अपने सपनों को साकार करने आई गोरखपुर की मासूम ‘दामिनी’ के साथ चलती बस में दुष्कर्म ने एक ओर जहां दरिंदगी का चेहरा उजागर कर दिया, वहीं दूसरी ओर इन सवालों को •ाी आवाज दे दिया कि ब्वॉयफ्रेंड के साथ घूमना, रात में घूमना और तकरीबन खाली बस में बैठना... सुरक्षा के लिहाज से कितना सही फैसला था???
इस मुद्दे पर सबकी राय जुदा है, लेकिन अनेक महिला-संगठन और नारी स्वतंत्रता के ठेकेदार, इस घटना के लिए पुलिस, प्रशासन और सरकार को आड़े हाथ ले रहे हैं और सुरक्षा संबंधी किसी •ाी सुझाव-सलाह को नारी की आजादी पर हमला मान रहे हैं.
दुष्कृत्य के बाद दिल्ली में हुए आंदोलन में मिनी स्कर्ट पहने एक लड़की के हाथ में तख्ती थी, जिस पर लिखा था- ‘मेरी स्कर्ट से •ाी ऊंची मेरी आवाज है.’
अपने अंदाजो-अदायगी से, तमाम प्रतीकों के साथ शायद वह यह जताना चाहती थी... ‘हमें मत सिखाओ कैसे कपड़े पहनें, कैसे रहें? कब आएं, कब जाएं? अकेले घूमें या साथ में, किसी को हमें रोकने, टोकने, बोलने का अधिकार नहीं है. हमें जो अच्छा लगेगा वह करेंगी. बोलना ही है, तो लड़कों को बोलो, वे गलत करते हैं. सुधारना ही है, तो माहौल सुधारो, वह बदतर हो चुका है.’
बेशक, लड़के बिगड़ते जा रहे हैं, उन्हें सुधारना जरूरत है. माहौल •ाी खराब है, उसे •ाी दुरुस्त करना जरूरी है. बेशक, दामिनी के साथ जो हुआ वह अक्षम्य है और ऐसी घटनाएं दोबारा न हो, इसके लिए ठोस कदम उठाए जाने जरूरी है.
मौजूदा हिंदुस्तानी समाज में पुरुषों की बढ़ती लंपटता और औरतों के लिए असुरक्षित होता जा रहा माहौल नि:संदेह प्रासंगिक प्रश्न है. लेकिन बुनियादी सवाल है- किसी •ाी क्षेत्र में किसी •ाी मामले में क्या सौ फीसदी सुरक्षा सं•ाव है? किसी •ाी कालखंड में, किसी •ाी समाज में लूट, चोरी, डकैती, हादसे पूरी तरह रुके हैं या रोके जा सके हैं??? क्या टेÑन-टॉकीज में जेब कटने से बचने के लिए हम सावधानी नहीं बरतते? क्या रूपयों से •ारा बैग लाते समय अक्सर हम अकेले आने से नहीं बचते?
यकीनन हम सब पूरी एयतियात रखते हैं, लेकिन जब बात औरतों की सुरक्षा को लेकर दिए जा रहे सुझावों का आता है, तो हमारा नजरिया बदल जाता है.
हमें यही बात समझनी है कि जब हम अन्य मामलों में सावधान रहते हैं, तो नारी-सुरक्षा के लिए दिए जा रहे सही-गलत, व्यावहारिक-गैरव्यावहारिक सुझावों के प्रति पूरी तरह नकारात्मक दृष्टिकोण... उसे अपनी आजादी पर हमला मानना कितना सही है? क्या यह नारी स्वतंत्रता का झंडा लेकर मनमाना रवैया अख्तियार करना नहीं है?
मूल बात यह है- अपनी सुरक्षा के लिए हमें खुद जागरूक रहना होगा. अपने स्तर पर •ाी सावधानी रखनी होगी, चाहे वह महिला हो या पुरुष. सारे जतन के बाद •ाी पुलिस, प्रशासन, सरकार या कोई •ाी सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकेगा.
दामिनी के साथ तो गलत करने वाले अजनबी थे, लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि किसी लड़की को अकेला पाकर उसके ब्वॉयफ्रेंड की नीयत खराब नहीं होगी? आखिरकार, इसी असावधानी या लापरवाही के चलते, दामिनी प्रकरण के बाद नए साल के जश्न की रात, दिल्ली की ही एक और युवती अपने फेसबुक-फ्रेंड की ज्यादती का शिकार हुई. वह आधी रात को अकेले मिलने गई थी.
तो मध्यप्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने लड़कियों को लक्ष्मण-रेखा न लांघने संबंधी बयान देकर ऐसा क्या गुनाह कर डाला कि उस पर इतना बवाल मचाया गया? राष्ट्रपति के विधायक पुत्र ने लड़कियों को देर रात डिस्को में न घूमने की समझाइश देकर ऐसा क्या कह दिया कि उस पर इतना इतना विवाद खड़ा किया गया?
सच तो यह है, इन बयानों के पीछे लड़कियों के सुरक्षा की सद्•ाावना ही छिपी थी. ये बयान गलत नहीं थे, बल्कि उनकी टाइमिंग गलत थी. सही बात गलत समय में कही गई थी, इसीलिए ये विवादित हुए. होता है, अक्सर यही होता है... •ाावनाओं की आंधी में सच का तिनका अक्सर गुम हो जाता है.
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यह आर्टिकल फरवरी 2013 में लिखा था. नव•ाारत में ज्वाइनिंग के पहले एडीटर ने किसी टॉपिक पर लिखने कहा था.