जीसस के जन्म पर पूरब के तीन व्यक्ति जीसस की खोज में निकले। जीसस का जन्म हुआ बेथलहम की एक घुड़साल में, जहां जानवर बांधे जाते है। उस पशुशाला में गरीब बढ़ई के घर। और पूरव के तीन मनीषी यात्रा पर निकले कि कहीं कोई शुभ्र लेश्या का व्यक्ति जन्म लेने वाला है। और वो तीनों एक तारे का पीछा करते बेथलहम पहुंच गए। इन तीन की वजह से हेरोत को पता चला, सम्राट को पता चला, क्योंकि ये तीन पहले हेरोत के पास पहुंचे। इन्हें क्या पता? इन्होंने कहा, सम्राट खुश होगा। इन्होंने जाकर हेरोत कहा कि तुम्हारे राज्य में कोई व्यक्ति पैदा हुआ है। क्योंकि हम तीनों ने ध्यान में यह जाना है। हम तीनों को यात्रा कराता हुआ आकाश में एक शुभ्र तारा चला है। और वह तारा बेथलहम पर आकर रूक गया है। तुम्हारे राज्य में। इस गांव में जरूर कोई व्यक्ति जन्मा है जो सच में सम्राट हे।
यह बात हेरोत को अखर गई—सच में सम्राट। तो उसने कहा कि तुम जाओ और उसका पता लगाओ, और लौटते में मुझे खबर करते जाना। हेरोत ने तय कर लिया कि हत्या कर देगा इस बच्चे की। क्योंकि सच में कोई सम्राट जन्म जाये तो मेरा क्या होगा? अहंकार, प्रतिस्पर्धा….भारतीय मनीषी यों सोचा की जिस प्रकार पूर्व में किसी बुद्ध या दिव्य आत्मा का जन्म होता है। तो पूरा समाज ही नहीं, राजा भी खुशीया मनाता है। पर पूर्व और पश्चिम के समझ में बहुत भेद है। इस से उन मनीषी यों ने राजा से कह कर बहुत बड़ी भूल की…अब उनके साथ जीसस की जान का भी खतरा हो गया।
वे तीनों व्यक्ति खोज करते हुए उस जगह पहुंचे। उस पशुशाला में जहां जीसस का जन्म हुआ था—घुड़साल में उन्होंने जीसस की मां को भेंटें दी, जीसस के चरण छुए। और उसी रात उनको स्वप्न आया कि तुम लौटकर हेरोत के पास मत जाओ, तुम यहां से भाग जाओ। और जीसस की मां को कह दो कि यह बच्चे को लेकर जितनी जल्दी हो सके बेथलहम छोड़ दे। उसी रात वे तीनों मनीषी राज्य को छोड़ कर चले गए। और जीसस की मां और पिता को लेकर इजिप्त चले गये।
बुद्ध का जन्म हुआ तो हिमालय से एक महर्षि भागा हुआ बुद्ध की राजधानी में आया। उस वृद्ध तपस्वी को देखकर बुद्ध के पिता बड़े हैरान हुए। उन्होंने कहा कि तुम्हें पात कैसे चला? तो उसने कहा कि पात चल गया; क्योंकि जिस लेश्या में मैं हूं। जिस क्षण में मैं हूं, वहां से दिखाई पड़ सकता है। अगर कोई इतना शुभ्र तारा जमीन पर पैदा हो। तुम्हारा बच्चा तीर्थकर होने को है, बुद्ध होने को है।
बच्चे को लाया गया। बुद्ध के पिता तो बहुत हैरान हुए। उनको तो भरोसा न आया कि यह आदमी पागल तो नहीं है। क्योंकि उसने बच्चे के चरणों में सिर रख दिया। अभी कुछ ही दिन का बच्चा,और यह आदमी बहुत जाना माना मनीषी था, इसका नाम असित था। वह रोने लगा, जार-जार, बुद्ध के पिता डर गये, और उन्होंने कहा कि क्या कुछ अशुभ है। तुम रो क्यों रहे हो?
तो उसने कहा कि नहीं,मैं इसलिए नहीं रोता हूं कि कुछ अशुभ होने को है। इसलिए रोता हूं, कि मेरी मृत्यु करीब है; और जिस क्षण यह व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध होगा,उस समय मैं इसका सान्निध्य न पा सकूंगा। और ऐसी घड़ी को उपलब्ध होने की घटना कभी-कभी हजारों वर्षों में घटती है। तो मैं अपने लिए रो रहा हूं। इसके लिए नहीं रो रहा हूं। इसका तो यह आखिरी जीवन का शिखर हे।
जो श्वेत लेश्या लेकर व्यक्ति पैदा होता है। वह निर्वाण को उपलब्ध हो सकता है इसी जन्म में। क्योंकि धर्म की अंतिम सीमा पर पहुंच गया, अब धर्म के भी पार जा सकता है।
–ओशो महावीर वाणी—2, प्रवचन—पंद्रहवां, दिनांक 30 अगस्त 1973, पाटकर हाल, मुम्बई
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