31 December 2011

शुभकामना


नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं

27 December 2011

रोना


फकत दो चार बार का रोना हो तो रो लूं फाकिर
 मुझे हर रोज के सदमात ने रोने ना दिया
रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें
जिन्हें मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया

12 December 2011

क्रांतिनाद

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क, हर गली में, हर नगर, हर गांव में
हाथ लहराते हुए, हर लाश चलनी चाहिए

के सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
 मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

और मेरे सीने में नहीं, तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
- स्व. दुष्यंत कुमार त्यागी

सत्य का स्वाद

एक राजा ने एक महात्मा से कहा-  कृपया मुझे सत्य के बारे में बताइए। इसकी प्रतीति कैसी है? इसे प्राप्त करने के बाद की अनुभूति क्या होती है? राजा के प्रश्न के उत्तर में महात्मा ने राजा से कहा- ठीक है, पहले आप मुझे एक बात बताइए, आप किसी ऐसे व्यक्ति को आम का स्वाद कैसे समझाएंगे, जिसने पहले कभी आम नहीं खाया हो? राजा सोच-विचार में डूब गया।  उसने हर तरह की तरकीब सोची पर वह यह नहीं बता सका कि उस व्यक्ति को आम का स्वाद कैसे समझाया जाए, जिसने कभी आम न खाया हो। हताश होकर उसने महात्मा से ही कहा- मुझे नहीं मालूम, आप ही बता दीजिए। महात्मा ने पास ही रखी थाली से एक आम उठाया और उसे राजा को देते हुए कहा- यह बहुत मीठा है, इसे खाकर देखो।।।

09 December 2011

जागरण


आंखे बंद किया हुआ हर आदमी सोया नहीं रहता और हर खुली आंख वाला व्यक्ति जागा हुआ नहीं होता।

भुलक्कड़

सोनू-मोनू की बीवियां आपस में बतिया रही थीं। सोनू की बीवी- मेरे पति इतने भुलक्कड़ हैं, एक दिन मुझे मार्केट में मिले, तो कहने लगे, बहिनजी शायद मैंने आपको कहीं देखा है।
मोनू की बीवी- बस, इतना ही... मेरे पति तो और बड़े वाले हैं। एक दिन वो पान खाकर घर में आए, बिस्तर में पान को थूक दिया और खुद खिड़की से कूद गए।

03 December 2011

सपने

सपने वे नहीं हैं, जो नींद में आते हैं
सपने तो वे हैं, जो सोने ही नहीं देते। 

पहले क्यों नहीं बताई यह बात

एक दिन मुल्ला नसीरुद्दीन अपने घर में फुरसत में बैठे थे और अपने चाहने वालों से गप्पबाजी कर रहे थे। उसी समय एक भिखारी ने उनके घर का दरवाजा खटखटाया। मुल्ला उस समय घर की ऊपरी मंजिल पर थे। उन्होंने खिड़की खोली और देखा तो वह फटेहाल भिखारी नीचे दरवाजे के पास टहल रहा था। उन्होंने ऊपर से ही उससे चिल्लाकर पूछा- क्या हो गया, क्यों दरवाजा खटखटा रहे हो, क्या चाहिए?
भिखारी ने कहा- मुल्ला आप नीचे आइए, तो मैं आपको बताऊंगा? मुल्ला ने कहा- अरे भाई चिल्लाकर बता दो। भिखारी ने इंकार किया, तो वे
नीचे उतरकर आए और दरवाजा खोलकर बोले- अब बताओ क्या चाहते हो? भिखारी ने फरियाद करते हुए कहा- कुछ पैसे दे दो, बड़ी मेहरबानी होगी।  नसीरुद्दीन घर में ऊपर गया और खिड़की से झांककर भिखारी से बोला- अरे, वहां क्यों खड़े हो, यहां ऊपर आ जाओ। भिखारी सीढिय़ां चढ़कर ऊपर गया और मुल्ला के सामने जा खड़ा हुआ। मुल्ला ने कहा- माफ करना भाई, अभी मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं। एक काम करो, किसी और रोज आकर ले जा लेना। भिखारी को यह सुनकर बहुत बुरा लगा। वह चिढ़कर बोला- मुझे बेवजह  इतनी सारी सीढिय़ां चढऩी पड़ी। आपने ये बात जब मैं नीचे खड़ा था, उसी समय क्यों नहीं बता दी? आपको तो ऊपर जाने पर मालूम चल ही गया था कि आपके पास खुले पैसे नहीं है। मुल्ला भी उसी सुर में बोले- तो फिर तुमने भी मुझे पहले क्यों नहीं बताया? जब मैंने ऊपर से तुमसे पूछा था कि तुम्हें क्या चाहिए! भिखारी भुनभुनाते हुए वहां से चला गया। लेकिन मुल्ला मंद-मंद मुस्करा रहे थे और उनके चेले थोड़ा अनमने से बैठे थे।