तीर्थ शब्द का अर्थ होता है—घाट। उसका अर्थ होता है, ऐसी जगह जहां से हम उस अनंत सागर में उतर सकते है। जैनों का शब्द तीर्थकर तीर्थ से बना है, उसका अर्थ है तीर्थ को बनानेवाला। असल में उस को ही तीर्थ कहां जा सकता है। तीर्थकर कहा जा सकता है जिसने ऐसा तीर्थ निर्मित किया हो जहां साधारण जन खड़े होते, पाल खोलते, ऐसे ही यात्रा पर संलग्न हो जाए। अवतार न कहकर तीर्थकर कहा, और अवतार से बड़ी घटना तीर्थ कर है। क्योंकि परमात्मा, आदमी में अवतरित हो यह तो एक बात है लेकिन आदमी परमात्मा में प्रवेश का तीर्थ बना ले, यह और भी बड़ी बात हे।
जैन, परमात्मा में भरोसा करनेवाला धर्म नहीं है, आदमी की सामर्थ्य में भरोसा करनेवाला धर्म हे। इसलिए तीर्थ और तीर्थकर का जितना गहरा उपयोग जैन कर पाए उतना कोई भी नहीं कर पाया। क्योंकि यहां तो कोई ईश्वर की कृपा पर उनको ख्याल नहीं है। ईश्वर कोई सहारा दे सकता है। इसका कोई ख्याल नहीं है। आदमी अकेला है, और आदमी को अपनी ही मेहनत से यात्रा करनी है।
लेकिन दो रास्ते हो सकते है। एक-एक आदमी अपनी मेहनत करे। पर तब शायद कभी करोड़ो में एक आदमी उपलब्ध हो पाएगा। लेकिन हवाओं का सहारा लेकर यात्रा बड़ी आसान होती है। तो क्या अध्यात्मिक हवाएँ संभव है। उसपर ही तीर्थ का सब कुछ निर्भर है। क्या यह संभव है कि जब महावीर जैसा एक व्यक्ति खड़ा होता है तो उसके आप-पास किसी अनजाने आयाम में कोई प्रवाह शुरू होता है। क्या यह किसी एक ऐसी दिशा में बहाव को निर्मित करता है कि बहाव में कोई पड़ जाए तो बह जाए, वही बहाव तीर्थ है।
इस पृथ्वी पर तो उसके जो निशान है वह भौतिक निशान है, लेकिन वे स्थान न खो जाए इसलिए उन भौतिक निशानों की बड़ी सुरक्षा की गयी है। मंदिर बनाए गए है उन जगहों पर, या पैरों के चिन्ह बनाए गए है उन जगहों पर यह मूर्तियां खड़ी की गई है उन जगहों पर और उन जगह को हजारों वर्षो तक वैसा का वैसा रखने की चेष्टा की गयी है। इंच भर भी वह जगह न हिल जाए, जहां घटना घटी है कभी बड़े-बड़े खज़ाने गडाए गए है आज भी उनकी खोज चलती है।
जैसे की रूस के आखिरी जार का खजाना अमरीका में कहीं गड़ा है। जो कि पृथ्वी का सबसे बड़ा खजाना है, और आज भी खोज चलती है। वह खजाना है, यह पक्का है, क्योंकि बहुत दिन नहीं हुए…..अभी उन्नीस सौ सत्रह को घटे बहुत दिन नहीं हुए। उसका इंच-इंच हिसाब भी रखा गया है कि यह कहां होगा। लेकिन डि कोड नहीं हो पा रहा है। वह जो हिसाब रखा गया है उसको समझा नहीं जा पा रहा है कि एक्जैक्ट जगह कहां है।
जैसे कि ग्वालियर में एक बड़ा खजाना ग्वालियर फेमिली का है। जिसका फेमिली के पास सारा का सारा हिसाब है, लेकिन फिर भी जगह नहीं पकड़ी जा रही है कि वह जगह कहां है। वह डि कोड नहीं हो रहा है। नक्शा जो है—इस तरह से सब नक्शे गुप्त भाषा में ही निर्मित किए जाते हे। अन्यथा कोई भी डि कोड कर लेगा। समान्य भाषा में वे नहीं लिखे जाते।
इन तीर्थों की भी पूरा का पूरा सूचन है। इसलिए जरूरी है जैसा कि आम लोग समझ लेते है। और वह आम गड़बड़ न कर पाएँ इसलिए बड़े उपाय किए जाते है। वह मैं आपको कहूं तो बहुत हैरानी होगी। जैसे जहां आप जाते है ओर आपसे कहा जाता है कि यह जगह है जहां महावीर निर्वाण को उपलब्ध हुए—बहुत संभावना तो यह है कि वह जगह नहीं होंगी। उससे थोड़ी हटकर वह जगह होगी जहां उनका निर्वाण हुआ। उस जगह पर तो प्रवेश उनको ही मिल सकेगा, जो सच में ही पात्र है और उस यात्रा पर निकल सकते है। एक फाल्स जगह, एक झूठी जगह आम आदमी से बचाने की लिए खड़ी की जाएगी। जिसपर तीर्थयात्री जाता रहेगा। नमस्कार करता रहेगा और लौटता रहेगा। वह जगह तो उनको ही बतायी जाएगी जो सचमुच उस जगह आ गए है। जहां से वह सहायता लेने के योग्य है या उनको सहायता मिलनी चाहिए। ऐसी बहुत सी जगह है।
अरब में एक गांव है जिसमें आज तक किसी सभ्य आदमी को प्रवेश नहीं मिल सका—आज तक अभी भी। चाँद पर आप प्रवेश कर गए लेकिन छोटे से गांव अल्कुफा में आज तक किसी यात्री को प्रवेश नहीं मिल सका। सच तो यह है कि आज तक यह ठीक हो सका नहीं कि वह कहां है। और वह गांव है। इसमें कोई शक-शुबहा नहीं, क्योंकि हजारों साल से इतिहास उसकी खबर देता है। किताबें उसकी खबर देती है। उसके नक्शे है।
वह गांव कुछ बहुत प्रयोजन से छिपाकर रखा गया है। और सूफियों में जब कोई बहुत गहरी अवस्था में होता है तभी उसको उस गांव में प्रवेश मिलता है। उसकी सीक्रेट कि है। अल्कुफा के गांव में उसी सूफी को प्रवेश मिलता है जो ध्यान में उसका रास्ता खोज लेता है। अन्यथा नहीं। उसकी की हे फिर तो उसे कोई रोक भी नहीं सकता। अन्यथा कोई उपाय नहीं है। नक्शे है, सब तैयार है, लेकिन फिर भी उसका पता नहीं लगता वह कहां हे। वह सब एक अर्थ में नक्शे थोड़े से झूठ है ओर भटकाने के लिए है। उन नक़्शों को जो मानकर चलेगा वह अल्कुफा कभी नहीं पहुंच पाएगा।
इसलिए बहुत यात्री यूरोप के पिछले तीन सौ वर्षों में सैकड़ों यात्री अल्कुफा को ढूंढने गए है। उनमें से कुछ तो कभी लौटें नहीं मर गय। जो लौटे वे कभी कहीं पहुंचे नहीं। वे सिर्फ चक्कर मारकर वापस आ गए। सब तरह से कोशिश की जा चुकी है। पर उसकी कुंजी है। और वह कुंजी एक विशेष ध्यान है; और उस विशेष ध्यान में ही अल्कुफा पूरा का पूरा प्रगट होता है। और वह सूफी उठता है और चल पड़ता है। और जब इतनी योग्यता हो तभी उस गांव से गति है। वह एक सीक्रेट तीर्थ है जो इसलाम से बहुत पुराना है। लेकिन उसको गुप्त रखा गया है। इन तीर्थों में भी जो जाहिर है। इन तीर्थों में भी जो जाहिर दिखाई पड़ते है, वे असली तीर्थ नहीं है। आस पास असली तीर्थ है।
जैसे एक मजेदार घटना घटी। विश्वनाथ के मंदिर में काशी में जब विनोबा हरि जनों को लेकर प्रवेश कर गए, तो कर पात्री ने कहा कि कोई हर्ज नहीं, हम दूसरा मंदिर बना लेंगे, और दूसरा मंदिर बनाना शुरू कर दिया। वह मंदिर तो बेकर हो गया। तो दूसरा मंदिर बनाना शुरू कर दिया। साधारणत: देखने में विनोबा ज्यादा समझदार आदमी मालूम पड़ते है कर पात्री से। असलियत ऐसी नहीं है। साधारण देखने में कर पात्री निपट पुराणपंथी, नासमझ, आधुनिक जगत और ज्ञान से वंचित मालूम पड़ते है। यह थोड़ी दूर तक सच है बात। लेकिन फिर भी जिस गहरी बात की वह ताईद कर रहे है उसके मामले में वह ज्यादा जानकार है।
सच बात यह है कि विश्वनाथ का मंदिर भी असली नहीं है। और वह जो दूसरा बनाएँगे वह भी असली नहीं होगा। असली मंदिर तो तीसरा है। लेकिन उसकी जानकारी सीधी नहीं दी जा सकती। और असली मंदिर को छिपाकर रखना पड़ेगा, नहीं तो कभी भी कोई भी धर्म सुधारक उसको भ्रष्ट कर सकता है। अभी जो विश्वनाथ का मंदिर है खड़ा हुआ, इसको तो नष्ट किया जा चुका है। इसमें कोई उपाय नहीं है। इसमें कोई कठिनाई नहीं है चाहे नष्ट कर दो।
वह जो दूसरा बनाया जा रहा है वह भी फाल्स है। लेकिन एक फाल्स बनाए ही रखना पड़ेगा, ताकि असली पर नजर न जाए। और असली को छिपाकर रखना पड़ेगा। विश्वनाथ के मंदिर में प्रवेश की कुंजियों है, जैसे अल्कुफा में प्रवेश की कुंजियों है। उसमें कभी कोई सौभाग्यशाली संन्यासी प्रवेश पाता है। उसमें कोई ग्रह स्थ कभी प्रवेश नहीं पाया और कभी पा नहीं सकता। सभी संन्यासी को भी उसमें प्रवेश नहीं मिल पाते है कभी कोई सौभाग्यशाली संन्यासी उसमें प्रवेश पाते है। और उसे सब भांति छिपाकर रखा जाएगा। उसके मंत्र है और जिनके प्रयोग से उसका द्वार खोलेगा, नहीं तो उसका द्वार नहीं खुले गा। उसका बोध ही नहीं होगा,उसका ख्याल ही नहीं आएगा।
काशी में जाकर इस मंदिर की लोग पूजा, प्रार्थना करके वापस लौट आएंगे। मगर इस मंदिर की भी अपनी एक सेंक्टिंटी बन गया थी। यह झूठा था, लेकिन फिर भी लाखों वर्षों से उसको सच्चा मानकर चला जा रहा था। उसमें भी एक तरह की पवित्रता आ गयी।
सारे धर्मों ने कोशिश की है कि उनके मंदिर में या उनके तीर्थ में दूसरे धर्म का व्यक्ति प्रवेश न करे। आज हमें बेहूदगी लगती है यह बात। हम कहेंगे इससे क्या मतलब है। लेकिन जिन्होंने व्यवस्था की थी उनके कुछ करण थे। यह करीब-करीब मामला ऐसा ही है जैसे कि ऐटमिक एनर्जी की एक लेबोरेटरी है और अगर यह लिखा हो कि यहां सिवाय ऐटमिक साइंटिस्ट के कोई प्रवेश नहीं करेगा। तो हमें कोई कठिनाई नहीं होगी। हम कहेंगे, बिलकुल ठीक है, बिलकुल दुरुस्त है। खतरे से खाली नहीं है दूसरे आदमी का भीतर प्रवेश करना।
लेकिन यही बात हम मंदिर और तीर्थ के संबंध में मानने को राज़ी नहीं है। क्योंकि हमें यह ख्याल ही नहीं है कि मंदिर और तीर्थ की अपनी साइंस है। और वह विशेष लोगों के प्रवेश के लिए है। आज भी एक मरीज बीमार पडा है और उसके चारों तरफ डाक्टर खड़े होकर बात करते रहते है। मरीज सुनता है, समझ तो कुछ नहीं आता। क्योंकि वह किसी खास कोड लेंग्वेज में बात करते है। वह लैटिन या ग्रीक शब्दों को उपयोग कर रहे है। यह मरीज के हित में नही है कि उस समझे। इसलिए सारे धर्मों ने अपनी कोड़ लेंग्वेज विकसित की थी। उसके गुप्त तीर्थ थे, उसकी गुप्त भाषाएँ थीं। उसके गुप्त शास्त्र थे। और आज भी जिनको हम तीर्थ समझ रहे है उनमें बहुत कम संभावना है सही होने की। जिनको हम शास्त्र समझ रहे है। उनमें बहुत कम संभावना है सही होने की।
वह जो सीक्रेट ट्रैडीशनल है, उसे तो छिपाने की निरंतर कोशिश की जाती है। क्योंकि जैसे ही वह आम आदमी के हाथ में पड़ती है, उसके विकृत हो जाने का डर है। और आन आदमी उससे परेशान ही होगा, लाभ नहीं उठा सकता। जैसे अगर सूफियों के गांव अल्कुफा में अचानक आपको प्रवेश करवा दिया जाए तो पागल हो जाएंगे। अल्कुफा की यह परंपरा है कि वहां अगर कोई आदमी आकस्मिक प्रवेश कर जाए तो पागल होकर लौटे गा—वह लौटे गा ही, इसमें किसी को कोई कसूर नहीं हे।
क्योंकि अल्कुफा इस तरह की पूरी के पूरे मनस तरंगों से निर्मित है कि आपका मन उसको झेल नहीं पाएगा। आप विक्षिप्त हो जाएंगे। उतनी सामथ्र्य और पात्रता के बिना उचित नहीं है। कि वहां प्रवेश हो। जैसे अल्कुफा के बाबत कुछ बातें ख्याल में ले लें तो और तीर्थों का ख्याल में आ जाएगा।
जैसे अल्कुफा में नींद असंभव है, कोई आदमी सो नहीं सकता। तो आप पागल हो ही जाएंगे जब तक कि आपने जागरण का गहन प्रयोग न किया हो। इसलिए सूफी फकीर की सबसे बड़ी जो साधना है वह रात्रि जागरण है, रातभर जागते रहेंगे। और एक सीमा के बाद ….एक बहुत सोचने जैसी बात है—एक आदमी नब्बे दिन तक खाना न खाए तो भी सिर्फ दुर्बल होगा, मर नहीं जाएगा, पागल नहीं हो जाएगा।
साधारण स्वस्थ आदमी आसानी से नब्बे दिन, बिना खाए रह सकता है। लेकिन साधारण स्वस्थ आदमी इक्कीस दिन भी बिना सोए नहीं रह सकता। ती महीने बिना खाए रह सकता है। तीन सप्ताह बिना सोए नहीं रह सकता। ती सप्ताह तो बहुत ज्यादा कह रहा हूं, एक सप्ताह भी बिना सोए रहना कठिन मामला है। पर अल्कुफा में नींद असंभव है।
जैन, परमात्मा में भरोसा करनेवाला धर्म नहीं है, आदमी की सामर्थ्य में भरोसा करनेवाला धर्म हे। इसलिए तीर्थ और तीर्थकर का जितना गहरा उपयोग जैन कर पाए उतना कोई भी नहीं कर पाया। क्योंकि यहां तो कोई ईश्वर की कृपा पर उनको ख्याल नहीं है। ईश्वर कोई सहारा दे सकता है। इसका कोई ख्याल नहीं है। आदमी अकेला है, और आदमी को अपनी ही मेहनत से यात्रा करनी है।
लेकिन दो रास्ते हो सकते है। एक-एक आदमी अपनी मेहनत करे। पर तब शायद कभी करोड़ो में एक आदमी उपलब्ध हो पाएगा। लेकिन हवाओं का सहारा लेकर यात्रा बड़ी आसान होती है। तो क्या अध्यात्मिक हवाएँ संभव है। उसपर ही तीर्थ का सब कुछ निर्भर है। क्या यह संभव है कि जब महावीर जैसा एक व्यक्ति खड़ा होता है तो उसके आप-पास किसी अनजाने आयाम में कोई प्रवाह शुरू होता है। क्या यह किसी एक ऐसी दिशा में बहाव को निर्मित करता है कि बहाव में कोई पड़ जाए तो बह जाए, वही बहाव तीर्थ है।
इस पृथ्वी पर तो उसके जो निशान है वह भौतिक निशान है, लेकिन वे स्थान न खो जाए इसलिए उन भौतिक निशानों की बड़ी सुरक्षा की गयी है। मंदिर बनाए गए है उन जगहों पर, या पैरों के चिन्ह बनाए गए है उन जगहों पर यह मूर्तियां खड़ी की गई है उन जगहों पर और उन जगह को हजारों वर्षो तक वैसा का वैसा रखने की चेष्टा की गयी है। इंच भर भी वह जगह न हिल जाए, जहां घटना घटी है कभी बड़े-बड़े खज़ाने गडाए गए है आज भी उनकी खोज चलती है।
जैसे की रूस के आखिरी जार का खजाना अमरीका में कहीं गड़ा है। जो कि पृथ्वी का सबसे बड़ा खजाना है, और आज भी खोज चलती है। वह खजाना है, यह पक्का है, क्योंकि बहुत दिन नहीं हुए…..अभी उन्नीस सौ सत्रह को घटे बहुत दिन नहीं हुए। उसका इंच-इंच हिसाब भी रखा गया है कि यह कहां होगा। लेकिन डि कोड नहीं हो पा रहा है। वह जो हिसाब रखा गया है उसको समझा नहीं जा पा रहा है कि एक्जैक्ट जगह कहां है।
जैसे कि ग्वालियर में एक बड़ा खजाना ग्वालियर फेमिली का है। जिसका फेमिली के पास सारा का सारा हिसाब है, लेकिन फिर भी जगह नहीं पकड़ी जा रही है कि वह जगह कहां है। वह डि कोड नहीं हो रहा है। नक्शा जो है—इस तरह से सब नक्शे गुप्त भाषा में ही निर्मित किए जाते हे। अन्यथा कोई भी डि कोड कर लेगा। समान्य भाषा में वे नहीं लिखे जाते।
इन तीर्थों की भी पूरा का पूरा सूचन है। इसलिए जरूरी है जैसा कि आम लोग समझ लेते है। और वह आम गड़बड़ न कर पाएँ इसलिए बड़े उपाय किए जाते है। वह मैं आपको कहूं तो बहुत हैरानी होगी। जैसे जहां आप जाते है ओर आपसे कहा जाता है कि यह जगह है जहां महावीर निर्वाण को उपलब्ध हुए—बहुत संभावना तो यह है कि वह जगह नहीं होंगी। उससे थोड़ी हटकर वह जगह होगी जहां उनका निर्वाण हुआ। उस जगह पर तो प्रवेश उनको ही मिल सकेगा, जो सच में ही पात्र है और उस यात्रा पर निकल सकते है। एक फाल्स जगह, एक झूठी जगह आम आदमी से बचाने की लिए खड़ी की जाएगी। जिसपर तीर्थयात्री जाता रहेगा। नमस्कार करता रहेगा और लौटता रहेगा। वह जगह तो उनको ही बतायी जाएगी जो सचमुच उस जगह आ गए है। जहां से वह सहायता लेने के योग्य है या उनको सहायता मिलनी चाहिए। ऐसी बहुत सी जगह है।
अरब में एक गांव है जिसमें आज तक किसी सभ्य आदमी को प्रवेश नहीं मिल सका—आज तक अभी भी। चाँद पर आप प्रवेश कर गए लेकिन छोटे से गांव अल्कुफा में आज तक किसी यात्री को प्रवेश नहीं मिल सका। सच तो यह है कि आज तक यह ठीक हो सका नहीं कि वह कहां है। और वह गांव है। इसमें कोई शक-शुबहा नहीं, क्योंकि हजारों साल से इतिहास उसकी खबर देता है। किताबें उसकी खबर देती है। उसके नक्शे है।
वह गांव कुछ बहुत प्रयोजन से छिपाकर रखा गया है। और सूफियों में जब कोई बहुत गहरी अवस्था में होता है तभी उसको उस गांव में प्रवेश मिलता है। उसकी सीक्रेट कि है। अल्कुफा के गांव में उसी सूफी को प्रवेश मिलता है जो ध्यान में उसका रास्ता खोज लेता है। अन्यथा नहीं। उसकी की हे फिर तो उसे कोई रोक भी नहीं सकता। अन्यथा कोई उपाय नहीं है। नक्शे है, सब तैयार है, लेकिन फिर भी उसका पता नहीं लगता वह कहां हे। वह सब एक अर्थ में नक्शे थोड़े से झूठ है ओर भटकाने के लिए है। उन नक़्शों को जो मानकर चलेगा वह अल्कुफा कभी नहीं पहुंच पाएगा।
इसलिए बहुत यात्री यूरोप के पिछले तीन सौ वर्षों में सैकड़ों यात्री अल्कुफा को ढूंढने गए है। उनमें से कुछ तो कभी लौटें नहीं मर गय। जो लौटे वे कभी कहीं पहुंचे नहीं। वे सिर्फ चक्कर मारकर वापस आ गए। सब तरह से कोशिश की जा चुकी है। पर उसकी कुंजी है। और वह कुंजी एक विशेष ध्यान है; और उस विशेष ध्यान में ही अल्कुफा पूरा का पूरा प्रगट होता है। और वह सूफी उठता है और चल पड़ता है। और जब इतनी योग्यता हो तभी उस गांव से गति है। वह एक सीक्रेट तीर्थ है जो इसलाम से बहुत पुराना है। लेकिन उसको गुप्त रखा गया है। इन तीर्थों में भी जो जाहिर है। इन तीर्थों में भी जो जाहिर दिखाई पड़ते है, वे असली तीर्थ नहीं है। आस पास असली तीर्थ है।
जैसे एक मजेदार घटना घटी। विश्वनाथ के मंदिर में काशी में जब विनोबा हरि जनों को लेकर प्रवेश कर गए, तो कर पात्री ने कहा कि कोई हर्ज नहीं, हम दूसरा मंदिर बना लेंगे, और दूसरा मंदिर बनाना शुरू कर दिया। वह मंदिर तो बेकर हो गया। तो दूसरा मंदिर बनाना शुरू कर दिया। साधारणत: देखने में विनोबा ज्यादा समझदार आदमी मालूम पड़ते है कर पात्री से। असलियत ऐसी नहीं है। साधारण देखने में कर पात्री निपट पुराणपंथी, नासमझ, आधुनिक जगत और ज्ञान से वंचित मालूम पड़ते है। यह थोड़ी दूर तक सच है बात। लेकिन फिर भी जिस गहरी बात की वह ताईद कर रहे है उसके मामले में वह ज्यादा जानकार है।
सच बात यह है कि विश्वनाथ का मंदिर भी असली नहीं है। और वह जो दूसरा बनाएँगे वह भी असली नहीं होगा। असली मंदिर तो तीसरा है। लेकिन उसकी जानकारी सीधी नहीं दी जा सकती। और असली मंदिर को छिपाकर रखना पड़ेगा, नहीं तो कभी भी कोई भी धर्म सुधारक उसको भ्रष्ट कर सकता है। अभी जो विश्वनाथ का मंदिर है खड़ा हुआ, इसको तो नष्ट किया जा चुका है। इसमें कोई उपाय नहीं है। इसमें कोई कठिनाई नहीं है चाहे नष्ट कर दो।
वह जो दूसरा बनाया जा रहा है वह भी फाल्स है। लेकिन एक फाल्स बनाए ही रखना पड़ेगा, ताकि असली पर नजर न जाए। और असली को छिपाकर रखना पड़ेगा। विश्वनाथ के मंदिर में प्रवेश की कुंजियों है, जैसे अल्कुफा में प्रवेश की कुंजियों है। उसमें कभी कोई सौभाग्यशाली संन्यासी प्रवेश पाता है। उसमें कोई ग्रह स्थ कभी प्रवेश नहीं पाया और कभी पा नहीं सकता। सभी संन्यासी को भी उसमें प्रवेश नहीं मिल पाते है कभी कोई सौभाग्यशाली संन्यासी उसमें प्रवेश पाते है। और उसे सब भांति छिपाकर रखा जाएगा। उसके मंत्र है और जिनके प्रयोग से उसका द्वार खोलेगा, नहीं तो उसका द्वार नहीं खुले गा। उसका बोध ही नहीं होगा,उसका ख्याल ही नहीं आएगा।
काशी में जाकर इस मंदिर की लोग पूजा, प्रार्थना करके वापस लौट आएंगे। मगर इस मंदिर की भी अपनी एक सेंक्टिंटी बन गया थी। यह झूठा था, लेकिन फिर भी लाखों वर्षों से उसको सच्चा मानकर चला जा रहा था। उसमें भी एक तरह की पवित्रता आ गयी।
सारे धर्मों ने कोशिश की है कि उनके मंदिर में या उनके तीर्थ में दूसरे धर्म का व्यक्ति प्रवेश न करे। आज हमें बेहूदगी लगती है यह बात। हम कहेंगे इससे क्या मतलब है। लेकिन जिन्होंने व्यवस्था की थी उनके कुछ करण थे। यह करीब-करीब मामला ऐसा ही है जैसे कि ऐटमिक एनर्जी की एक लेबोरेटरी है और अगर यह लिखा हो कि यहां सिवाय ऐटमिक साइंटिस्ट के कोई प्रवेश नहीं करेगा। तो हमें कोई कठिनाई नहीं होगी। हम कहेंगे, बिलकुल ठीक है, बिलकुल दुरुस्त है। खतरे से खाली नहीं है दूसरे आदमी का भीतर प्रवेश करना।
लेकिन यही बात हम मंदिर और तीर्थ के संबंध में मानने को राज़ी नहीं है। क्योंकि हमें यह ख्याल ही नहीं है कि मंदिर और तीर्थ की अपनी साइंस है। और वह विशेष लोगों के प्रवेश के लिए है। आज भी एक मरीज बीमार पडा है और उसके चारों तरफ डाक्टर खड़े होकर बात करते रहते है। मरीज सुनता है, समझ तो कुछ नहीं आता। क्योंकि वह किसी खास कोड लेंग्वेज में बात करते है। वह लैटिन या ग्रीक शब्दों को उपयोग कर रहे है। यह मरीज के हित में नही है कि उस समझे। इसलिए सारे धर्मों ने अपनी कोड़ लेंग्वेज विकसित की थी। उसके गुप्त तीर्थ थे, उसकी गुप्त भाषाएँ थीं। उसके गुप्त शास्त्र थे। और आज भी जिनको हम तीर्थ समझ रहे है उनमें बहुत कम संभावना है सही होने की। जिनको हम शास्त्र समझ रहे है। उनमें बहुत कम संभावना है सही होने की।
वह जो सीक्रेट ट्रैडीशनल है, उसे तो छिपाने की निरंतर कोशिश की जाती है। क्योंकि जैसे ही वह आम आदमी के हाथ में पड़ती है, उसके विकृत हो जाने का डर है। और आन आदमी उससे परेशान ही होगा, लाभ नहीं उठा सकता। जैसे अगर सूफियों के गांव अल्कुफा में अचानक आपको प्रवेश करवा दिया जाए तो पागल हो जाएंगे। अल्कुफा की यह परंपरा है कि वहां अगर कोई आदमी आकस्मिक प्रवेश कर जाए तो पागल होकर लौटे गा—वह लौटे गा ही, इसमें किसी को कोई कसूर नहीं हे।
क्योंकि अल्कुफा इस तरह की पूरी के पूरे मनस तरंगों से निर्मित है कि आपका मन उसको झेल नहीं पाएगा। आप विक्षिप्त हो जाएंगे। उतनी सामथ्र्य और पात्रता के बिना उचित नहीं है। कि वहां प्रवेश हो। जैसे अल्कुफा के बाबत कुछ बातें ख्याल में ले लें तो और तीर्थों का ख्याल में आ जाएगा।
जैसे अल्कुफा में नींद असंभव है, कोई आदमी सो नहीं सकता। तो आप पागल हो ही जाएंगे जब तक कि आपने जागरण का गहन प्रयोग न किया हो। इसलिए सूफी फकीर की सबसे बड़ी जो साधना है वह रात्रि जागरण है, रातभर जागते रहेंगे। और एक सीमा के बाद ….एक बहुत सोचने जैसी बात है—एक आदमी नब्बे दिन तक खाना न खाए तो भी सिर्फ दुर्बल होगा, मर नहीं जाएगा, पागल नहीं हो जाएगा।
साधारण स्वस्थ आदमी आसानी से नब्बे दिन, बिना खाए रह सकता है। लेकिन साधारण स्वस्थ आदमी इक्कीस दिन भी बिना सोए नहीं रह सकता। ती महीने बिना खाए रह सकता है। तीन सप्ताह बिना सोए नहीं रह सकता। ती सप्ताह तो बहुत ज्यादा कह रहा हूं, एक सप्ताह भी बिना सोए रहना कठिन मामला है। पर अल्कुफा में नींद असंभव है।
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