राहुल द्रविड़ व गांधी पर तुलना करता हुआ एक आर्टिकल राजदीप सरदेसाई ने लिखा है। सरदेसाई के ऐसे तुलनात्मक लेख पठनीय होते हैं। दो अलग-अलग चीजों को को वे तुलनात्मक रूप से अच्छे से कनेक्ट करते हैं। उनकी संवेदनाएं ऐसे मामलों में जल्दी जागती हैं। वैसे राहुल द्रविड़ पर आज एक लेख जयप्रकाश चौकसे ने भी लिखा है। व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं लगा। अतिश्योक्ति के साथ ही जबरन ठूंसी हुई उपमा (शुरुआत में ही) और उपदेशात्मक अंदाज था। हां, चारण गान... जैसे शब्द और आर्टिकल का अंत बहुत बढिय़ा लगा। राहुल द्रविड़ के संन्यास पर सबने कुछ-न-कुछ कहा है। एक अलग अंदाज वाले खिलाड़ी को लेकर सबके अपने-अपने एहसास हैं। द्रविड़ के संन्यास-दिवस पर मैंने भी कलम चलाई है। मुझे वे नींव का पत्थर वाले श्रेणी का लगे। इन तीनों आर्टिकल की लिंक एक-के-बाद-एक नीचे दी जा रही है...
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