समझ सके तो समझ जिंदगी की उलझन को
सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं
स्क्रिप्ट राइटर जावेद अख्तर के पिता जाँ निसार अख्तर उर्दू शायरी में जाना-पहचाना नाम हैं. यह शेर उन्ही का है, जो मुझे बहुत पसंद आया. संभवत: वे कहना चाहते हैं कि चीजें उतनी कठिन नहीं हैं. हम ही उन्हें अपने-अपने चश्मों (धारणाओं-मान्यताओं) से कठिन बना देते हैं. पता नहीं क्यों, पढ़ते ही यह शेर मुझे आजिज आ गया और इसके भव से मेरे भीतर एक इत्तफाक, एक सहमति खड़ी हो गई. उनके एक-दो और पसंदीदा शेर ये रहे..
ये ठीक है कि सितारों पे घूम आए हैं
मगर किसे है सलीका जमीं पे चलने का
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जिंदगी जिस को तेरा प्यार मिला वो जाने
हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह
जिंदगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो
कुछ न कुछ हमने तिरा कर्ज उतारा ही न हो
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