मेरे पसंदीदा कॉलमनिस्ट में वेदप्रकाश वैदिक का नाम अव्वल है। उनके बाद राजदीप सरदेसाई भी मुझे बहुत भाते हैं। वैदिक जी का किसी भी मुद्दे पर विश्लेषण बहुत ही जबरदस्त है। वे लेखन के लिए जिस तरह के मुद्दे चुनते हैं वे आमतौर पर दिलचस्प होते हैं। विदेश मामलों में तो उनकी पकड़ लाजवाब है ही, इसके इतर वे भारतीय जनमानस को आंदोलित करने वाले मसलों पर भी साधिकार लिखते हंै और बहुत बढिय़ा लिखते हैं। एक बार फिर कहना पड़ रहा है कि उनका विश्लेषण बहुत ही सहज होता है। इसके बाद भाषा का चयन... इसमें भी वे सरल, बोधगम्य भाषा का उपयोग करते हैं। उनके किसी भी आर्टिकल को पढि़ए, आपको कहीं भी ऐसा नहीं लगेगा कि वे पांडित्य दिखाने के लिए लेखन कर रहे हैं।
चुनाव सुधारों पर बेतुकेपन का पर्दा, अफसरों का ही मरण क्यों?... सामाजिक सद्भाव या तनाव?, लोकपाल का भविष्य क्या?, लोकायुक्त पर बुरे फंसे... जैसे भारत के ज्वलंत मसलों पर जुड़े आर्टिकल तथा भारत का कूटनीतिक दांव, उत्तर कोरिया में पट परिवर्तन, लीबिया की बगावत के मायने, अफगान की अबूझ पहेली, पश्चिम में पैर पसारता दक्षिण पंथ, परमाणु मोहभंग का मौका... जैसे विदेशी मामलों से जुड़े लेख भी समय-समय पर भास्कर के संपादकीय पेज में प्रकाशित हुए हैं। इन आर्टिकलों के लिंक वाले पेज की लिंक यहां नीचे दी जा रही है...
http://www.bhaskar.com/abhivyakti/hamare_columnists/ved_pratap_vaidik/चुनाव सुधारों पर बेतुकेपन का पर्दा, अफसरों का ही मरण क्यों?... सामाजिक सद्भाव या तनाव?, लोकपाल का भविष्य क्या?, लोकायुक्त पर बुरे फंसे... जैसे भारत के ज्वलंत मसलों पर जुड़े आर्टिकल तथा भारत का कूटनीतिक दांव, उत्तर कोरिया में पट परिवर्तन, लीबिया की बगावत के मायने, अफगान की अबूझ पहेली, पश्चिम में पैर पसारता दक्षिण पंथ, परमाणु मोहभंग का मौका... जैसे विदेशी मामलों से जुड़े लेख भी समय-समय पर भास्कर के संपादकीय पेज में प्रकाशित हुए हैं। इन आर्टिकलों के लिंक वाले पेज की लिंक यहां नीचे दी जा रही है...
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