सिकंदर या अशोक महान की तरह होना ही साहस का पर्याय नहीं है, यह तो सतही अर्थ है, जीवनपथ पर विचलित हुए बिना अपने लक्ष्य पर डटे रहना ही सच्ची बहादुरी है...
साहस की बात निकलती है तो सामान्यत:, दुनिया भर में अपने बाहुबल का डंका बजाने वाले किसी सम्राट या शहंशाह का जिक्र आता है। या इससे इतर, कई लोगों से अकेले लडऩे वाला शक्तिशाली पुरुष, या बिना किसी भय के शेर से लोहा लेने वाला नौजवान या खतरनाक परिस्थितियों में जूझने वाले व्यक्ति की बात हो जाती है। अमूमन ऐसे ही लोग वीर-साहसी कहे जाते हैं।
दरअसल, वीर या साहसी होने का मतलब सिकंदर या अशोक महान की तरह होना नहीं है। यह तो सतही अर्थ है, असल में इसका दायरा बहुत बड़ा है। जैसे साहसी होने का एक मतलब यह है.. जो कुछ हमें सही लगता है, उसे पूरे तन-मन से, दृढ़ विश्वास और लगन के साथ अंजाम तक पहुंचाते हैं।
दरअसल, साहस मन व भावना के स्तर पर होती है, और इसका प्रक्षेपण भी हर क्षेत्र में होता है। किसी काम को पूरा करना अपने आप में चुनौती है, और उसके लिए साहस की जरूरत पड़ती है, चाहे वो काम छोटा हो या बड़ा। हर मौसम में धूप- बारिश की चिंता किए बिना रोज काम पर जाने वाला मजदूर या किसान, या फिर उद्देश्य को पाने के लिए मूर्ति को ही गुरु मानकर अभ्यास करने वाला एकलव्य। ये सभी साहसी कहे जाएंगे।
दरअसल मनुष्य स्वभावगत आलसी वृत्ति के कारण हर चीज को टालता है। या कई मर्तबे किसी काम को करने के दौरान आने वाली मुश्किलें उसकी राह का पत्थर बन जाती हैं। तब लक्ष्य से भटककर उसे वह अधूरा ही छोड़ देता है। ऐसे समय में विचलित हुए बिना काम को पूरा करना साहस ही है। साहस का मतलब ही मनोबल, आत्मबल, दृढ़संकल्प बनाए रखना है। दरअसल, व्यक्ति को बाहरी जगत से ज्यादा अपने भीतरी वृत्तियों से खतरा रहता है। आलस्य-प्रमाद, नकारात्मक विचार, गुस्सा ही व्यक्ति के भीतर की शांति को खत्म करते हैं, उसे लक्ष्य से भटकाते हैं। ऐसे में अपने दैनिक जीवन में अपने उद्देश्य को बिना भटके हुए पूरा करने वाला ही सही मायने में साहसी कहा जाएगा। साहस और कुछ नहीं मनोबल, आत्मबल, एकाग्रता दृढ़संकल्प का दूसरा नाम है।
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