साल भर पहले देश भर में असहिष्णुता ( इनटोलरेंस) का मुद्दा गरमाया हुआ था। उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी सबके निशाने पर थे। उन दिनों इस बात की बड़ी चर्चा थी कि मोदी सरकार पत्रकारों को टारगेट कर रही है... ऐसे पत्रकारों को जो उनके विरोधी हैं, उनसे असहमति जताते हैं। कहा जा रहा था, समर्थक, विरोधी और मध्यमार्गी पत्रकारों (ऐसे पत्रकार जो कभी तारीफ करते तो कभी विरोध करते हैं) की बाकायदा लिस्ट बनाई गई है। कुछ खास लोगों को मध्यमार्गी पत्रकारों को समर्थक खेमे में लाने का जिम्मा सौंपा गया है और जो पक्ष में आने को तैयार नहीं हैं उन्हें विरोधी खेमे में डालकर उन्हें उनकी जगह बताने, च्ठिकाने लगानेज् की योजना है।
हो सकता है ये बातें कोरी अफवाह हों, लेकिन अमूमन यही देखने में आता है कि व्यक्ति जितना ज्यादा सफल होता जाता है, उसके लिए आलोचना या असहमति उतनी ही असहनीय हो जाती है। बिरले ही होते हैं, जो विरोध या आलोचना की कड़वी घुट्टी को बिना किसी पूर्वग्रह के, दुर्भावनापूर्ण माने बिना पी लेते हैं। प्राय: यही होता है कि व्यक्ति के अंदर सफलता के अनुपात में तानाशाही प्रवृत्ति बढऩे लगती है। वह अपने आसपास असहमति जताने वालों को खारिज करना चाहता है, उसे यसमैन पसंद आते हैं। इसे सफलता का साइड इफेक्ट कहा जा सकता है। और इस साइड इफेक्ट के शिकार संभवत: एक और शिखर-पुरुष हो रहे हैं....भारतीय क्रिकेट के दैदीप्यमान नक्षत्र विराट कोहली।
कोहली आज शाहरुख खान के बाद हिंदुस्तान के दूसरे सबसे महंगे सेलेब बन गए हैं। वे लगातार सफलता की नई-नई मीनारों पर चढ़ते जा रहे हैं, नए-नए शिखर चूमते जा रहे हैं। लेकिन उन्हें भी आलोचना करने वाले फूटी आंख नहीं सुहाते हैं। पिछले दिनों एक बंगाली अखबार ने दावा किया कि कॉमेंट्रेटर हर्षा भोगले को विराट कोहली और मुरली विजय की नाराजगी भारी पड़ी थी, इसी के चलते उन्हें कॉमेंट्री से हटाया गया था।
आपको याद ही होगा 2016 वल्र्ड टी-20 में हर्षा की भारतीय क्रिकेटरों पर टिप्पणी से खासा बवाल मचा था। भोगले ने भारत-बांग्लादेश मैच के दौरान कोहली के 7 रन बनाने पर कहा था- च्उन्होंने रन बनाने से ज्यादा शॉट खेल दिए हैं।ज् इस पर विराट नाराज हुए थे। अखबार के मुताबिक, कोहली को जब भोगले के कमेंट्स के बारे में पता चला था तो उन्होंने पूछ लिया कि ऐसे कमेंट क्यों किए। इस पर भोगले ने कोहली को समझाने का प्रयास भी किया और वॉट्सएप पर भी सफाई दी, लेकिन कोहली शांत नहीं हुए। भोगले की टिप्पणी को दिग्गज फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन ने भी गलत मानते हुए ट्वीट किए थे, जिसे बाद में कप्तान धोनी ने रिट्वीट कर दिया था। पूरे मामले का समापन हर्षा की छुट्टी से हुआ था। उस सीरीज के बाद स्टार स्पोट्र्स ने उनसे करार खत्म कर दिया था।
यकीनन, कोहली ने भोगले को हटवाने कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया होगा, उन्हें दबाव डालकर नहीं हटवाया होगा। लेकिन अहम बात तो यह है कि वे अपनी आलोचना पर इतने नाराज... असहनशील क्यों हुए? भोगले ने ऐसा क्या कह दिया जो नाकाबिल-ए-बर्दाश्त था? और यदि गलत था भी तो क्या उसे नजरअंदाज कर बड़प्पन नहीं दिखाया जा सकता था? परोक्ष रूप से ही सही, लेकिन कोहली व टीम इंडिया को भोगले के निर्वासन के लिए जिम्मेदार माना जाएगा... उनके लिए इस लांछन से बचना मुश्किल होगा। यही समझा जाएगा कि कोहली-बिग्रेड आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाती, उसने हर्षा को ठिकाने लगा दिया।
इस मामले का एक पहलू और भी है। स्टार ने भले ही विवाद टालने की गरज से अनुबंध खत्म किया हो। लेकिन मानने वाले यही मानेंगे कि स्टार ने गलत परंपरा को ही आगे बढ़ाया है। उगते सूरज को सलाम किया, दबंगों की नाराजगी मोल लेना पसंद नहीं किया। इस पूरे मामले में सबसे घातक बात भी यही है। दरअसल, हर्षा को जिस कारण से हटाया गया है, उसके बाद... इसी बात की संभावना ज्यादा है कि निष्पक्ष आलोचना से लोग बचने लगेंगे... डरेंगे। चरण वंदना... झूठी तारीफ करने वाले चारण-भाटों को बढ़ावा मिलने लगेगा। व्यक्ति पूजा महत्वपूर्ण हो जाएगी, तानाशाही प्रवृत्ति सर उठाने लगेगी।
वास्तव में, जस्बाती होकर तुरत-फुरत फैसले लिया जाना ही गलत था। अगर भोगले को हटाना जरूरी भी था, तो बाद में... मामला ठंडा पडऩे पर, खिलाडिय़ों व भोगले के बीच सुलह करा... गैप खत्म कराकर वापसी करवाई जानी थी। क्रिकेट के अन्य दिग्गज खिलाडिय़ों को भी बेहतर संवाद के लिए प्रयास करने थे। खुद कोहली को बड़ा दिल दिखाना था... आलोचना को पाजीटिव लेना था। उन्हें यह सोचना था कि भोगले ने क्या जानबूझकर, इंटेशनली उन्हें नीचा दिखाने टिप्पणी की है? यकीनन, ऐसा हरगिज नहीं रहा होगा। और अगर ऐसा भी होगा, तो बजाय आलोचना को कान देने के च्हाथी चले बाजार....ज् वाली फिलासफी को अमल में लाकर अपना बीपी हाई नहीं करना था।
सच तो यह है भोगले ने ऐसा कुछ गलत नहीं कहा था, जिस पर इतना बवाल मचना था। क्योंकि उन्होंने थोड़ा क्रूर, सपाट तरीके से कमियों पर टिप्पणी की थी, इसलिए अमिताभ बच्चन जैसे क्रिकेट प्रेमियों को अखर गया था और उन्होंने बजाय नतीजे या खिलाडिय़ों की कमियों पर ऊंगली उठाने के... उनकी मेहनत पर ध्यान देने की जरूरत बताई थी। खिलाडिय़ों से प्यार करने वाले प्रशंसक ऐसे ही होते हैं, उन्हें अपने आइकॉन में कमियां नहीं दिख पाती हैं। लेकिन कुछ कबीर-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले लोग भी होते हैं, जो कमियों पर बात करते हैं। हर्षा भोगले, शोभा डे ऐसे ही लोग हैं। अपनी इस आदत की वजह से वे निशाने पर भी आते हैं, सोशल मीडिया पर भी जमकर ट्रोल होते हैं।
लेकिन आलोचकों, निंदकों का अपना महत्व होता है, जिसे खारिज नहीं किया जाना चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी की तरह ही, असहमति की आजादी भी मूलभूत अधिकार है। उसकी की भी जगह होनी चाहिए। कोहली-ब्रिगेड को याद रखना चाहिए कि उनके पूवर्वती सचिन-सौरव के खेल पर भी टीका-टिप्पणी होती थी, लेकिन वे कभी अपने आलोचकों पर नाराज नहीं होते थे।
एक बात और...
मोदी व कोहली आज भले ही अपने दल व टीम के च्पोस्टर-ब्वॉयज् हैं... उनका सक्सेस रेट भले ही अपने सीनियर अटल-सचिन से ज्यादा है, लेकिन दिलों पर राज करने के मामले में ये उनसे पीछे ही हैं। ये दिग्गज (अटल-सचिन) अपने दल-टीम से बहुत ऊपर ... राजनीति-क्रिकेट के एंबेसडर माने जाते हैं, विरोधियों का भी प्यार, सम्मान इन्हें हासिल है। यह मुकाम सह्रदयता से... सबको साथ लेकर चलने से आता है। आज के पोस्टर ब्वॉयों को याद रखना चाहिए कि हर सफल व्यक्ति महान नहीं होता... सच्ची महानता तो दिलों पर राज करती है।
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