आमतौर पर मैं कठिन विषयों या बात पर कलम चलाते समय सहज, बोधगम्य भाषा के पक्ष में ही वोट देता हूं। लेकिन साधारण विषय को असाधारण बनाने भाषा की मदद ली जा सकती है। यात्रा पर उपमाओं-व्यंजनाओं से सजा रचना जी (दैनिक भास्कर की महिलाओं की साप्ताहिक मैगजीन मधुरिमा की संपादिका) का यह छोटा आर्टिकल अच्छा बन पड़ा है। आपको इसमें भाषा की ताकत दिखाई पड़ेगी... कि साधारण चाकलेट भी रैपर की वजह से कैसे आकर्षक हो जाती है। आप भी इसका स्वाद लीजिए...
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