ेआदमी के पास अगर दो विकल्प हों कि वह या तो बड़ा अफसर बन जाए और खूब मजे करे, या फिर छोटा मोटा लेखक बन कर अपने मन की बात कहने की आजादी अपने पास रखे... तो भई, बहुत बड़े अफसर की तुलना में छोटा-सा लेखक होना ज्यादा मायने रखता है। हो सकता है आपकी अफसरी आपको बहुत सारे फायदे देने की स्थिति में हो, तो भी एक बात याद रखनी चाहिए कि एक-न-एक दिन अफसर को रिटायर होना होता है। इसका मतलब यही हुआ ना कि अफसरी से मिलने वाले सारे फायदे एक झटके में बंद हो जाएंगे, जबकि लेखक कभी रिटायर नहीं होता। एक बार आप लेखक हो गए, तो आप हमेशा लेखक ही होते हैं। अपने मन के राजा। आपको लिखने से कोई रिटायर नहीं कर सकता।
लेखक के पक्ष में एक और बात जाती है कि उसके नाम के आगे कभी स्वर्गीय नहीं लिखा जाता। हम कभी नहीं कहते कि हम स्वर्गीय कबीर के दोहे पढ़ रहे हैं या स्वर्गीय प्रेमचंद बहुत बड़े लेखक थे। लेखक सदा जीवित रहता है- भावी पीढिय़ों की स्मृति में, मौखिक और लिखित विरासत में। और वो लेखक ही होता है, जो आने वाली पीढिय़ों को अपने वक्त की सच्चाइयों के बारे में बताता है।
(इन्हें परिचय की जरूरत नहीं, बस नाम ही काफी है)
जोशी जी की उपदेश कथाएं पढऩे यहां क्लिक करें-
http://shortstories-of-sharad-joshi.html
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