तुम्हे क्या हो गया है ऐ दोस्त, लगते हो तुम खफा-खफा
हम तो तलबगार हैं तुम्हारे, चाहिए तुम्हारा प्यार और वफा
हमें तो पता भी नहीं कि हमसे क्या हो गई गुस्ताखी
हो गई हो कोई गलती तो दे दो हमें माफी
जैसे ही तुम दिखे, दिल में एक तरंग सी उठ गई
अजनबियों के बीच, अपने से मिल बांछे खिल गई
तुम्हे क्या हो गया है ऐ दोस्त,
बड़ी उम्मीद थी कि मिलेगा प्यार, अपनापन, विश्वास
हम तो हमेशा से रहे थे, तुम्हारे अपने, बहुत खास
लगा था मिलोगे तो दिल को करार आएगा
पुरानी बातें निकलेगीं यादों से प्यार आएगा
पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, तुमने तो बना ली थी एक दूरी
ऐसा लगा, तुम नहीं बल्कि बात कर रही तुम्हारी मजबूरी
तुम्हे क्या हो गया है ऐ दोस्त,
न कोई शिकवा, न कोई शिकायत बस रस्म भरी बातें
जितना पूछा, बता दिया, और नहीं की कुछ बातें
हमने ऐसा क्या किया, अब तुम ही बता दो
हमसे क्या हुई गुस्ताखी हमको जता दो
बस इतना जान लो कि करते हैं तुमसे मुहब्बत
नहीं जी सकेंगे जो इतना हुए बेमुरव्वत।।
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