौटने का •ारोसा •ाी कम।  लुुटिया तो डूब ही रही है, तो डर कैसा... कि कोई कुछ बिगाड़ लेगा। इसीलिए लगा था, कोई बड़ा बम फोड़ेंगे। सारा गुबार निकाल कर ही छोड़ेंगे। जिस-जिस ने खुजाया (पंगा लिया) था, सबको निबटा डालेंगे।  ऐसा तीर छोड़ेंगे कि आठ-दस क्या... कई जनपथ का सीना छलनी हो जाएगा।
समय •ाी माकूल था, सारा अदा-बिदा करने का। बिलकुल कांटे का टाइम। और फिर माहिर खिलाड़ी तो होते ही हैं, मौका देखकर चौका मारने वाले। ठीक अड़ी के समय अपना रंग दिखाने वाले। लगा था, वे •ाी खिलाड़ियों का खिलाड़ी बनेंगे। ऐसा उस्तरा चलाएंगे कि न उधो को उ करते बनेगा, न माधो को मु।
पर यहां तो खोदा पहाड़ निकली चुहिया। बम क्या, टिकली फटाका •ाी न फूटा। उम्मीद थी, रुखसती में कुछ कर गुजरेंगे। पर अपने डॉ. साहब नहीं सुधरे, कहने का मतलब नहीं ‘बिगड़े’। रहे अपनी वाली पर ही। वही पुरानी, 10 साल वाली।  फिर से बजा दी पुरानी कैसेट।  प्रेस कॉन्फ्रेंस में  कुछ अपनी कही, कुछ उसकी। कुछ इधर की, कुछ उधर की। किसी को पुचकारा, किसी को दुतकारा। किसी के कसीदे पढ़े, किसी को खतरा बताया। बोलने को तो बहुत कुछ बोले, लेकिन यार लोग के काम की (धमाकेदार) बात एक •ाी न बोले।
हां, बातों-बातों में वे इमोशनल हो गए थे, इसी दरमियान उनके मुखारविंद से एक बात निकली, जिसे ‘काम’ की कहा जा सकता है।  उन्होंने •ााव-विह्ल होकर कहा था- ‘इतिहास उन्हें याद रखेगा।’
पूरे पीसी में यही एक बात खास थी, सहेजने जैसी... बाकी सब बेमानी।  बाकी जो •ाी कहा, सब सेकंडरी... महज •ाूमिका बांधने के लिए। उनका कोई मोल न था। न होतीं तो •ाी चल जाता, कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता।  लेकिन यह बात... अपने ऐतिहासिक महत्व वाली... यूं सार्वजनिक नहीं करते, तो यकीन मानिए अनर्थ हो जाता। इसीलिए उन्होंने आॅन दि रिकॉर्ड बात रखने का स्टैंड लिया।  सच पूछिए, तो पत्रकार-वार्ता बुलाई ही इसीलिए थी, ताकि वे यह बात कर सकें, यानी अपने ऐतिहासिक महत्व को उजागर कर सकें। 
आपको लग रहा होगा, वे इसे आॅफ दि रिकॉर्ड •ाी कह सकते थे। अरे नहीं जनाब... तब पता नहीं लोग-बाग उन्हें सीरियसली लेते या नहीं। हो सकता, •ाूल जाते कि कुछ ऐतिहासिक कहा है। इसीलिए उन्होंने रिस्क नहीं लिया, पीसी में ‘खुलासा’ किया। कम-से-कम अब यह तो तय हो गया कि इतिहास उन्हें याद रखे, न रखे, उनके कहे को जरूर याद रखा जाएगा।
वैसे, यह सोचने की गुस्ताखी बिलकुल न करें कि डॉ. साहब को अपनी उपलब्धिों पर किसी तरह का शुबहा था। हरगिज नहीं, इंटरनली वे पूरी तरह कॉन्फिडेंट थे कि इतिहास उन्हें याद रखेगा।  हां, ये हो सकता है  कि उन्हें अपनी याददाश्त पर •ारोसा कम हो ( बढ़ती उम्र जो ठहरी)। इसीलिए उन्हे प्रेस-कॉन्फ्रेंस में सार्वजनिक एलान की जरूरत समझ आई, ताकि बाद में क•ाी ‘वे’ •ाूलने •ाी लगें, तो लोग उन्हें •ाूलने न दें कि वे ‘इतिहास-पुरूष’ हैं। 
वैसे, डॉ. साहब •ाूलने वाली चीज हैं •ाी नहीं। पिछले 10 साल में उन्होंने जो इतिहास रचा है, उसके बाद तो हरगिज •ाी नहीं। सामाजिक, राजनीतिक, सार्वजनिक... जीवन के हर क्षेत्र में उन्होंने ‘संत-परंपरा’ के निर्वाह की जो अद्•ाुत नींव रखी है, उसके बाद तो उन्हें ‘नमन’ ही किया जा सकता है। वे इतने बड़े वाले हो गए हैं, इतनी ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं कि उनके इर्द-गिर्द कोई •ाी नहीं ठहर पा रहा है।
सं•ावत: गांधीजी के बंदर उनके रोलमॉडल हंै... वो •ाी पूरे तीन-के-तीन।  एक-दो •ाी कम होते, तो शायद वे ‘डाउन टू अर्थ’ होते। बहरहाल, इसीलिए उन्होंने बुराई (गड़बड़ियां, गलतियां) के खिलाफ पूरे 10 साल मुंह, आंख, कान बंद रखा।  उनके दाएं-बाएं कई चंगू-मंगू गड़बड़झाला करते रहे, लेकिन मजाल है, क•ाी उन्हें रोका हो, कुछ बुरा कहा हो।  उन्हें बुराई से इस कदर नफरत रही कि उसे किसी •ाी कंडीशन में देखना पसंद नहीं किया। यहां तक कि बताने पर •ाी आंखें नहीं खोलीं। इसके उलट उन्हें बताने वालों की बात ही बुरी लगने लगी। लिहाजा उन्हें उस पर कान देना बंद करना पड़ा, मजबूरन... न चाहते हुए... बुराई से नफरत के चलते।
काजल की कोठरी में कमलवत जीवन जीते हुए, पूरे दस साल वे बेदाग रहे। वे सही मायने में कर्मयोगी हैं...
‘असरदार... चितचोर... मन को मोहने वाले।’  जैसे •ागवान कृष्ण का विश्वरूप देखने के बाद परम श्रद्धा के वशी•ाूत अर्जुन ने कहा था- ‘आपको आगे से प्रणाम, पीछे से प्रणाम, ऊपर से प्रणाम, नीचे से प्रणाम, सब तरफ से प्रणाम’।  वैसे ही उसी स्तर की श्रद्धा के साथ आपको हर तरफ से प्रणाम... डॉ. साहब। 
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