तिब्बत में एक पुरानी कथा है कि दो भाई है। और उनके पिता का स्वर्ग वास हो गया। उनके पिता के पास सौ घोड़े थे। घोड़ों का ही काम था। सवारियों को लाने ले जाने का, यात्री जो पहाड़ों पर या तीर्थ पर दर्शन को आते उन्हें घोड़ों पर बिठा कर ले जाते थे। तो पिता ने मरते वक्त बड़े भाई को कह गया कि तू बुद्धिमान है, छोटा तो अभी बच्चा है। उसे इतनी समझ नहीं है। तू अपनी समझ से और अपनी मर्जी से बंटवारा कर देना। जैसे तुझे जँचे। और पिता मर गया। तो बड़े भाई ने बंटवारा कर दिया। निन्यानवे घोड़े उसने अपने पास रख लिए, और एक घोड़ा छोटे भाई को दे दिया। आस पास के लोग भी चोंके। ये कैसा न्याय। पड़ोसियों और बड़े बूढ़ों ने बड़े भाई को समझाया कि ये तू ठीक नहीं कर रहा है। छोटा तो अभी छोटा है। पर तू तो समझ दार हे भला ये भी कोई बात हुई। कहां सौ और कहां एक। भले मानुष कुछ तो न्याय किया होता। पर कौन किसकी सुनता है। उसने बहाना लगा दिया कि छोटा तो अभी छोटा है, भला वह इतने घोड़ों को सम्हाल ही नहीं सकेगा। सो मैं तो उसकी भलाई के लिए ही ये सब कर रहा हूं। अब उसके लिए मुझे इन निन्यानवे का बोझ ढोना पड़ेगा। जब वह सम्हालने लायक हो जायेगा तो जितने चाहे उतने ले-ले। गांव के लोग समझ गये की ये बहुत चतुर चालाक है। बात को टाल रहा है। उन्होंने छोटे को भी कहा कि बुद्धू तू एक घोड़ से ही प्रसन्न है। तेरा गुजर बसर कैसे होगी। तू अपने हिस्से के बाकी घोड़े ले ले।
पर छोटा तो बहुत प्रसन्न था। वह खुद ही…उस घोड़े को लेकर सवारियों को यहां से वहां पहुँचाता रहता उसे कोई नौकर चाकर रखने की जरूरत भी नहीं थी। वह खुद ही सईस की तरह साथ चलता। घोड़ की देख भाल करता। उसको अपने हाथ से खिलता, उस घोड़े की देख भाल करता। कहीं पैरों में कोई पत्थर या कहीं कोई चोट तो नहीं लग गई है। घोड़ा जब ज्यादा थका होता तो उस दिन काम पर नहीं जाता और आराम करता, उसकी मालिश करता। खुद भी आराम करता। कुल मिला कर वह एक घोड़े की कमाई से बहुत प्रसन्न था। उसके भोजन का काम बड़े मजे में चल जाता था। उधर बड़ा भाई बहुत परेशान रहता। निन्यानवे घोड़े थे, निन्यानवे के चक्कर के फेर में फंस गया। कभी कोई घोड़ा बीमार हो जाता। कभी, घास कम पड़ जाती,कभी नौकर कम पड़ जाते, चलनेवाला। कभी नौकर पैसे के मामले में बेईमानी कर देता। उनके लिए अस्तबल बनवाना। कभी बर्फ गिर जाती, कभी बरसात हो जाती। हमेशा तो मुसाफिर आते नहीं थे। कुल मिला कर वह सारा दिन परेशान रहता। कभी कोई घोड़ा रात को देर से घर आता तो वह उसका इंतजार करता रहता। और जब तक नहीं आता सो नहीं सकता था। कमाई से साथ उसे परेशानी भी कम नही थी। छोटा भाई एक के साथ ही आनंद से जी रहा था। ये सब वह बड़ा देखता और अंदर ही अंदर उसे ईषा घेर लेती। उसे छोटे भाई के चेहरे पर फैली खुशी सहन नहीं हो रही थी।
एक दिन आगर उसने आपने छोटे भाई को कहा कि तुझ से मेरी एक प्रार्थना है कि तेरा जो एक घोड़ा है वह भी तू मुझे दे दे। उसने कहा—क्यों? तो उस बड़े भाई ने कहां—तेरे पास एक ही घोड़ा है, नहीं भी रहा तो कुछ ज्यादा नहीं खो जायेगा। मेरे पास निन्यानवे है, अगर एक मुझे और मिल जाए तो सौ की गिनती पूरी हो जाये। अगर मेरे पास सौ घोड़े हो जाते है। तो मेरा रुतबा बढ़ जाता है। लोगो मुझे गर्व से देखेंगे। ये निन्यानवे का फेर मुझे सता रहा है। तेरे लिए तो क्या है, पर मेरे लिए मरने वाली बात हो रही है। अब जैसे ही तू मुझे एक देगा मेरी सेंचुरी पूरी हो जायेगी। क्यों कि पिता के पास सौ घोड़े थे, अब ये उनके नाम पर कलंक है कि मेरे पास उसके बेटे के पास निन्यानवे घोड़े है। भाई मैं तेरे सामने हाथ जोड़ता हूं, तू पिता की इज्जत के लिए इतना त्याग और कर दे। छोटे भाई ने एक बार बड़े भाई की और देखा और कहां की भैया तूम परेशान मत हो तूम मेरा एक घोड़ा भी ले जाओ। क्योंकि मेरा अनुभव यह है कि निन्यानवे के कारण मैं आपको बहुत तकलीफ में देख रहा हूं। अब इस एक से मेरा गुजर चल रहा था। लेकिन आप मेरी फिक्र मत करें। मैं किसी भी तरह से काम चला लुंगा। और उसने वह एक घोड़ा भी बड़े भाई को दे दिया।
तब वह छोटा और भी आनंद से रहने लगा। क्योंकि अब उस एक घोड़े कि लिए उसे काफी समय और मेहनत करनी होती थी। उसकी खान पान हारी बिमारी कि फिक्र करनी होती थी। रात बार-बार उठ कर उसका पाल देखना होता था कहीं वह नंग तो नहीं हो गया। उसे ठंड तो नहीं लग रही। अब ये सब झंझट भी मुका। वह खुद ही घोड़े का काम करने लगा। पहले घोड़े पर सामन लदते समय उसे तकलीफ होती न जाने कितना बोझ ये बर्दाश्त कर सकता है। इसको मैं ज्यादा सता तो नहीं रहा हूं, कभी उसे घोड़े से बीमारी में भी काम करना होता। अब खुद ही जितना सामन ढो सकता था उतना ही काम लेता। उसकी जान की हजार परेशानी खत्म हो गई। अब तब घोड़े की नौकरी करनी होती थी। उसकी लगाम पकड़नी होती है। उसके संग साथ चल कर आधा उसे भी घोड़ा बनना होता था। अब वह अपने कंधे पर सामान लाद कर मस्ती में चल देता। लेकिन इतना सब होने और लेन पर भी बड़े की परेशान कम नहीं हुई। वहीं अपने भाई के चेहरे पर खुशी देख कर बीमार ही रहने लगा। क्योंकि उसने कितनी परेशान अपने उपर लाद ली थी। सौ घोड़ों में किसी दिन एक नहीं आता तो पूरी रात उसे परेशानी होती। अगर कोई मर गया तो फिर वहीं निन्यानवे रह जायेगे। अब तो भाई के पास भी और नहीं है कि उसी से और ले लेगा।
ये परेशानी उसे मरते दम रही….दो ही तरह के लोग होते है, एक वे जो वस्तुओं पर इतना भरोसा कर लेते है कह उनकी वजह से ही परेशान हो जाते है। और एक वे जो अपने पर इतने भरोसे से भरे होते है कि वस्तुएं उन्हें परेशान नहीं कर पाती। दो ही तरह के लोग है इस पृथ्वी पर। लेकिन आप पहली तरह के लोग यहां वहां रोज देख सकेगें। पर दूसरी तरह के लोग बहुत कम है, है जरूर पर कम है। जो इतने आनंद से में जीते है। इसलिए पहले तरह के लोगों के कारण आप पृथ्वी पर आनंद बहुत कम देख पायेंगे। चारो और दुःख, चिंता दुवेश, बेईमान…छीना झपटी और पीड़ा। वृति संक्षेप का अर्थ सीधा नहीं है यह कि आप अपने परिग्रह को कम करें। जब भीतर आपकी वृति संक्षिप्त होती है तो बहार परिग्रह कम हो जाता है।
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