मनु महराज ने, अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु, मत्स्य भगवान से पूछा कि हे भगवान! यात्रा, या अनुष्ठान के पूर्व, या वैसे भी सामान्यतया जो अनेक प्रकार के स्वप्न मनुष्य को समय-समय पर दिखायी देते हैं, उनके शुभाशुभ फल क्या होते हैं, बताने की कृपा करें, यथा-
स्वप्नाख्यानं कथं देव गमने प्रत्युपस्थिते। दृश्यंते विविधाकाराः कशं तेषां फलं भवेत्॥
मत्स्य भगवान ने स्वप्नों के फलीभूत होने की अवधि के विषय में बताते हुये कहा :
कल्कस्नानं तिलैर्होमो ब्राह्मणानां च पूजनम्। स्तुतिश्च वासुदेवस्य तथा तस्यैव पूजनम्॥६॥
नागेंद्रमोक्षश्रवणं ज्ञेयं दुःस्वप्नाशनम्। स्वप्नास्तु प्रथमे यामे संवस्तरविपाकिनः॥७॥
षड्भिर्भासैर्द्वितीये तु त्रिभिर्मासैस्तृतीयके। चतुर्थे मासमात्रेण पश्यतो नात्र संशयः॥८॥
अरुणोदयवेलायां दशाहेन फलं भवेत्। एकस्यां यदि वा रात्रौशुभंवा यदि वाशुभम्॥९।
पश्र्चाद् दृषृस्तु यस्तत्र तस्य पाकं विनिर्दिशेत्। तस्माच्छोभनके स्वप्ने पश्र्चात् स्वप्नोनशस्यते॥२०॥
अर्थात, रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल एक संवत्सर में अवश्य मिलता है। दूसरे प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल ६ माह में प्राप्त होता है। तीसरे पहर में देखे गये स्वप्न का फल ३ माह में प्राप्त होता है। चौथे पहर में जो स्वप्न दिखायी देता है, उसका फल 1 माह में निश्चित ही प्राप्त होता है। अरुणोदय, अर्थात सूर्योदय की बेला में देखे गये स्वप्न का फल १० दिन में प्राप्त होता है। यदि एक ही रात में शुभ स्वप्न और दुःस्वप्न दोनों ही देखे जाएं, तो उनमें बाद वाला स्वप्न ही फलदायी माना जाना चाहिए, अर्थात् बाद वाले स्वप्न फल के आधार पर मार्गदर्शन करना चाहिए। क्योंकि बाद वाला स्वप्न फलीभूत होता है, अतः यदि रात्रि में शुभ स्वप्न दिखायी दे, तो उसके बाद सोना नहीं चाहिए।
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—–साँप- भारतीय परंपरा में मदमस्त साँप को देखने का अर्थ है, कुंडली का जागृत होना तथा आंतरिक प्रेरणा एवं बाहरी सजग दृष्टिकोण के बीच संघर्ष के रहते सपनों में हिलते सर्प दिखाई देते हैं।
—– पक्षी- पक्षी आत्मा या वासनाओं से मुक्ति का प्रतीक होता है। स्वप्न में पक्षी किस अवस्था में दिखता है उसी से आत्मा की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है।
—– उड़ना- यह आत्मविश्वास या स्वतंत्रता एवं मोक्ष का दर्शन है। आधुनिक विचारधारा इसे असाधारण क्षमता के प्रतीक के रूप में देखती है।
—-घोड़े- घोड़े का दिखना स्वस्थ होने का सूचक है। यह परोक्ष दर्शन की क्षमता सुझाता है। कुछ लोग इसका संबंध प्रजनन से जोड़ते हैं।
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दरअसल, सपनों के संबंध में यह पोस्ट इसलिए मैंने रखी, क्योंकि कल रात (सुबह 5 से 8 के दरमियान) मैंने सपना देखा कि...
ढेर सारे सांप एक मैदान में, पूरे मैदान में बाएं से दाएं कोने की ओर फैले हुए भाग रहे हैं। शायद वे जहरीले नहीं है और उनका ध्यान मेरी तरफ है भी नहीं। वे बस जा रहे हैं। वे पिरपिट्टी सांप की तरह दिखते हैं। इस सीन के पहले मैदान में कदम रखते ही या इसके पहले कहीं हरे रंग का बड़ा मोटा सांप भी था, जिसे देखते हुए मैं निकला था। वो बस था। वो मुझे सामान्य रूप से देख रहा था और मैं उसे देखते हुए निकल गया था। उसकी आंखे शायद लाल थीं।
तो मैदान में वे पिरपिट्टी की तरह दिखने वाले सांप जा रहे थे और मैं उनके बीच की जगह में पैर रखकर, देख-देखकर बचते हुए, लगभग कूदते हुए जा रहा था, या यूं कहिए कि वहां से जल्दी निकलने की कोशिश कर रहा था। सांप से मैं भीतर से डरता ही हूं चेतन अवस्था में भी। तो वही स्वाभाविक भय मेरे भीतर उस समय भी था। तो कूदते हुए मैं वहां से निकल रहा था और धीरे-धीरे उडऩे लगा था ऊंचा बहुत ऊंचा। डर इस बात का था कि कहीं सांपों के ऊपर न गिर जाऊं और वे मुझे न काट लें, क्योंकि पूरे मैदान सांप बीच-बीच में फैले हुए थे। उड़ते हुए मैं दूसरे हिस्से की तरफ जा भी रहा था, लेकिन मुझे लग रहा था कि यह मैदान, मैदान मतलब सांपों वाला मैदान खत्म क्यों नहीं होता, कितना बड़ा है यह। थोड़ी देर बाद मुझे एक हरी घास वाला दूसरा मैदान जैसा क्षेत्र दिखाई पड़ता है। मैं भीतर से सामान्य हुआ कि चलो सांपो वाले मैदान से या सांपो से तो निजात मिली। तभी उसी समय शायद मैं धीरे-धीरे नीचे आ गया। ठीक-ठीक याद नहीं है कि उसके बाद क्या हुआ। लेकिन सीन बदल चुका था, जिसमें मैं देखता हूं कि एक बड़े विशाल हरे पत्ते वाले पीपल... गाढ़े हरे पत्ते वाले उस पेड़ के पत्तों को मैं छू रहा हूं और खुशी महसूस करते हुए सोच रहा हूं कि चलो यह हुआ या मुझसे यह होना अच्छा लगा... इस तरह का कुछ। और पत्तों को छूने के बाद, नया सीन देखता हूं शायद कि उड़ते हुए डाल को, ऊंचे में छू रहा हूं।
और वह पूरा पेड़ पत्ते सब गहरे रंग के.. गाढ़े हैं। इतने ताजगी लिए हुए, ऐसी जीवंतता के साथ कि मैं वह सोचने लगता हूं या कहूं कि मेरे बोध में वह बात भी आती है कि जो मैंने पढ़ी थी बुद्ध और उसके एक शिष्य के बारे में कि आज्ञा चक्र जगने के समय सपने भी पूरी तरह सच्चे मालूम पड़ते हैं। यह बात भी मेरे बोध में बनी रहती है।
इसके बाद सपना या तो बदल जाता है, या फिर मुझे याद नहीं है कि क्रमवार क्या हुआ। बहरहाल, आगे मैं देखता हूं मेरे दोस्त अतुल को और मोबाइल या उससे संबंधी कुछ बात करते हुए और मोबाइल के संबंध में कुछ सोचता भी हूं, लेकिन मुझे अभी याद नहीं है कि क्या सोचता हूं। दरअसल, हाल में मैंने नोकिया का डुअल सिम फोन खरीदा है और नोकिया की सर्विस से बहुत प्रभावित भी हूं। कल ही रात मैं ऊपर माले पर रहने वाले नवीन से नोकिया की तारीफ करते हुए कह रहा था कि उसकी टीशर्ट लाओ पहनूंगा। अच्छी नीयत वाली कंपनी को प्रमोट कर ने की जरूरत है, उसका यूं पिछडऩा अखरता है। तो शायद इस वजह मोबाइल सपने में दिखा होगा।
इसके बाद मेरी आंखों के सीध में, दोनों कोरों के फ्रेम में से... एक बड़ा खाली स्टेडियम दिखाई पड़ता है। जैसे खिड़की खोलने पर दिखाई पड़ता है, वैसे ही मेरे आंखों की दूरी से फैलता हुआ विशाल खाली स्टेडियम। इसके संबंध में भी मेरे भीतर कुछ ख्याल आता है। पर अभी मुझे मेरे एहसास याद नहीं है। और यह सपना यहीं खत्म हो जाता है।
खैर, जब उड़ते हुए पेड़ देख रहा था या फिर जब मुझे हरी घास वाला मैदान दिखाई पड़ा था, तभी मैं उड़ते हुए, उडऩे वाली पोजीशन में ही सुरक्षित नीचे सतह पर उतरता हूं। उसके बाद दोबारा फिर उडऩे की कोशिश करता हूं, तो उडऩा नहीं हो पाता। पूरा दम लगाने के बाद भी वह नहीं हो पाता। मैं सोचता भी हूं मैं अब नहीं उड़ पा रहा हूं।
इस तरह उडऩे वाला सपना इधर के दस-पंद्रह सालों में मैं चार मर्तबा देखा हूं। उससे ज्यादा बार देखा होऊंगा तो मुझे याद नहीं है।
इसके पहले ऐसा याद पड़ता है कि यहीं भोपाल में रहते हुए मैंने देखा था...
मैं उड़ रहा हूं, शायद मैदान से ही। अरबी वेशभूषा वाले लोग भी शायद उस समय थे। उनके बीच में मैं हूं और क्राइसेस का समय है। कोई लोग पीछे पड़े हैं। हम लोग भाग रहे हैं और भागते-भागते बड़ी दीवार को कूदता हूं और डाइमेंशन बदल जाता है और मैं उडऩे लगता हूं। एक खाली बड़े मैदान में उड़ते हुए मैं शायद फिर कहीं नीचे आता हूं और फिर कोशिश के बाद भी दोबारा नहीं उड़ पाता। यह सपना इतना ही याद है फिलहाल।
ऐसे ही दो सपने बालाघाट (मेरा होमटाउन) में देखा था। पहले सपने में मैं देखता हूं कि अपने घर की ऊपर छत पर सोया हूं और वहीं से उडऩे लगता हूं और उड़ते-उड़ते अनेक जगहों पर जाता हूं। और नीचे आने पर सतह में फिर कोशिश करने पर कुछ दो-तीन फीट ऊपर से उड़ता हूं, लेकिन इसके बाद फिर आगे उडऩे में सफल नहीं हो पाता।
थोड़ा और पीछे... शायद और 1998-99-2000 के बीच की बात होगी। उस समय भी एक सपना देखा था कि हरे रंग के एनाकोंडा टाइप के विशाल फन वाले विशाल सांप के पीछे-पीछे मैं दौड़ रहा हूं। यह सीन शायद बालाघाट के ही मुलना स्टेडियम का है, जहां खेत टाइप की जगह पर मैं उसके पीछे हूं। और इसी दौरान मैं शायद उड़ता भी हूं।
बहरहाल, ये उडऩे वाले सपने तीन-चार बार आए हैं, इसलिए लगा मुझे कि शायद इनका कोई विशेष महत्व हो सकता है। इसलिए मैंने इनके संबंध में पता करने के लिए आज गूगल सर्च मारा। नतीजतन, ऊपर दी गई जानकारी मिली।
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