फुरसत का क्रिएटिविटी से संबंध है, यह तो मुझे पता ही है। लगता ही है। समय-सीमा, सीमा तो तनाव को जन्म देती है। उसमें काम फिर पेशेवराना हो जाता है। फुरसत का तो मतलब ही रिलेक्सेशन है।
चीजों को दूरी से साक्षी बनकर, बिना किसी जुड़ाव के देखने में अलग तरह का आनंद, सुकून है। चीजें इसी तरीके से तो समझ में आती हैं। विषय विषयी के सामने खुद को तभी उद्घाटित करता है, उघारता है। फुरसत के बिना काम तो महज काम हो जाता है। इसमें विषय को लेकर तो धारणाओं को आरोपित करने की ही कोशिश होती है, जबरदस्ती समझने की। फुरसत में ग्रहणशीलता बढ़ जाती है, समझ का, समझने का गुणधर्म बदल जाता है।
तो फुरसत और दूरी से संबंधित एक आर्टिकल जब भास्कर ब्लॉग में पिछले दिनों आया, तो स्वाभाविक रूप से इसके लिए आकर्षण जाग उठा। फुरसत शब्द ने अलग तरह का जादू जगा दिया। इस शब्द में अलग तरह का विश्राम है। फुरसत का यह गोपनीय अर्थ ही मेरे अंदर शायद अलग तरह की प्रतिक्रिया देता है। इसे सुनकर ही मेरे भीतर की हजारों-करोड़ों नाडिय़ों में शांति की लहर जाग उठती है।
न जाने कितने जन्मों की थकावट है मेरे भीतर मुझे पता नहीं, जो शांत होने के लिए, आराम पाने के लिए मचल रही है। काल्पनिक या छलावे के रूप में, मृगतृष्णा के रूप में भी रिलेक्सेशन की अनुभूति सामने आने पर मेरे समग्र का कोई छोटा अंश तृप्त होने लगता है। जैसे जेठ की तपती दोपहरी में प्यास से बेहाल शख्स का पानी पीने के ख्याल मात्र से एक तृप्ति का एहसास मन में आ जाए। एक संतुष्टि घेर ले।
राजीव सिंह जी दैनिक भास्कर के संपादकीय साथी ने यह फुरसत और दूरी पर आधारित आर्टिकल लिखा था। दार्शनिक अंदाज में लिखे इस लेख का विषय भी मूलत: दार्शनिक ही है। जिसे अनुभव लिया आदमी ही बेहतर समझ सकता है। अन्यथा सामान्य पाठक के लिए तो यह केवल बौद्धिक कसरत या विद्वता दिखाने की कवायद मात्र होगी... शायद। वैसे मूलत: यह लेख दूरी पर आधारित है। इसमें दूरी के अलग-अलग आयाम बताए गए हैं। लेख का केंद्रीय तत्व दूरी है, लेकिन शुरुआत में फुरसत का जिक्र है... कि फुरसत से, एकांत से, चांद-सितारे की सोहबत से, कैसे समझ का द्वार खुल जाता है। इस लेख को यहां http://www.bhaskar.com/article/ से पढ़ा जा सकता है।
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