गौतम उस समय का बड़ा पंडित था। हजारों उसके शिष्य थे, जब वह महावीर को मिला, उसके पहले उसका बड़ा नाम था, वह ब्राह्मण घर में जन्मा था। महावीर से विवाद करने ही आया था। गौतम, महावीर से विवाद करना ठीक उल्टा होगा ये उसे ज्ञात नहीं था। वह थोथे ज्ञान से भरा था। तर्क बुद्धि थी। तक्र बुद्धि आदमी को अहंकारी बना देती है। महावीर को पराजित करने के लिए आया था। हरा दिये होंगे पंडित पुरोहित। जो जानकारी रखते होंगे। उसने सोचा महावीर भी जानकरी से भरा है। और उस समय महावीर का बहुत सम्मान और नाम था। गौतम ने सोचा अगर महावीर को हरा दूँ तो बहुत नाम हो जायेगा। अगर महावीर के पास गौतम से कम जानकारी होती तो, गौतम तो महावीर को हराने के लिए ही आया था। और गौतम ज्ञान से परिचित नहीं था। क्योंकि ज्ञान का तो कोई सवाल ही नहीं था, उसके पास उसके पास तो जानकारी थी। गौतम को रूपांतरित करने का कोई उपाय नहीं था। पहले उसकी जानकारी उससे छीनती जाए। उसे खाली किया जाये। उसे उसके ही तर्कों से हराया जाये। आखिर गौतम भगवान महावीर से पराजित हुआ। जब वह भगवान महावीर से जानकारी में भी हार गया। तब उसने महावीर की तरफ श्रद्धा से देखा। और तब महावीर ने कहा कि अब मैं तुझे वह बात कहूंगा, जिसका तुझे कोई पता नहीं है। अभी तो मैं वह कहा रहा था जिसका तुझे पता है। मैंने तुझसे जो बातें कहीं है वह तेरे ज्ञान को गिरा देने के लिए, अब तू अज्ञानी हो गया। अब तेरे पास कोई ज्ञान नहीं है। अब मैं तुझसे जो बातें कहूंगा जिससे तू वस्तुत: ज्ञानी हो सकता है। क्योंकि जो ज्ञान विवाद से गिर जाता है, उसका क्या मूल्य है? जो ज्ञान तर्क के कट जाता है, उसका क्या मूल्य है?
गौतम महावीर के चरणों में गिर गया। उनका शिष्य बन गया। गौतम इतना प्रभावित हो गया महावीर से, कि आसक्त हो गया,महावीर के प्रति मोह से भर गय। गौतम महावीर का प्रमुखत्म शिष्य था। प्रथम शिष्य, शिष्य, श्रेष्ठतम शिष्य। उनका पहला गणधर हे। उनका पहला संदेशवाहक है। लेकिन, गौतम ज्ञान को उपल्बध नहीं हो सका। गौतम के पीछे हजारों-हजारों लोग दीक्षित हुए और ज्ञान को उपलब्ध हुए। और गौतम ज्ञान को उपलब्ध नहीं हो सका। गौतम महावीर की बातों को ठीक-ठीक लोगों तक पहुंचाने लगा। संदेशवाहक हो गया। जो महावीर कहते थे, वही लोगों तक पहुंचाने लगा। उससे ज्यादा कुशल संदेशवाहक महावीर के पास दूसरा नहीं था। लेकिन वह ज्ञान को उपलब्ध नहीं हो सका। वह उसका पांडित्य बाधा बन गया। वह पहले भी पंडित था, वह अब भी पंडित था। पहले वह महावीर के विरोध में पंडित था, अब महावीर के पक्ष में पंडित हो गया। अब महावीर जो जानते थे, कहते थे, उसे उसने पकड़ लिया और उसका शस्त्र बना लिया। वह उसी को दोहराने लगा। हो सकता है महावीर से भी बेहतर दोहराने लगा हो। लेकिन ज्ञान को उपलब्ध नहीं हुआ। वह पंडित ही रहा। उसने जिस तरह बाहर की जानकारी इकट्ठी की थी, उसी तरह उसने भीतर की जानकारी भी इकट्ठी कर ली। यह भी जानकारी रही,यह भी ज्ञान न बना।
गौतम बहुत रोता था। वह महावीर से बार-बार कहता था, मेरे पीछे आये लोग,मुझसे कम जानने वाले लोग, साधारण लोग, मेरे जो शिष्य थे वे, आपके पास आकर ज्ञान को उपलब्ध हो गये। यह दीया मेरा कब जलेगा। यह ज्योति मेरी कब पैदा होगी। मैं कब पहुंच पाऊंगा?
जिस दिन महावीर की अंतिम घड़ी आयी, उस दिन गौतम को महावीर ने पास के गांव में संदेश देने भेजा था। गौतम लौट रहा है गांव से संदेश देकर, तब राहगीर ने रास्ते में खबर दी कि महावीर निर्वाण को उपलब्ध हो गये। गौतम वहीं छाती पीटकर रोने, लगा, सड़क पर बैठकर। और उसने राहगीरों को पूछा कि वह निर्वाण को उपलब्ध हो गये। मेरा क्या होगा? मैं इतने दिन तक उनके साथ भटका, अभी तक मुझे तो वह किरण मिली नहीं। अभी तो मैं सिर्फ उधार,वह जो कहते थे,वही लोगों को कहे चला जा रहा हूं। मुझे वह हुआ नहीं, जिसकी वह बात करते है। अब क्या होगा? उनके साथ न हो सका, उनके बिना अब क्या होगा। मैं भटका, मैं डूबा। अब मैं अनंत काल तक भटकूंगा। वैसा शिक्षक अब कहां? वैसा गुरु अब कहां मिलेगा? क्या मेरे लिए भी उन्होंने कोई संदेश स्मरण किया है, और कैसी कठोरता की उन्होंने मुझ पर? जब जाने की घड़ी थी तो मुझे दूर क्यों भेज दिया?
तो राहगीरों ने यह सूत्र उसको कहा है। यह जो सूत्र है, राहगीरों ने कहा है। कि तेरा उन्होंने स्मरण किया और उन्होंने कहा है कि गौतम को यह कह देना। गौतम यहां मोजूदा नहीं है, गौतम को यह कह देना। यह जो सूत्र है, यह गौतम के लिए कहलवाया गया है।
‘’जैस कमल शरद-कमल के निर्मल जल को भी नहीं छूता और अलिप्त रहता है। वैसे ही संसार अपनी समस्त आसक्तियां मिटा कर सब प्रकार के स्नेह-बंधनों से रहित हो जा। अत: गौतम, क्षण मात्र भी प्रमाद मत कर।‘’
ये जो आखिरी शब्द है कि तू संसार के सागर को पार कर गया—गौतम पत्नी को छोड़ आया, बच्चों को छोड़ आया। धन को छोड़ आया, मान प्रतिष्ठा को,पद को अहंकार को छोड़ आया। तू प्रख्यात था, इतने लोग जानते थे, सैकड़ों लोगों का तू गुरु था। अब उसको छोड़ कर महावीर के चरणों में गिर गया। सब छोड़ आया। तो महावीर कहते है, तूने पूरे सागर को छोड़ दिया गौतम, लेकिन अब तू किनारे को पकड़कर अटक गया। तूने मुझे पकड़ लिया। किनारे को पकड़े लिया? अब मुझे भी छोड़।
जो श्रेष्ठतम गुरु है, उनका अंतिम काम यही है कि जब उनका शिष्य सब छोड़ कर उन्हें पकड़ ले, तो तब तक तो वे पकड़ने दें जब तक यह पकड़ना शेष को छोड़ने में सहयोगी हो, और जब सब छूट जाये तब वे अपने से भी छूटने में शिष्य को साथ दे। जो गुरु अपने से शिष्य को नहीं छुड़ा पाता,वह गुरु नहीं है। यह महावीर का वचन है, कि अब तू मुझे भी छोड़ दे, किनारे को भी छोड़ दे। सब छोड़ चुका, अब नदी भी पार कर गया,अब किनारे को पकड़ कर भी तो नदी में हो सकता है। और फिर किनारा भी बाधा बन जायेगा, माना किनारा नदी नहीं है, नदी तू पार कर चूका, फिर भी अभी भी नदी में ही तू तो है। किनारा चढ़ने को है, बाधा बनने को नहीं। इसे भी छोड़ दे और इसके भी पार हो जा।
ओशो महावीर वाणी—भाग—दो, दूसरा प्रवचन, दिनांक 14 सितम्बर, 1972, पाटकर हाल, बम्बई
bahut badiya saarthak prastuti..
ReplyDeletethanks....
Deletekoshish hai kuch sarthak ho jaye...